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गरीबों तक सिर्फ 15 पैसे ही पहुंचते हैं, बाकी 85..., आखिर क्यों बार-बार ये तंज कांग्रेस पर कसा जाता है?

ऐसा पहली बार नहीं है जब कांग्रेस को गरीबों तक 15 पैसे पहुंचाने और 85 पैसे गायब हो जाने वाले सवाल का सामना करना पड़ा है. सुप्रीम कोर्ट भी राजीव गांधी के इस बयान का जिक्र कर चुका है.

लोकसभा में सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा में भाग लेते हुए गृह मंत्री अमित शाह ने बुधवार को कांग्रेस और विपक्ष पर तीखा हमला किया. शाह ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने देश के करोड़ों गरीबों के जीवन में नई आशा का संचार किया है. जनता को उन पर पूरा भरोसा है और विपक्ष का अविश्वास प्रस्ताव केवल और केवल भ्रांति खड़ी करने के लिए लाया गया है .

शाह ने विपक्षी गठबंधन के चरित्र पर सवाल खड़ा करते हुए कहा कि उनका असली चेहरा तब सामने आया जब उन्होंने अपनी सरकार बचाने के लिए भ्रष्टाचार का सहारा लिया. शाह ने कांग्रेस पर हमला बोलते हुए कहा कि कांग्रेस सिर्फ ‘गरीबी हटाओ’ का नारा देती थी, लेकिन करती कुछ नहीं थी. गरीबी हटाने का काम इस सरकार ने किया. कांग्रेस पर निशाना साधते हुए शाह ने कहा कि पहले कांग्रेस के ही प्रधानमंत्री कहते थे कि वो एक रुपया भेजते हैं तो गरीबों तक 15 पैसे ही पहुंचते हैं, 85 पैसे गायब हो जाते हैं.  उन्होंने कहा, ‘ हम प्रत्यक्ष नकद अंतरण (डीबीटी) के माध्यम से पूरा पैसा गरीबों के बैंक खाते में हस्तांतरित करते हैं’.

कई बार किया जा चुका है राजीव गांधी के बयान का जिक्र

ऐसा पहली बार नहीं है जब कांग्रेस को गरीबों तक 15 पैसे पहुंचाने और 85 पैसे गायब हो जाने वाले सवाल का सामना करना पड़ा है. साल 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक फैसले में भी पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की 1985 की प्रसिद्ध टिप्पणी - दलितों के कल्याण के लिए निर्धारित प्रत्येक रुपये में से केवल 15 पैसे उन तक पहुंचते हैं ',का जिक्र किया था. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि आधार योजना द्वारा इस 'बीमारी' को दूर किया जा सकता है.

कर्नाटक में चुनावी रैलियों को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री के रूप में राजीव गांधी की 1985 की प्रसिद्ध टिप्पणी का बार-बार हवाला दिया था. पीएम मोदी ने कहा था कि कल्याण और गरीबी उन्मूलन के लिए सरकार द्वारा खर्च किए जाने वाले प्रत्येक रुपये में से केवल 15 पैसे ही इच्छित लाभार्थी तक पहुंचते थे.

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी कांग्रेस पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए राजीव गांधी के इस बयान का जिक्र कर चुके हैं. उन्होंने साल 2022 में एक सभा को संबोधित करते हुए दावा किया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शासनकाल में केंद्र द्वारा दिए गए कोष में से एक पैसा भी गबन नहीं किया जा रहा है. 

राजनाथ सिंह ने कहा कि जब भी 2जी, 3जी और 4जी के बारे में सोचते हैं तो कांग्रेस सरकार के घोटालों की याद आ जाती है. पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी का जिक्र करते हुए राजनाथ ने कहा था कि वह उनकी आलोचना नहीं करना चाहते लेकिन नेता ने एक बार कहा था कि सरकार द्वारा भेजे जाने वाले 100 पैसे में से केवल 15 पैसे ही लोगों तक पहुंचते हैं. 

राजीव गांधी ने कब दिया था 85 पैसे... वाला बयान

प्रधानमंत्री बनने के एक साल बाद 1985 में राजीव ने ओडिशा के तत्कालीन गरीबी से त्रस्त और अत्यंत पिछड़े कालाहांडी जिले के दौरे के बाद यह टिप्पणी की थी. कहा जाता है कि राजीव अपनी पत्नी सोनिया गांधी के साथ कालाहांडी का दौरा कर रहे थे और वह क्षेत्र के पिछड़ेपन से हैरान थे और ग्रामीणों की दुर्दशा से दुखी हो गए थे, उस दौरान कई गरीबों ने राजीव गांधी से मिलकर अपने दुख बताए थे.

