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Explained: देश में कोयला संकट की हकीकत जानिए, क्या भारत पर मंडरा रहा अंधेरे में रहने का संकट?

देश में बिजली संकट की आशंका पर केंद्र और दिल्ली सरकार में ठन गई है. केंद्रीय ऊर्जा मंत्री ने कोयले की कमी की खबरों को खारिज किया तो सिसोदिया बोले आंखे बंद करने से संकट समाप्त नहीं होगा.

नई दिल्ली: भारत में इन दिनों कोयला संकट पर भारी कोहराम मचा है. इसकी वजह देश के ऊर्जा संयत्रों के पास कम स्टॉक का होना है. कोयले की कमी से देश में बड़े बिजली संकट की बात भी कही जा रही है. बिजली संकट की वजह से पहले चीन में हालात खराब हुए. लेबनान की राजधानी बेरूत में कल की पूरी रात लोगों को अंधेरे में बितानी पड़ी. अब भारत के करोड़ों लोगों पर भी अंधेरे में रहने का संकट मंडरा रहा है. जून में पावर प्लांट्स में 17 दिनों का कोयले का स्टॉक मौजूद था. जबकि अक्टूबर में कोयले से चलने वाले पावर प्लांट्स के पास सिर्फ 4 दिन का कोयले का स्टॉक है. लेकिन केंद्र सरकार कह रही है कि कोयले का कोई संकट नहीं है, देश में बिजली की कोई किल्लत नहीं आने वाली है.

ऊर्जा मंत्री बोले- ना तो देश में कोयले की कमी है और ना ही बिजली संकट आने वाला है
केंद्रीय उर्जा मंत्री ने एबीपी न्यूज से बात करते हुए कहा कि ना तो देश में कोयले की कमी है और ना ही बिजली संकट आने वाला है. ऊर्जा मंत्री ने कहा, ''आज की तारीख में 4 दिन से ज़्यादा का स्टॉक है, कल 1.8 मिलीयन टन की ज़रूरत थी उससे ज़्यादा का स्टॉक मिला, अभी 4 दिनों का स्टॉक है और धीरे धीरे बढ़ रहा है. 4 दिन का मतलब नहीं है कि 4 दिन बाद खत्म हो जाएगा. 4 दिन  में और स्टॉक आएगा और ये बढ़ जाएगा.'' केंद्रीय ऊर्जा मंत्री के मुताबिक कुछ महीनों पहले तक स्टॉक 17 दिनों का था लेकिन मॉनसून के मौसम की वजह से कोयला खदानों में पानी भर गया और ट्रेनों की आवाजाही में दिक्कत हुई जिसकी वजह से स्टॉक में कमी आई. पर अब हालात सामान्य हो रहे हैं और जल्द ही स्थिति पहले जैसी होगी. 

कई राज्यों ने कोयले की कमी की अपनी चिंता जाहिर की
केंद्रीय उर्जा मंत्री आर के सिंह भले ही दावा कर रहे हों कि ना तो कोयले का संकट है, ना ही बिजली की दिक्कत होने वाली है, लेकिन कई राज्यों ने केंद्र सरकार से कोयले की कमी की अपनी चिंता जाहिर कर दी है. खासकर दिल्ली की तरफ से मुखरता से आवाज उठायी गयी है पर केंद्रीय उर्जा मंत्री के मुताबिक दिल्ली में बिजली की कोई किल्लत नहीं है. आरके सिंह ने कहा, ''दिल्ली को जितनी ज़रूरत है उतनी बिजली मिल रही है और आगे भी मिलती रहेगी, टाटा ने मैसेज भेज कर पैनिक किया लिहाज़ा उनको चेतावनी दी गयी. अगर इस तरह से होगा तो उनको कार्रवाई होगी. ये ग़ैर ज़िम्मेदाराना है.''

