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अयोध्या विवादः सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई टाले जाने से लेकर सियासी बयानबाज़ी तक, जानें- A टू Z

अयोध्या जमीन विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में जनवरी तक मामला टलने के बाद नियमित सुनवाई की तारीख अब जनवरी में तय होगी. हालांकि यह तय नहीं हुआ है कि यही बेंच सुनवाई करेगी या नई बेंच का गठन होगा और क्या वहीं बेंच आगे की कार्यवाही तय करेगी.

नई दिल्लीः सालों से लटके पड़े अयोध्या मामले की सुनवाई आज सुप्रीम कोर्ट में हुई और एक बार फिर शीर्ष अदालत ने इस मामले को जनवरी तक के लिए टाल दिया. आठ साल पहले 2010 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जो अयोध्या में जमीन के मालिकाना हक को लेकर फैसला दिया था उस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में इस मामले को चुनौती दी गई थी.

कोर्ट ने क्या दिया फैसला

अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में आज चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने मामले को जनवरी तक के लिए टाल दिया. आज मामला जैसे ही चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की बेंच के सामने आया, चीफ जस्टिस ने कहा कि इस मामले को जनवरी में उपयुक्त बेंच के सामने लाया जाए. सुप्रीम कोर्ट की आज की टिप्पणी के बाद साफ हो गया कि रोजाना सुनवाई की तारीख आने में अभी और समय लगेगा.

अयोध्या जमीन विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में जनवरी तक मामला टलने के बाद नियमित सुनवाई की तारीख अब जनवरी में तय होगी. हालांकि यह तय नहीं हुआ है कि यही बेंच सुनवाई करेगी या नई बेंच का गठन होगा और क्या वहीं बेंच आगे की कार्यवाही तय करेगी.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर क्या रही प्रतिक्रिया रविशंकर प्रसाद कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा, 'हम राम मंदिर के मुद्दे को चुनाव से नहीं जोड़ते. हमें कोर्ट पर पूरा भरोसा है और हम कोर्ट का सम्मान करते हैं. बहुत लोगों की अपेक्षा है कि सुनवाई जल्द से जल्द हो. इलाहबाद में मैं रामलला का वकील था. वहां हम जीते और फैसला हमारे हक में आया. रामलला विराजमान की जगह हिंदुओं को मिली. अब जिन्हें सुप्रीम कोर्ट जाना था था वो गए. कानून मंत्री होने के नाते इस मसले पर मैं इससे ज्यादा कुछ नहीं बोल सकता.''

ओवैसी सुनवाई टलने पर ओवैसी ने कहा, 'चीफ जस्टिस की बेंच ने कहा कि जनवरी में उपयुक्त बेंच के पास मामला जाएगा वो तय करेगी. कोर्ट का फैसला जिसे मानना ही पड़ेगा. देश संविधान से ही चलेगा. इसके अलावा ओवैसी ने कहा कि सरकार अध्यादेश लाकर दिखाए, ऐसी बातों से कब तक डराएंगे. संविधान से देश चलेगा कि मनमर्जी से चलेगा. 56 इंच का सीना है तो लाकर दिखाएं अध्यादेश.'

केशव प्रसाद मौर्य, उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम अयोध्या मामले की सुनवाई जनवरी तक टलने पर केशव प्रसाद मौर्य ने कहा, ''मैं इस पर टिप्पणी नहीं करना चाहता क्योंकि यह सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय है. सुनवाई टलने से अच्छा संदेश नहीं जाता.''

महंत परमहंस जनवरी तक सुनवाई टलने से संत समाज में नाराजगी साफ देखने को मिल रही है. राम मंदिर के लिए अयोध्या में आमरण अनशन करने वाले महंत परमहंस ने कोर्ट के फैसले के बाद कहा, 'जनवरी तक इंतजार नहीं कर सकते, बीजेपी तुरंत राममंदिर निर्माण शुरू करे. राम मंदिर निर्माण का वादा करके ही मोदी, योगी सत्ता में आए थे. अगर ऐसा नहीं होता तो आरएसएस, वीएचपी और बीजेपी सरकार को खामियाजा भुगतना पड़ेगा.'

सुन्नी वक्फ बोर्ड अयोध्या विवाद पर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई एक बार फिर टलने पर सुन्नी वक्फ बोर्ड ने भी निराशा जताई है. सुन्नी वक्फ बोर्ड का कहना है कि उसे पूरा यकीन था कि देश की सबसे बड़ी अदालत इस मामले में अब और इंतजार नहीं कराएगी और रोजाना के आधार पर सुनवाई कर जल्द से जल्द इस मामले का निपटारा कर देगी.

