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लोकसभा चुनाव परिणाम 2024

UTTAR PRADESH (80)
43
INDIA
36
NDA
01
OTH
MAHARASHTRA (48)
30
INDIA
17
NDA
01
OTH
WEST BENGAL (42)
29
TMC
12
BJP
01
INC
BIHAR (40)
30
NDA
09
INDIA
01
OTH
TAMIL NADU (39)
39
DMK+
00
AIADMK+
00
BJP+
00
NTK
KARNATAKA (28)
19
NDA
09
INC
00
OTH
MADHYA PRADESH (29)
29
BJP
00
INDIA
00
OTH
RAJASTHAN (25)
14
BJP
11
INDIA
00
OTH
DELHI (07)
07
NDA
00
INDIA
00
OTH
HARYANA (10)
05
INDIA
05
BJP
00
OTH
GUJARAT (26)
25
BJP
01
INDIA
00
OTH
(Source: ECI / CVoter)

2024 में बीजेपी 100 सीटों पर सिमट जाएगी… नीतीश के इस दावे में कितना है दम?

बिहार के सीएम नीतीश कुमार का मानना है कि अगर साल 2024 के आम चुनाव से पहले विपक्षी पार्टियों का गठबंधन हो जाए तो बीजेपी को 100 के नीचे समेटा जा सकता है.

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार साल 2005 के बाद से बिहार का सबसे बड़ा राजनीतिक चेहरा रहे हैं. शनिवार यानी 18 फरवरी को पटना में आयोजित CPI-ML के राष्ट्रीय कन्वेंशन में नीतीश कुमार ने भारतीय जनता पार्टी को 100 सीटों के नीचे समेटने का प्लान बताया है. इसी सम्मेलन में बिहार के डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव से लेकर पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस नेता सलमान खुर्शीद ने 2024 के आम चुनाव को लेकर कई बड़ी बातें कही हैं. लेकिन सबसे पहले जानते हैं आखिर नीतीश कुमार का ये प्लान है क्या और उनके इस बयान में कितना दम है.

दरअसल नीतीश कुमार का मानना है कि अगर साल 2024 के आम चुनाव से पहले विपक्षी पार्टियों का गठबंधन हो जाए तो बीजेपी को 100 सीटों के नीचे समेटा जा सकता है. नीतीश कुमार ने सम्मेलन में कहा कि भारत जोड़ो यात्रा के बाद अब कांग्रेस को आगे आना चाहिए और विपक्षी एकजुटता में देरी नहीं करनी चाहिए. 

हालांकि उन्होंने ये भी कहा कि उनका इस पद को लेकर कोई व्यक्तिगत इच्छा नहीं है. सीएम नीतीश कहते हैं, 'हम तो केवल बदलाव चाहते हैं. जो सब तय करें वही होगा. बिहार में विपक्षी दल एकजुट होकर काम कर रहे हैं. ऐसे ही कांग्रेस नेतृत्व से अपील है कि सब एकजुट हुए तो बीजेपी 100 सीट के नीचे निपट जाएगी. 

वहीं पूर्व विदेश मंत्री व कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद ने विपक्षी एकता का जिक्र करते हुए कहा कि सवाल यह है कि कौन पहले ‘‘आई लव यू’’ बोलता है.

एनडीए की सबसे पुरानी सहयोगी पार्टी है जेडीयू

ऐसे में बात करते हैं नीतीश की पार्टी जेडीयू की. जेडीयू सबसे पुराने एनडीए सहयोगियों में से रही है. लेकिन साल 2013 में जब नरेंद्र मोदी का उदय हुआ और वो पीएम की कुर्सी के करीब पहुंचने लगे. तब नीतीश ने बीजेपी से नाता तोड़ लिया. इसके बाद 2014 का आम चुनाव वो बीजेपी से अलग होकर लड़े और 2019 के आम चुनाव में फिर से बीजेपी के साथ आ गए. पूरी उम्मीद है कि 2024 में वो बीजेपी के खिलाफ आम चुनाव लड़ रहे होंगे.

कैसा रहा है आम चुनाव में जेडीयू का प्रदर्शन 

बिहार में लोकसभा की कुल चालीस सीटें हैं. इन चालीस सीटों में से 2014 के आम चुनाव में नीतीश की पार्टी जनता दल यूनाइटेड को मात्र दो सीटें मिली थीं. ये चुनाव वो बीजेपी से अलग होकर लड़े थे. ये और बात है कि साल 2015 का बिहार विधानसभा चुनाव हुआ तो वो लालू यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस के साथ चुनाव लड़े और महागठबंधन नाम वाले इस गठबंधन ने बीजेपी को इस चुनाव में हरा दिया हालांकि लोकसभा और विधानसभा चुनाव बिल्कुल ही अलग बॉल गेम होता है.

