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Jammu Kashmir: 370 हटने के 1890 दिन बाद भी J&K कंफ्यूज! 'मैदान' में कमल तो 'घाटी' में दिखा पंजा

J&K Election Result 2024: आर्टिकल 370 हटने के पांच साल बाद हो रहे विधानसभा चुनावों के नतीजों से जम्मू-कश्मीर ने हैरान किया है. चुनावी नतीजों के हिसाब से यहां हालात में बदलाव नजर नहीं आया.

10 साल से ज्यादा वक्त बीत चुका है जम्मू-कश्मीर को चुनाव का इंतजार करते हुए. यहां आखिरी बार विधानसभा चुनाव 2014 में हुए थे. ऐसे में जब इलेक्शन कमीशन ने यहां विधानसभा चुनाव का ऐलान किया तो लगा कि जम्मू-कश्मीर में नई बयार देखने को मिलेगी, लेकिन 370 हटने के 1890 दिन बाद भी जम्मू-कश्मीर पूरी तरह कंफ्यूज नजर आया. यहां मैदान वर्सेज पहाड़ की खींचतान पहले की तरह नजर आ रही है. आलम यह है कि मैदानी इलाके जम्मू में बीजेपी का कमल खिलता नजर आ रहा है तो घाटी में पंजे की छाप कायम दिख रही है. आइए जानते हैं कि यहां क्या माहौल है और कौन यहां सरकार बनाने की ओर बढ़ता दिख रहा है.

अब तक क्या कह रहे रुझान?

जम्मू-कश्मीर विधानसभा चुनाव के सुबह 11 बजे तक के रुझान पर गौर करें तो जम्मू-कश्मीर की कुल 90 विधानसभा सीटों में से कांग्रेस गठबंधन 47 सीटों पर आगे है. वहीं, बीजेपी ने 28 सीटों पर बढ़त बना रखी है. इसके अलावा चार सीटों पर पीडीपी तो 11 सीटों पर अन्य आगे हैं. इनमें जम्मू की 43 सीटों में से 24 पर बीजेपी आगे है तो कांग्रेस गठबंधन की झोली में 12 सीटें जाती नजर आ रही हैं. यहां पीडीपी का खाता खुलता नजर नहीं आ रहा, जबकि सात सीटों पर अन्य की बढ़त है. उधर, कश्मीर की 47 सीटों में से 35 पर कांग्रेस गठबंधन का जलवा नजर आ रहा है. यहां बीजेपी के पास सिर्फ चार सीटों पर बढ़त है तो चार ही सीटों पर पीडीपी जूझ रही है. इसके अलावा चार सीटें अन्य की झोली में जाती दिख रही हैं.

बीजेपी का मिशन जम्मू फेल?

जम्मू-कश्मीर के इन रुझानों को देखकर लग रहा है कि बीजेपी का मिशन जम्मू पूरी तरह फेल हो चुका है. दरअसल, 2014 के विधानसभा चुनाव तक जम्मू-कश्मीर में कुल 111 सीटें थीं. इनमें 46 सीटें कश्मीर में तो 37 सीटें जम्मू में थीं. वहीं, चार सीटें लद्दाख के खाते में जाती थीं. इनके अलावा 24 सीटें पीओके में आती हैं. लद्दाख के अलग होने पर जम्मू-कश्मीर में 107 सीटें ही रह गईं. ऐसे में नए परिसीमन के तहत जम्मू-कश्मीर में 114 सीटें कर दी गईं, जिनमें 90 सीटें जम्मू-कश्मीर और 24 सीटें पीओके में रखी गईं. जम्मू-कश्मीर में भी 43 सीटें जम्मू और 47 सीटें कश्मीर के खाते में गईं. यानी नए परिसीमन के हिसाब से जम्मू में छह सीटें बढ़ीं, जबकि कश्मीर में सिर्फ एक ही सीट का इजाफा हुआ. अब 2014 के विधानसभा चुनाव पर गौर करें तो जम्मू की 37 में से बीजेपी ने 25 सीटों पर जीत हासिल की थी. अब जम्मू में 43 सीटें होने के बाद भी बीजेपी सिर्फ 24 सीटों पर ही आगे नजर आ रही है.

जम्मू-कश्मीर क्यों दिखा कंफ्यूज?