यूपी बार काउंसिल के पूर्व चेयरमैन इमरान माबूद खान वक्फ बोर्ड के मेंबर और यूपी बार काउंसिल के पूर्व चेयरमैन इमरान माबूद खान के मुताबिक़ इस मामले में फैसला किसी के भी हक़ में आए, लेकिन अब जल्द से जल्द सुनवाई पूरी हो जानी चाहिए. उनके मुताबिक़ इस मामले में अब और ज़्यादा इंतजार नहीं किया जा सकता, क्योंकि इससे न सिर्फ करोड़ों लोगों की भावनाएं जुडी हुई हैं, बल्कि देश के अमन को भी खतरा बना रहता है. इमरान माबूद खान ने कहा कि इस बार की सुनवाई केंद्र सरकार की वजह से टली है. हमेशा यह इल्जाम लगता था कि वक्फ बोर्ड तारीखें लेकर सुनवाई को टलवा रहा है, लेकिन इस बार ऐसा नहीं था.

अब आगे क्या होगा अयोध्या मामले की सुनवाई जनवरी तक टलने के बाद सरकार के सामने ये विकल्प है कि वो अध्यादेश लाकर मंदिर निर्माण का रास्ता साफ कर सकती है. इसके अलावा केंद्र सरकार के सामने तीन विकल्प हैं.

विकल्प एक- राम मंदिर निर्माण के लिए अध्यादेश लाने का विकल्प, केन्द्र सरकार अध्यादेश लाकर राम मंदिर निर्माण की राह आसान कर सकती है, सरकार के रणनीतिकारों में अगर अध्यादेश पर एक राय बनी तो राममंदिर पर अध्यादेश शीतकालीन सत्र के बाद लाया जा सकता है. वीएचपी की संतों की उच्चधिकार समिति भी इसकी वकालत कर रही है.

विकल्प दो- राममंदिर के लिए संसद के ज़रिए कानून बनाया जाए ताकि राममंदिर निर्माण का रास्ता साफ हो. ऐसा हुआ तो शीतकालीन सत्र में भी राम मंदिर के लिए बिल लाया जा सकता है.

एक तीसरा विकल्प भी है और वो है-संसद का विशेष सत्रः सूत्रों का कहना है कि सरकार के सामने राम मंदिर के लिए संसद का विशेष सत्र का विकल्प भी खुला है. लेकिन ये विकल्प, जनभावनाओं का ज्वार उफान पर होने पर ही अपनाया जाएगा.

30 अक्टूबर से आरएसएस की दीवाली बैठक में राम मंदिर पर चर्चा 30 अक्टूबर से आरएसएस की दीवाली बैठक मुम्बई में होगी जिसके लिए संघ प्रमुख सहित सभी प्रमुख प्रचारक मुंबई पहुंच गए हैं. संघ की बैठक के एजेंडे में राम मंदिर भी शामिल हैऔर 2 नवंबर तक संघ के कार्यकारी मंडल की बैठक चलेगी.

3-4 नवंबर को संतों की बड़ी बैठक में मंदिर निर्माण पर विचार-विमर्श सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई टलने के बाद संतों ने तीन और चार नवंबर को दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में बड़ी बैठक बुलाई है. इस बैठक में हिन्दू धर्म के 125 संप्रदायों के प्रमुख हिस्सा लेंगे और राम मंदिर पर रणनीति बनाने पर भी चर्चा होगी.

क्या है अयोध्या विवाद? अयोध्या में जमीन विवाद सत्तर सालों से चला आ रहा है, अयोध्या विवाद हिंदू मुस्लिम समुदाय के बीच तनाव का बड़ा मुद्दा रहा है. अयोध्या की विवादित जमीन पर राम मंदिर होने की मान्यता है. मान्यता है कि विवादित जमीन पर ही भगवान राम का जन्म हुआ. हिंदुओं का दावा है कि राम मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई.

दावा है कि 1530 में बाबर के सेनापति मीर बाकी ने मंदिर गिराकर मस्जिद बनवाई थी. 90 के दशक में राम मंदिर के मुद्दे पर देश का राजनीतिक माहौल गर्मा गया था. अयोध्या में 6 दिसंबर 1992 को कार सेवकों ने विवादित ढांचा गिरा दिया था. अयोध्या में विवादित जमीन पर अभी राम लला की मूर्ति विराजमान है.

अयोध्या विवाद में हाईकोर्ट का फैसला क्या था? अयोध्या में विवादित ढांचा गिराए जाने के बाद आपराधिक केस के साथ साथ जमीन के मालिकाना हक को लेकर भी मुकदमा चला. आठ साल पहले इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एतिहासिक फैसला दिय़ा. हाईकोर्ट ने 2.77 एकड़ विवादित जमीन को तीन हिस्सों में बराबर बांटने का फैसला दिया.

राम मूर्ति वाला पहला हिस्सा राम लला विराजमान को मिला. राम चबूतरा और सीता रसोई वाला दूसरा हिस्सा निर्मोही अखाड़ा को मिला. जमीन का तीसरा हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को देने का फैसला सुनाया गया. हाईकोर्ट के फैसले को हिंदू और मुस्लिम पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. तीनों ही पक्षों ने पूरी विवादित जमीन पर अपना अपना दावा ठोंका.

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