ऊर्जा मंत्री के बयान से भड़के सिसोदिया
उर्जा मंत्री के इस बयान पर दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया भड़क गए. उन्होंने केंद्र सरकार पर गंभीर आरोप लगाते हुए यहां तक कह दिया कि संकट पर केंद्र आंख बंद कर लेती है. सिसोदिया ने कहा, ''ये कोल संकट सिर्फ कोल संकट नहीं है, ये पॉवर क्राइसिस है. कई मुख्यमंत्रियों ने चिठ्ठी लिखी. दिल्ली, पंजाब, आंध्र प्रदेश, पंजाब इन सरकारों ने कहा कि कोल संकट है, लेकिन ये मानने को तैयार नही है, अगर कोल संकट है तो कम से कम स्वीकार तो कीजिए.''

पावर प्लांट में कितना कोयला बचा ?
देश में पैदा होने वाली 70 फीसदी बिजली थर्मल पावर प्लांट से आती है, 135 पावर प्लांट कोयले से चलते हैं, इनमें से  7 अक्टूबर 2021 तक के आंकड़ों की बात करें तो 3 पावर प्लांट में 3 दिन से भी कम का कोयला बचा है. 69 प्लांट्स में 4 दिन से भी कम का कोयला बचा है. 13 प्लांट्स में 5 दिन से कम का कोयला बचा है. 23 प्लांट्स में 7 दिने से भी कम का कोयला बचा है.

ऊर्जा मंत्री को मिला कोयला मंत्री का साथ
उर्जा मंत्री की बातों को सही साबित करने के लिए उनके समर्थन में केंद्रीय कोयला मंत्री प्रह्लाद जोशी भी सामने आए. जोशी ने ट्वीट करके कोयला उत्पादन का हिसाब बताया.  प्रह्लाद जोशी ने अपने ट्वीट में लिखा, ''कोल इंडिया ने अब तक सबसे अधिक कोयला उत्पादन एवं आपूर्ति की है, इस वर्ष 263 एमटी कोयला उत्पादन के साथ CIL ने पिछले वर्ष की समान अवधि के मुकाबले 6.3% की वृद्धि दर्ज की है, साथ ही, 323 एमटी के साथ गत वर्ष से 9% अधिक कोल ऑफ-टेक किया है.''


 
कोयले को लेकर राज्यों में क्या है स्थिति?
महाराष्ट्र की बात करें तो बिजली उत्पादन में हुई कमी की वजह से दूसरी ग्रिड से बेहद महंगी बिजली खरीदनी पड़ रही है. जानकारी के मुताबिक महाराष्ट्र पावर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी ग्राहकों को ₹7 प्रति यूनिट के हिसाब से बिजली बेच रही है लेकिन पैदा हुए संकट ने दूसरी ग्रिड से सरकार को ₹20 प्रति यूनिट के हिसाब से बिजली खरीदने पर मजबूर कर दिया है. ये संकट इसलिए पैदा हुआ है, क्योंकि महाराष्ट्र में बिजली पैदा करने के लिए जितने कोयले की जरूरत है, उसका सिर्फ आधा कोयला ही मिल पा रहा है. महाराष्ट्र में रोजाना 1.5 लाख मीट्रिक टन कोयले की जरूरत है. अभी सिर्फ 75 हजार मीट्रिक टन कोयला मिल रहा है, तीन पावर प्लांट की 14 यूनिट्स बंद हो चुकी हैं.

बिहार की बात करें तो गया में पिछले एक हफ्ते से बिजली ज्यादा कट रही है, आम लोगों के साथ-साथ घर से दूर हॉस्टल में रहकर पढ़ाई कर रहे छात्र भी परेशान हैं. बिहार के बेगूसराय का  हाल भी देश से अलग नहीं है. बरौनी थर्मल पावर भी कोयले की किल्लत झेल रहा है, कुछ दिन पहले बेगूसराय में 22 घंटे बिजली रहती थी, लेकिन पिछले कुछ दिनों से बड़ी मुश्किल से 12 से 14 घंटे ही बिजली मिल रही है, और ये कटौती सिर्फ बिहार में ही नहीं हो रही है, बल्कि देश के कई राज्यों में इस वक्त बिजली काटी जा रही है.