बिहार में हुए 2015 विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार महागठबंधन के सीएम बने. लेकिन जैसे उन्होंने 2013 में बीजेपी से गठबंधन तोड़ा था वैसे ही साल 2017 में महागठबंधन से अलग हो गए. फिर आया 2019 का आम चुनाव और इस चुनाव में वो बीजेपी के साथ लड़े. नीतीश कुमार की जिस जेडीयू को 2014 में बीजेपी से अलग लड़ने पर मात्र दो सीटें मिली थीं उसे 2019 में बीजेपी के साथ लड़ने पर लोकसभा की 16 सीटें मिलीं. 

साल 2014 और 2019 के बीच नीतीश की पार्टी को मिली सीटों में इतने बड़े अंतर की एक बड़ी वजह है पीएम नरेंद्र मोदी का चेहरा माना गया. ये कहना गलत नहीं होगा कि साल 2014 से लेकर अब तक पीएम पद के मामले में उनके टक्कर का चेहरा सामने नहीं आया है और देश में जब भी आम चुनाव होते है तो जनता के लिए एक बड़ा फैक्टर ये होता है कि देश का पीएम कौन होगा.

बीजेपी को 100 सीटों में समेटने के प्लान में कितना दम 

बीजेपी के मामले में अगले साल होने वाले आम चुनाव के पहले भी ये साफ है कि उनकी तरफ से पीएम का चेहरा नरेंद्र मोदी ही होंगे. लेकिन जिस विपक्ष के साथ आने पर नीतीश कुमार बीजेपी को 100 से नीचे समेटन की बात कर रहे हैं अभी तक साफ नहीं है कि उनकी तरफ से पीएम पद का चेहरा कौन होगा. इसके अलावा ये भी साफ नहीं है कि अगर विपक्ष के एकजुट होने की बात होती है तो इसमें कौन सी पार्टियां शामिल होगी. 

कौन हो सकता है विपक्ष का पीएम चेहरा 

बिहार के पूर्व सीएम लालू यादव ने एक बार संसद में कहा था कि ऐसा कौन सा नेता है जो पीएम नहीं बनना चाहता है. और ये बात सोलह आने सच है. अभी देखें तो 3500 किलोमीटर की भारत जोड़ो यात्रा करने वाले राहुल गांधी पीएम पद का चेहरा हो सकते हैं. दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल इस मामले में किसी से पीछे नहीं हैं. 

तेलंगाना के सीएम चंद्रशेखर राव हों या बंगाल की सीएम ममता बनर्जी, इन्हें भी पीएम बनना है. दलितों की सबसे बड़ी नेता मायावती का कद भी इनमें से किसी से कम नहीं है और ऐसे कम से कम दर्जन भर नामों में नीतीश कुमार का नाम भी शामिल है लेकिन नीतीश से जब भी पीएम बनने से जुड़ा सवाल पूछा जाता है तो वो इससे साफ इनकार कर देते हैं. 
 
मतलब एक तरफ इतने सारे पीएम पद उम्मीदवार होंगे और दूसरी तरफ नरेंद्र मोदी का इकलौता चेहरा तो वोटर को कम से कम इस एक मामले में तो साफ सीधी क्लियरिटी होगी.

कांग्रेस का पिछले चुनावों में कैसा रहा हाल

जिस कांग्रेस को नीतीश कुमार तुरंत गठबंधन का फैसला करने को कह रहे हैं उसे पिछले चुनाव में बिहार में मात्र एक सीट मिली थी. अगर आम चुनाव की बात करें तो साल 2014 के चुनाव में कांग्रेस को 543 में से मात्र 44 सीटें मिली थीं. 2019 में ये नंबर बढ़ा ज़रूर लेकिन कांग्रेस इस चुनाव में भी 52 सीटों पर सिमट गई. 

पिछले दो आम चुनाव में ये हाल उस पार्टी का रहा है जो एक तरफ तो देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी है और दूसरी तरफ सबसे ज़्यादा समय तक देश की सरकार चलाई है. जो पार्टी पिछले दो चुनावों से 100 सीटों का आंकड़ा पार नहीं कर पा रही. नीतीश का मानना है कि उसके साथ गठबंधन हुआ तो बीजेपी 100 के नीचे चली जाएगी. 