जम्मू-कश्मीर में अब तक हुए सभी चुनावों पर गौर करें तो कश्मीर में हमेशा कांग्रेस के अलावा नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी का वर्चस्व दिखता रहा है. वहीं, जम्मू के मैदानी इलाकों में भगवा पार्टी का प्रभुत्व दिखता है. उम्मीद जताई जा रही थी कि आर्टिकल 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर की जनता एकतरफा फैसला सुनाएगी, लेकिन इस बार भी नतीजा जस का तस नजर आ रहा है.

कब हटाया गया था आर्टिकल 370?

जम्मू-कश्मीर में आर्टिकल 370 को 5 अगस्त 2019 के दिन रद्द किया गया था. इसके बाद जम्मू-कश्मीर से स्पेशल राज्य का दर्जा हटाकर उसे केंद्र शासित प्रदेश में तब्दील कर दिया गया था. साथ ही, लद्दाख को भी इससे अलग हो गया था. इसके बाद यहां विधानसभा चुनाव को लेकर लगातार अटकलें लगती रहीं. एक बार तो दावा यह भी किया गया कि लोकसभा चुनाव 2024 के साथ ही जम्मू-कश्मीर की जनता लोकतंत्र का त्योहार मना पाएगी, लेकिन यह ख्वाब भी अधूरा रह गया. हालांकि, आर्टिकल 370 हटने के पांच साल  और 12 दिन बाद यानी 16 अगस्त को चुनाव आयोग ने जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव कराने का ऐलान कर दिया.

यह भी पढ़ें: चुनाव आयोग के रुझानों में जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस-एनसी गठबंधन को बहुमत, जानें BJP का हाल

खबर कोई भी हो... कैसी भी हो... उसकी नब्ज पकड़ना और पाठकों को उनके मन की बात समझाना कुमार सम्भव जैन की काबिलियत है. मुहब्बत की नगरी आगरा से मैंने पत्रकारिता की दुनिया में पहला कदम रखा, जो अदब के शहर लखनऊ में परवान चढ़ा. आगरा में अकिंचन भारत नाम के छोटे से अखबार में पत्रकारिता का पाठ पढ़ा तो लखनऊ में अमर उजाला ने खबरों से खेलना सिखाया. 

2010 में कारवां देश के आखिरी छोर यानी राजस्थान के श्रीगंगानगर पहुंचा तो दैनिक भास्कर ने मेरी मेहनत में जुनून का तड़का लगा दिया. यहां करीब डेढ़ साल बिताने के बाद दिल्ली ने अपने दिल में जगह दी और नवभारत टाइम्स में नौकरी दिला दी. एनबीटी में गुजरे सात साल ने हर उस क्षेत्र में महारत दिलाई, जिसका सपना छोटे-से शहर से निकला हर लड़का देखता है. साल 2018 था और डिजिटल ने अपना रंग जमाना शुरू कर दिया था तो मैंने भी हवा के रुख पकड़ लिया और भोपाल में दैनिक भास्कर पहुंच गया. 

झीलों के शहर की खूबसूरती ने दिल और दिमाग पर काबू तो किया, लेकिन जरूरतों ने वापस दिल्ली ला पटका और जनसत्ता में काफी कुछ सीखा. यह पहला ऐसा पड़ाव था, जिसकी आदत धारा के विपरीत चलना थी. इसके बाद अमर उजाला नोएडा में करीब तीन साल गुजारे और अब एबीपी न्यूज में बतौर फीचर एडिटर लोगों के दुख-दर्द और तकलीफ का इलाज ढूंढता हूं. करीब 18 साल के इस सफर में पत्रकारिता की दुनिया के हर कोने को खंगाला, चाहे वह रिपोर्टिंग हो या डेस्क... प्रिंटिंग हो या मैनेजमेंट... 

काम की बात तो बहुत हो चुकी अब अपने बारे में भी चंद बातें बयां कर देता हूं. मिजाज से मस्तमौला तो काम में दबंग दिखना मेरी पहचान है. घूमने-फिरने का शौकीन हूं तो कभी भी आवारा हवा के झोंके की तरह कहीं न कहीं निकल जाता हूं. पढ़ना-लिखना भी बेहद पसंद है और यारों के साथ वक्त बिताना ही मेरा पैशन है. 

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