Kerala Elections 2021: केरल में ईसाइयों की पहली पसंद क्यों बन रही है बीजेपी
Kerala Elections 2021: सबसे दिलचस्प मुकाबला मध्य केरल में देखने को मिल सकता है. यहां के चार जिलों-एर्नाकुलम, कोट्टायम, इडुकी और पाठनमठित्ता में विधानसभा की 33 सीटें हैं, जहां ईसाई निर्णायक भूमिका में हैं.
नई दिल्ली: दक्षिण भारत का स्विट्ज़रलैंड कहे जाने वाले केरल की 140 सीटों पर इस बार दिलचस्प मुकाबला होने जा रहा है. मेट्रो मेन ई श्रीधरन के बीजेपी में शामिल होने के बाद उत्तर भारत के लोगों की रुचि भी यह जानने के प्रति और ज्यादा बढ़ गई है कि देश के सबसे अधिक साक्षरता वाले इस राज्य की राजनीति आखिर कैसी है और इस बार यहां की सत्ता किसे मिलेगी. लेफ्ट, कांग्रेस व मुस्लिम लीग का मजबूत किला ढहाने के लिए बीजेपी ने इस बार पूरी ताकत लगा दी है. हैरानी नहीं होनी चाहिए यह जानकर कि कई सीटों पर हार-जीत का फैसला करने की ताकत रखने वाले ईसाई वोटरों को इस बार बीजेपी पसंद आ जाये. पिछली बार यहां बीजेपी ने एकमात्र नेमोम सीट ही जीती थी. केरल में ईसाई वोटरों की संख्या 18 फीसदी से कुछ ज्यादा है और इन्हें परंपरागत रूप से कांग्रेस समर्थक माना जाता है. लेकिन इस बार लेफ्ट पार्टियों के साथ ही बीजेपी भी इन्हें अपने पाले में लाने के लिए हर प्रयास कर रही है.
सबसे दिलचस्प मुकाबला मध्य केरल में देखने को मिल सकता है. यहां के चार जिलों-एर्नाकुलम, कोट्टायम, इडुकी और पाठनमठित्ता में विधानसभा की 33 सीटें हैं, जहां ईसाई निर्णायक भूमिका में हैं. केरल की सियासत को समझने वालों के मुताबिक किसी भी गठबंधन की सरकार बनाने में मध्य केरल का बेहद अहम रोल रहा है. फिर चाहे वह कांग्रेस की अगुवाई वाला यूडीएफ हो या लेफ्ट नेतृत्व वाला एलडीएफ. लेकिन अब यहां की तस्वीर पूरी तरह से बदल चुकी है. राज्य में ईसाइयों की सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस ( M) दो फाड़ हो चुकी है. यह करीब 40 बरस तक कांग्रेस की अगुवाई वाले यूडीफ की सहयोगी पार्टी रही है. पार्टी के दो गुटों में बंट जाने के बाद यह पहला चुनाव है जब दोनों गुट अलग-अलग गठबंधन के साथ चुनावी मैदान में उतरे हैं.
केरल कांग्रेस ( M) के ऑफिशियल गुट की कमान पार्टी के दिवंगत अध्यक्ष के एम मणि के बेटे जोस के मणि के हाथ में है. उन्होंने यूडीएफ का साथ छोड़कर लेफ्ट की अगुवाई वाले एलडीएफ का दामन थाम लिया है. यहां ईसाई वोटर कितनी ताकत रखते हैं, इसका अनुमान इसी से लगा सकते हैं कि एलडीएफ ने उनके गुट को 13 सीट दी हैं. यहां तक कि अपने काडर के विरोध के बावजूद CPM ने पाठनमठित्ता जिले की रानी (Rani) सीट भी मणि गुट को दे दी है. जबकि इस सीट पर पिछले 25 साल से सीपीएम का ही कब्जा रहा है.
केरल कांग्रेस के विरोधी गुट की कमान पार्टी के वरिष्ठ नेता पी जे जोसफ के हाथ में है और उन्होंने यूडीफ का हाथ थाम लिया है. उनका गुट इन चार जिलों में 9-10 सीटों पर चुनाव लड़ सकता है. केरल में ईसाइयों के मुख्य रूप से दो वर्ग हैं, जैकब और ऑर्थोडक्स. मध्य केरल की 10 सीटों पर जैकब बहुमत में हैं. राज्य में चर्चों के नियंत्रण को लेकर दोनों वर्गों के बीच हुई कानूनी लड़ाई सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंची और 2017 में कोर्ट ने फैसला दिया कि जिन पर जैकब का कब्ज़ा है, उन सभी चर्च का नियंत्रण ऑर्थोडॉक्स को सौंप दिया जाये.
बता दें कि पिछले दिनों पार्टी से इस्तीफा देने वाले कांग्रेस के दमदार नेता पीसी चाको का नाता जैकब वर्ग से ही है. राज्य में हाल ही में हुए स्थानीय निकायों के चुनाव में जैकब वर्ग ने सत्तारुढ़ गठबंधन की बजाय एलडीएफ का समर्थन किया था. लेकिन अब इस वर्ग में डर का माहौल है और वे तीसरे विकल्प की तलाश में हैं.
दोनों वर्गों के बीच बरसों पुराने विवाद को सुलझाने के लिए जैकब वर्ग के प्रतिनिधि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से लेकर आरआरएस और बीजेपी के प्रमुख नेताओं से कई दौर की वार्ता कर चुके हैं. यहां तक कि पादरियों की सभा में यह तय हो चुका है कि अगर बीजेपी हमारे हितों की रक्षा का वादा करती है, तो हम उसे खुलकर समर्थन देंगे. वहीं दूसरी तरफ ऑर्थोडॉक्स वर्ग भी बीजेपी के समर्थन में आ गया है. चेंगाणुर क्षेत्र में बने करीब एक हजार साल पुराने चर्च को तोड़ा जाना था, लेकिन संघ व भाजपा नेताओं के दखल के बाद ऐसा नहीं हो सका.
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