उनके साथ तत्कालीन मुख्यमंत्री जेबी पटनायक भी थे, जिनकी सरकार को कोरापुट, बोलांगीर और कालाहांडी (केबीके) क्षेत्र में बड़े पैमाने पर गरीबी को लेकर काफी आलोचना का सामना करना पड़ा था. राजीव गांधी की ये टिप्पणी कांग्रेस विरोधियों के लिए एक हथियार बन गई थी, भले ही समर्थकों का कहना था कि राजीव गांधी ने ये बयान हताशा में गरीबों की नाजुक हालत को देख कर दिया था. सवाल ये है कि क्या उनके बयान का ऑन-फील्ड डेटा या अध्ययन किया गया था. 

1994 में अर्थशास्त्री किरीट एस पारिख ने "किसे कितना पीडीएस मिलता है: यह गरीबों तक कितने प्रभावी ढंग से पहुंचता है" पर एक पेपर लिखा था.  पेपर ने जो निष्कर्ष निकाले हैं, उनमें एक पैराग्राफ है जिसका जिक्र अक्सर किया जाता है: "पीडीएस अनाज के माध्यम से सबसे गरीब 20% परिवारों तक पहुंचने की लागत-प्रभावशीलता बहुत कम है". गोवा, दमन और दीव को छोड़कर सभी राज्यों में खर्च किए गए प्रत्येक रुपये में 22 पैसे से भी कम गरीबों तक पहुंचता है.

1995 में पीवी नरसिम्हा राव के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने एक दीर्घकालिक कार्य योजना तैयार की. योजना के उद्देश्य सूखा-रोधी, गरीबी उन्मूलन और विकास को बढ़ावा देना था. फिर 2004 में जब कांग्रेस यूपीए गठबंधन लंबे समय के बाद सत्ता में लौटी, तो पार्टी के नीति निर्माताओं के एजेंडे में से एक यह था कि कल्याणकारी योजनाओं के लिए निर्धारित धन के रिसाव पर किस तरह रोक लगाई जाए.

राहुल गांधी ने अपने पिता के बयान को दोहराया

2008 में उत्तर प्रदेश के झांसी में एक जनसभा को संबोधित करते हुए राहुल गांधी ने बुंदेलखंड क्षेत्र के पिछड़ेपन की ओर ध्यान आकर्षित करने के प्रयास में अपने पिता की प्रसिद्ध टिप्पणी को दोहराया.  इसका जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि स्थिति बहुत खराब है, और अब एक रुपये में से केवल 5 पैसे लोगों तक पहुंचते हैं.

एक साल बाद 2009 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने फंड के "पहुंच न होने" होने की बात स्वीकार की, लेकिन कहा कि यह "उतना बड़ा नहीं" था जितना दावा किया गया था.

लगभग उसी समय मीडिया रिपोर्टों में योजना आयोग के तत्कालीन उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया के हवाले से एक संगोष्ठी में कहा गया था कि पीडीएस पर योजना आयोग के हालिया रिसर्च में पाया गया था कि एक रुपये में से केवल 16 पैसे लक्षित गरीबों तक पहुंच रहे थे. जुलाई 2009 में बजट के बाद की बातचीत में अहलूवालिया ने कमियों को दूर करने के लिए 'बजट ट्रैकिंग सिस्टम' का विचार रखा था.

आखिरकार 2013 में यूपीए 2 सरकार ने प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण (डीबीटी) योजना शुरू की, ताकि फंड लीकेज को रोका जा सके और सब्सिडी और अन्य कल्याणकारी योजनाओं के लक्ष्य तक पहुंचाया जा सके. नगद हस्तांतरण योजना के पहले चरण में 43 जिलों को शामिल किया गया था. मनमोहन सिंह सरकार ने बाद में इसका विस्तार 78 और जिलों में किया. दिसंबर 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने पूरे देश में डीबीटी का विस्तार किया. जानकारों का मानना है कि जिस तरह से एनडीए के नेता यूपीए सरकार के इस बयान का जिक्र बार-बार करते आए हैं, वो सीधा कांग्रेस के समय किए गए भ्रष्टाचार पर तीखा प्रहार माना जा सकता है.

 

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