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नागरिकता संशोधन बिल: अमित शाह लोकसभा में पेश करेंगे विधेयक, जोरदार विरोध करेगी कांग्रेस

सोमवार को लोकसभा में नागरिकता (संशोधन) विधेयक पेश होने से पहले रविवार को सोनिया गांधी ने वरिष्ठ नेताओं की बैठक बुलाई. बैठक के बाद अधीर रंजन चौधरी ने कहा कि कांग्रेस CAB का पुरजोर विरोध करेगी.

नई दिल्ली: केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह सोमवार को लोकसभा में नागरिकता संशोधन विधेयक (CAB) पेश करेंगे. लोकसभा में सत्तारूढ़ दल के पास बहुमत का आंकड़ा है और बिल को आसानी से मंजूरी मिल जाएगी. लोकसभा में सोमवार को होने वाले कार्यों की सूची के मुताबिक गृह मंत्री दोपहर में विधेयक पेश करेंगे जिसमें छह दशक पुराने नागरिकता कानून में संशोधन की बात है और इसके बाद इस पर चर्चा होगी.

नागरिकता संशोधन विधेयक को लेकर कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दलों ने कहा है कि वे बिल का विरोध करेंगे. लोकसभा में पार्टी के नेता अधीर रंजन चौधरी ने रविवार को पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी के 10 जनपथ आवास पर कांग्रेस संसदीय रणनीतिक समूह की बैठक के बाद कहा कि कांग्रेस विधेयक का पुरजोर विरोध करेगी. उन्होंने कहा कि यह विधेयक देश के संविधान और पार्टी के धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के खिलाफ है.

चौधरी के अलावा राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद, लोकसभा में मुख्य सचेतक कोडिकुन्नील सुरेश और सचेतक गौरव गोगोई सहित अन्य ने बैठक में हिस्सा लिया.

माकपा महासचिव सीताराम येचुरी ने कहा कि संसद में नागरिकता (संशोधन) विधेयक पेश किए जाने पर पार्टी इसमें दो संशोधन लाएगी क्योंकि वह विधेयक के मौजूदा स्वरूप का विरोध करती है. येचुरी ने कहा कि पार्टी दो संशोधन ला कर उन सभी शर्तों को हटाने की मांग करेगी, जो धर्म को नागरिकता प्रदान करने का आधार बनाते हैं.

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उन्होंने कहा, ‘‘हम धर्म के आधार पर, वह भी तीन देशों के लोगों को नागरिकता देने वाले नागरिकता (संशोधन) विधेयक का पुरजोर विरोध करते हैं.’’ उन्होंने कहा कि भारत समान रूप से सभी धर्मों का घर है और सभी धर्मों के लोगों के साथ अवश्य ही समान व्यवहार होना चाहिए.

बीजेपी ने किया बचाव बीजेपी महासचिव राम माधव ने नागरिकता संशोधन विधेयक (कैब) का बचाव करते हुए कहा कि पड़ोसी देशों में सताए गए अल्पसंख्यकों को नागरिकता देना भारत का कर्तव्य है क्योंकि वे धर्म के आधार पर देश का बंटवारा करने के फैसले के ‘पीड़ित’ हैं. राजनीतिक दलों की ओर से की जा रही आलोचना का जवाब देते हुए माधव ने कहा कि इसी तरह का कानून आव्रजक (असम से निर्वासन) अधिनियम 1950 में पंडित जवाहर लाल नेहरू की तत्कालीन सरकार ने बनाया था.

माधव ने कहा, ‘‘मैं नागरिकता संशोधन विधेयक के आलोचकों को याद दिला दूं, नेहरू सरकार ने अवैध प्रवासियों को खासतौर पर पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) से आए लोगों को निर्वासित करने के लिए 1950 में इसी तरह का कानून बनाया था और उसमें स्पष्ट रूप से कहा गया था कि पूर्वी पाकिस्तान से आने वाले अल्पसंख्यक इसके दायरे में नहीं आएंगे.’’

पूर्वोत्तर में विरोध इस विधेयक के कारण पूर्वोत्तर के राज्यों में व्यापक प्रदर्शन हो रहे हैं और काफी संख्या में लोग तथा संगठन विधेयक का विरोध कर रहे हैं. उनका कहना है कि इससे असम समझौता 1985 के प्रावधान निरस्त हो जाएंगे जिसमें बिना धार्मिक भेदभाव के अवैध शरणार्थियों को वापस भेजे जाने की अंतिम तिथि 24 मार्च 1971 तय है.

ऑल अरुणाचल प्रदेश छात्र संघ (आपसू) ने नागरिकता (संशोधन) विधेयक-2019 के खिलाफ मंगलवार को एनईएसओ की ओर से पूर्वोत्तर राज्यों में बुलाए गए बंद का समर्थन किया है. ‘आपसू’ ने रविवार को राज्य के लोगों से अपील की कि वे इस प्रदर्शन का समर्थन करें. पूर्वोत्तर राज्यों के सभी छात्र निकाय पूर्वोत्तर छात्र संगठन (एनईएसओ) के घटक हैं. एनईएसओ ने मंगलवार को सुबह पांच बजे से लेकर शाम चार बजे तक बंद का आह्वान किया है.

बिल में क्या है प्रावधान नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2019 के मुताबिक पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान में धार्मिक उत्पीड़न के कारण 31 दिसम्बर 2014 तक भारत आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई समुदाय के लोगों को अवैध शरणार्थी नहीं माना जाएगा बल्कि उन्हें भारतीय नागरिकता दी जाएगी. इसमें मुस्लिम वर्ग का जिक्र नहीं है.

यह विधेयक 2014 और 2019 के लोकसभा चुनावों में भाजपा का चुनावी वादा था. बीजेपी नीत एनडीए सरकार ने अपने पूर्ववर्ती कार्यकाल में इस विधेयक को लोकसभा में पेश किया था और वहां पारित करा लिया था. लेकिन पूर्वोत्तर राज्यों में प्रदर्शन की आशंका से उसने इसे राज्यसभा में पेश नहीं किया. पिछली लोकसभा के भंग होने के बाद विधेयक की मियाद भी खत्म हो गयी.

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