दसाल्ट सीईओ ने कहा- राफेल में कोई घोटाला नहीं, भविष्य में भी भारत से डील के लिए तैयार
लड़ाकू विमान निर्माता कंपनी दसाल्ट एविऐशन के सीईओ एरिक ट्रैप्पियर ने कहा कि भारत ने साल 2018 में 110 विमानों के सौदे के लिए शुरुआती निविदा जारी की थी. उन्होंने कहा कि इस डील के दौर में दसाल्ट एविऐशन शामिल है.

बेंगलुरू: राफेल लड़ाकू विमान बनाने वाली कंपनी दसाल्ट एविऐशन के सीईओ ने भारत के साथ हुए सौदे में कोई घोटाला नहीं होने की बात कही है. कंपनी के सीईओ एरिक ट्रैप्पियर ने कहा कि भारतीय वायु सेना के लिए 110 विमानों की आपूर्ति की दौड़ में वह भी शामिल है, जिसके लिए सरकार ने पिछले साल एक आरएफआई (शुरूआती निविदा) जारी की थी.
इस सौदे की शुरूआती निविदा छह अप्रैल, 2018 को जारी की गई थी. यह लड़ाकू विमानों की पहली बड़ी खरीद की पहल थी. लगभग छह साल पहले 126 ‘मीडियम मल्टी रोल कॉम्बैट एयरक्राफ्ट’ (एमएमआरसीए) खरीदने की प्रक्रिया सरकार द्वारा रद्द करने के बाद यह कदम उठाया गया था.
एनडीए सरकार ने 36 राफेल दोहरे इंजन वाले लड़ाकू विमानों की खरीद के लिए सितंबर 2016 में फ्रांस सरकार के साथ 7.87 अरब यूरो (करीब 59,000 करोड़ रूपये) के एक सौदे पर हस्ताक्षर किए थे. दसाल्ट एविऐशन के सीईओ एरिक ट्रैप्पियर ने कहा, ‘‘राफेल सौदे में कोई घोटाला नहीं हुआ है. हम 36 विमानों की आपूर्ति करने जा रहे हैं. यदि भारत सरकार और अधिक विमान चाहती है तो हमें इसकी आपूर्ति करने में खुशी होगी.’’
सीईओ एरिक ट्रैप्पियर ने कहा कि 110 विमानों के लिए एक आरएफआई भी है और हम इस दौड़ में हैं क्योंकि हमें लगता है कि राफेल सर्वश्रेष्ठ विमान है और भारत में हमारा फुटप्रिंट है. इसलिए भारत में हम आश्वस्त हैं.’’ यह पूछे जाने पर कि दसाल्ट ने रक्षा उपकरण बनाने में रिलायंस के पास अनुभव के अभाव के बावजूद उस कंपनी के साथ साझेदारी क्यों की, ट्रैप्पियर ने कहा, ‘‘हां. लेकिन मेरे पास अनुभव है. मैं यह जानकारी और अनुभव भारतीय टीम को हस्तांतरित कर रहा हूं.’’
एक नई कंपनी दसाल्ट रिलायंस एयरोस्पेस लिमिटेड (डीएआरएल) द्वारा भारतीय टीम नियुक्त की गई है. वे भारत और कंपनी के लिए अच्छे हैं. इसलिए समस्या कहां है? गौरतलब है कि इस सौदे को लेकर एक राजनीतिक विवाद छिड़ गया है. दरअसल, कांग्रेस लगातार नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार पर आरोप लगा रही है कि वह राफेल विमानों की अधिक कीमत वाले सौदे के जरिए उद्योगपति अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस को फायदा पहुंचा रही है.
विपक्ष ने 2019 के लोकसभा चुनाव को लेकर अपने प्रचार अभियान में भी इस मुद्दे को शामिल किया है. उल्लेखनीय है कि भारत ने 2016 में राफेल के लिए फ्रांस के साथ एक सौदे पर हस्ताक्षर किया था. रिलायंस के पास वित्तीय संकट होने के बावजूद उसके साथ साझेदारी पर दसाल्ट के आगे बढ़ने के बारे में पूछे जाने पर ट्रैप्पियर ने कहा, ‘‘उनके अपने खुद के विषय हैं, लेकिन हम साथ मिल कर काम कर रहे हैं.’’
ट्रैप्पियर ने कहा कि रिलायंस को इसलिए चुना क्योंकि वह चाहते थे कि भारत में फ्रांसीसी विमान के पुर्जे बनें. उन्होंने कहा, ‘‘मैंने यहां भारत में सुविधाएं तैयार करने के लिए अपना धन निवेश किया और मैंने साझेदार पाए.’’ एनडीए सरकार के दौरान यूपीए शासन की तुलना में राफेल की कीमतों में काफी वृद्धि होने के बारे में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के आरोप पर ट्रैप्पियर ने कहा कि दोनों देशों ने मूल कीमत में करीब नौ फीसदी की कमी की है.
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