पंजाब में बिजली आपूर्ति की स्थिति गंभीर बनी हुई है और राज्य के स्वामित्व वाली पीएसपीसीएल ने रविवार को कहा कि राज्य में 13 अक्टूबर तक रोजाना तीन घंटे तक बिजली कटौती की जाएगी. पंजाब के कई इलाकों में 4-4 घंटे की कटौती हो रही है.  देश के विभिन्न राज्यों की तरह उत्तर प्रदेश में भी बिजली उत्पादन के लिए कोयले का संकट गहराता जा रहा है. राज्य सरकार के एक प्रवक्ता ने बताया कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर राज्य में कोयले की आपूर्ति सामान्य कराने और प्रदेश को अतिरिक्त बिजली उपलब्ध कराने का आग्रह किया है.  पी के कई इलाकों में 4-5 घंटे की कटौती हो रही है. वहीं राजस्थान में राजधानी जयपुर सहित कई इलाकों में 4 घंटे की कटौती हो रही है

कोयले के दामों में आए उछाल के लिए चीन भी जिम्मेदार!
भारतीय अर्थव्यवस्था का इंजन जिस बिजली से दौड़ता है उसका आधा हिस्सा  कोयले से बनने वाली ऊर्जा से आता है. मौजूदा बिजली संकट की एक बड़ी वजह जहां घरेलू कोयला उत्पादन में आई गिरावट है, वहीं अंतरराष्ट्रीय बाजार में कोयले के दामों में आई तेजी भी इसकी वजह है.  ऊर्जा मंत्रालय के मुताबिक कोयले के दाम बीते 6 महीनों के दौरान ही 60 से 160 डॉलर प्रति टन तक पहुंच चुके हैं, अब इतने महंगे कोयले का आयात तो संभव है नहीं. अंतरराष्ट्रीय बाजार में कोयले के दामों में आए उछाल के लिए चीन की कारिस्तानी भी है. चीन ने मई में  21 मिलियन टन  और जून में 28 मिलियन टन कोयले का आयात किया. इंडोनेशिया का अधिकतर स्टॉक भी चीन ने ही खरीद लिया. 

 भारत के कोयला संकट के पीछे अंतरराष्ट्रीय समीकरण
इतना ही नहीं ऑस्ट्रेलिया के कोयले से लदे जहाजों को अपने बंदरगाहों के करीब महीनों रोके रखा. दरअसल चीन अपने फैक्ट्री उत्पादन और आर्थिक इंजन की रफ्तार बढ़ा रहा है.  कोरोना संकट के दौरान दुनिया भर से चीनी फैक्ट्रियों में जरूरी सामानों के ऑर्डर की डिमांड आ रही है. चीन के बाद भारत कोयले की खपत वाला दूसरा सबसे बड़ा देश है. लिहाजा भारत की चुनौती बड़ी है. वैसे भारत के कोयला संकट को गहराने में जहां अंतरराष्ट्रीय समीकरणों ने भूमिका निभाई वहीं देश के भीतर मौजूद कारण भी इसकी वजह रहे. जिसने खदानों से लेकर बिजली संयंत्रों तक सप्लाई की लय गड़बड़ा दिया.

कोयले पर मौसम की भी मार पड़ी
जनवरी से मई के बीच कोल इंडिया जैसी कंपनियां सबसे ज्यादा उत्पादन करती हैं. उस दौरान देश में कोरोना का दूसरी लहर चल रही थी. जब हालात में सुधार हुआ, आर्थिक इंजन ने रफ्तार पकड़ी, उस वक्त बारिश हो गई. झारखंड, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, मध्यप्रदेश में सितंबर तक बारिश हुई, जिससे कोयला ढुलाई का काम और भी ज्यादा मुश्किल हो गया. भारत की स्थापित बिजली उत्पादन क्षमता 384 गीगा वॉट है. इस उत्पादन क्षमता का 52 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा कोयले से चलने वाले ऊर्जा संयंत्रों से आता है.

केंद्रीय बिजली प्राधिकरण के आंकड़े बताते हैं कि भारत अपनी जरूरत के 90 फीसदी से अधिक कोयला की आपूर्ति देश से ही करता है. भारत जरूरत के हिसाब से इंडोनेशिया और ऑस्ट्रेलिया से कोयले का आयात करता है. कोरोना काल में बिजली मांग में भी तेजी आई. चीन ने अपनी चाल चली और देश में भी कोरोना और बारिश की वजह से देश में कोयला की कमी हो गई. 

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