बयान के पीछे का गणित

बिहार के माननीय मुख्यमंत्री को ये भी बताना चाहिए कि उनके इस बयान के पीछे कोई गणित भी है या 2024 में कोई जादू होने वाला है. क्योंकि बिहार की एक और बड़ी राजनीतिक पार्टी लालू की राष्ट्रीय जनता दल की बात करें तो वो तो पिछले आम चुनाव में खाता भी नहीं खोल पाई थी. 

राहुल गांधी के बाद सबसे बड़ा चेहरा माने जाने वाले अरविंद केजरीवाल की. तो उनकी पार्टी की भी सीटें 2014 के 4 से घटकर 2019 में 1 पर आ गई थी. सबसे ज्यादा यानी 80 लोकसभा वाले यूपी में पिछले दो चुनाव में बीजेपी का लगभग एकछत्र राज रहा है. 2014 में तो पार्टी 80 में से 73 सीटें जीती थी और 2019 में सीटें घटीं तब भी 62 सीटें मिलीं.

ऐसे में साल 2024 में होने वाले आम चुनाव में सिर्फ यूपी और बिहार में भी पिछले चुनाव का परफॉर्मेंस दोहराया जाता है और उसमें गुजरात और दिल्ली जैसे राज्य जोड़ दें तो भी बीजेपी 125 के पार चली जाएगी. तो ये जो नीतीश कुमार बीजेपी को 100 से नीच ला रहे हैं उन्हें सच में इसके पीछे का गणित बताना चाहिए. 

वर्तमान में विपक्षी पार्टियों का हाल

रही विपक्षी एकता की बात तो भारत जोड़ो में ज्यादातर पार्टियां कांग्रेस से कटती नज़र आई. चंद्रशेखर राव के एक कार्यक्रम में नीतीश कुमार ख़ुद नहीं पहुंचे. ममता बनर्जी कभी बीजेपी से दूर तो कभी लगभग इसके पास नज़र आती हैं. अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी और मायावती की बहुजन समाज पार्टी किसी तरह के गठबंधन को लेकर क्लियर नजर नहीं आते. 

आम आदमी पार्टी भी विपक्ष के साथ एकजुट होने में ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं. आम आदमी पार्टी अगर साथ आने को राजी भी हो तो कांग्रेस दूर भागेगी. क्योंकि कांग्रेस का मानना है कि आम आदमी पार्टी धीरे-धीरे कांग्रेस के सफाए का काम कर रही है. ऐसे में वर्तमान में तो विपक्ष एकजुट होता नजर नहीं आ रहा है. 

क्या हो सकता है आम चुनाव में विपक्षों का मुद्दा

पटना में आयोजित CPI-ML के राष्ट्रीय कन्वेंशन में सलमान खुर्शीद और तेजस्वी ने जांच एजेंसी के दुरुपयोग का मुद्दा उठाया. तेजस्वी यादव ने कहा कि बीजेपी लगातार उनके खिलाफ बोलने वाले पर जांच एजेंसियां छोड़ रही है और उनके साथ हाथ मिलाने वाले को हरिशचंद्र बताया जाता है. 

हालांकि शिकायत अकेले तेजस्वी की नहीं रही. बीजेपी को ममता बनर्जी की टीएमसी से लेकर अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी तक जांच एजेंसियों के दुरुपयोग को लेकर घेर चुके हैं. 

तो आने वाले आम चुनावों में जांच एजेंसियों का गलत इस्तेमाल एक बड़ा मुद्दा हो सकता है. हो सकता है कि राज्यों के मॉडल का भूत फिर से कब्र से निकल जाए. क्योंकि इसी कार्यक्रम में ख़ुर्शीद ने कहा कि पहले गुजरात मॉडल की बात होती थी. लेकिन अब बिहार मॉडल की बात होनी चाहिए. वो ये भी कह रहे हैं कि वो देश भर में घूम घूम कर बिहार मॉडल की बात करेंगे.

मॉडल के अलावा राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा को भी कांग्रेस आने वाले चुनाव में जमकर इस्तेमाल कर सकती है. इसी कार्यक्रम में ख़ुर्शीद ने कहा कि राहुल ने 3500 किलोमीटर की भारत जोड़ो यात्रा कंप्लीट की है. और इसके जरिए प्यार और विश्वास का संदेश दिया है. वहीं बेरोजगारी, महंगाई, गरीबी के अलावा भ्रष्टाचार जैसे सदाबहार मुद्दे भी आने वाले चुनाव में छाए ही रहेंगे. 

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