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मध्य प्रदेश: इन खासियतों की वजह से 'कमल' को रोकने के लिए कमलनाथ को मिली कांग्रेस की कमान

सक्रियता के अभाव से जूझ रही कांग्रेस में ऊर्जा भरना कमलनाथ के लिए चुनौती होगी. राज्य में शिवराज सरकार के खिलाफ माहौल तो है मगर ये माहौल कांग्रेस के पक्ष में है ऐसा कोई नहीं मानता.

नई दिल्ली: कमलनाथ को मध्य प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाकर आलाकमान ने बता दिया कि गांधी परिवार का भरोसा और संसदीय कार्यकाल का लंबा अनुभव रखने वाले कमलनाथ, मध्य प्रदेश के सारे कांग्रेसी नेताओं पर भारी पड़े. मध्य प्रदेश के इस चुनावी साल में लंबे वक्त से पार्टी अध्यक्ष को बदलने की कवायद जारी थी. पार्टी कार्यकर्ता से लेकर निवर्तमान अध्यक्ष अरुण यादव तक भ्रमित थे कि क्या होने जा रहा है? क्यों पार्टी आलाकमान किसी नियुक्ति में इतना वक्त लगा रहा है? मध्य प्रदेश में पार्टी की कमान किसे सौंपी जाए ये तय करना पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी के लिए आसान नहीं था.

मध्य प्रदेश में कांग्रेस में हमेशा से नेताओं की भीड़ रही है. एक-दो नहीं कई नेता एमपी कांग्रेस की पहचान रहे हैं. कमलनाथ, दिग्विजय सिंह, सुरेश पचौरी, ज्योतिरादित्य सिंधिया, सत्यव्रत चतुर्वेदी, अजय सिंह और अरुण यादव का नाम इनमें शूमार है. लेकिन धीरे-धीरे जब ये तय हो गया कि चुनाव कमलनाथ और सिंधिया के बीच ही होना है तो ये चयन आसान नहीं था. ज्योतिरादित्य सिंधिया जहां उम्र और उत्साह में सब पर भारी पड़ रहे थे तो वहीं कमलनाथ अपने संपर्क और संसाधन में किसी भी बड़े नेता के आगे दिख रहे थे.

दिग्विजय सिंह ने अपनी नर्मदा यात्रा के बाद कमलनाथ का नाम आगे बढ़ाया

सिंधिया को प्रदेश अध्यक्ष बनाने से आलाकमान को महाराजा और आम आदमी के सीएम के बीच मुकाबला होने की आशंका थी. वहीं शिवराज सिंह चौहान की युवा और मेहनती छवि के सामने कमलनाथ बुजुर्ग और पुराने जमाने के नेता ज्यादा लग रहे थे. लेकिन दिग्विजय सिंह ने अपनी नर्मदा यात्रा के बाद कमलनाथ का नाम आगे बढ़ाकर उनके नाम पर सहमति बनायी. आलाकमान ने अनुभवी कमलनाथ को प्राथमिकता दी. लेकिन इसके साथ ही कमलनाथ के साथ चार कार्यकारी अध्यक्ष बनाकर ये भी बता दिया कि सिर्फ कमलनाथ ही आलाकमान की इकलौती पसंद नहीं है.

सिंधिया का सहयोग कमलनाथ के लिए मायने रखेगा

इंदौर के युवा नेता जीतू पटवारी, सागर के दलित चेहरे सुरेन्द्र चौधरी, ग्वालियर जिले के सक्रिय नेता रामनिवास रावत और बडवानी जिले के युवा आदिवासी चेहरे बाला बच्चन को पार्टी ने कार्यकारी अध्यक्ष बनाया है. इन्हें मिलकर 15 साल बाद कांग्रेस की सत्ता में वापसी के लिए संयुक्त प्रयास करना है. ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी पार्टी ने चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष का पद देकर खुश करने की कोशिश की है. सिंधिया का सहयोग कमलनाथ के लिए बहुत मायने रखेगा.

सक्रियता के अभाव से जूझ रही कांग्रेस में ऊर्जा भरना कमलनाथ के लिए चुनौती होगी. राज्य में शिवराज सरकार के खिलाफ माहौल तो है मगर ये माहौल कांग्रेस के पक्ष में है ऐसा कोई नहीं मानता. कैसे पंद्रह साल पुरानी सरकारी की एंटी इनकम्बेंसी को कांग्रेस के पक्ष में मोड़ा जाए, ये कमलनाथ को सोचना होगा.

संजय गांधी के कहने पर पहली बार छिंदवाड़ा से चुनावी मैदान में उतरे थे कमलनाथ

कमलनाथ के पक्ष में सबसे बड़ी बात उनका सियासी अनुभव है. कलकत्ता के रहने वाले कमलनाथ 1980 के चुनाव में पहली बार संजय गांधी के कहने पर छिंदवाड़ा से चुनावी मैदान में उतरे तो अबतक वहीं पर कायम हैं. एक लोकसभा चुनाव छोड़ नौ चुनाव जीतने वाले कमलनाथ ने आदिवासी जिले छिंदवाड़ा का कायाकल्प कर रखा है. वे छिंदवाडा के विकास मॉडल को आगे जाकर भुना सकते हैं. जनता को बता सकते हैं कि छिंदवाड़ा जैसा ही विकास वे पूरे प्रदेश का कर सकते हैं. उनकी बात कांग्रेस के सारे नेताओं के साथ ही जनता भी सुनती है. फिलहाल दिल्ली और छिंदवाड़ा की राजनीति करते करते प्रदेश के बाकी हिस्से से वे दूर रहते हैं. संसाधनों की बहुलता भी कमलनाथ की बड़ी ताकत है. वे बड़े कारोबारी हैं. धन-धान्य की बहुलता उनके पास है.

बड़ी परेशानी कमलनाथ की 71 साल की उम्र है. चुनाव के दौरान वे कितनी भागदौड़ कर पाएंगे ये देखना होगा. उनका मुकाबला शिवराज सिंह चौहान से है जो सुबह से लेकर देर रात तक जनता के बीच में रहते हैं. कमलनाथ को अध्यक्ष बनाकर कांग्रेस ने उन्हें सबसे बड़ी जिम्मेदारी दे दी है. देखना ये है कि क्या कमलनाथ, राज्य में कांग्रेस के पंद्रह साल का सत्ता का सूखा दूर कर पाएंगे?

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