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कांग्रेस का वो सिपाही जिसने उसे फर्श से अर्श पर पहुंचाया, जानें भूपेश बघेल के पूरे संघर्ष के बारे में

साल 2000 में जब छत्तीसगढ़ राज्य बना था तो बघेल पहली बार पाटन सीट से जीतकर विधानसभा पहुंचे थे. इस दौरान वह राज्य के कैबिनेट मंत्री भी रहे. साल 2003 में कांग्रेस पार्टी राज्य में सत्ता से बाहर हो गई तो उन्हें विपक्ष का उपनेता बनाया गया.

रायपुर: छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को फर्श से अर्श तक पहुंचाने का माद्दा दिखाने वाले भूपेश बघेल अब राज्य की बागडोर संभालने जा रहे हैं. कांग्रेस विधायक दल की बैठक में उन्हें नेता चुना गया और अब वह सोमवार की शाम को राज्य के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे. छत्तीसगढ़ में पिछले 15 सालों से सत्तासीन रही बीजेपी की सरकार इस बार बेदखल हो गई और सत्ता की चाभी कांग्रेस के हाथों आई. बरसों से राज्य में जीत के लिए तरस रही कांग्रेस को 68 सीटों पर जीत दिलाने में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल की बड़ी भूमिका रही.

57 साल के भूपेश बघेल ने ऐसे समय पर कांग्रेस का राजनीतिक वनवास दूर किया है जब पांच साल पहले एक भीषण नक्सली हमले में राज्य कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व का सफाया हो गया था. राज्य में अन्य पिछड़ा वर्ग के अंतर्गत आने वाला कुर्मी समुदाय प्रभावशाली माना जाता है. राज्य की कुल आबादी में इस समुदाय की हिस्सेदारी 14 फीसदी है. भूपेश बघेल राज्य के इसी बहुसंख्यक अन्य पिछड़ा वर्ग के कुर्मी समाज से आते हैं जो राज्य की राजनीति में काफी दखल रखता है.

छत्तीसगढ़ में बीजेपी की सरकार के दौरान भूपेश लगातार विवादों में रहे, लेकिन जनता की नजर में कांग्रेस में वह एकमात्र ऐसे नेता हैं जिन्होंने सरकार के खिलाफ और खासकर तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह के खिलाफ मोर्चा खोला था. साल 2013 में जब छत्तीसगढ़ में विधानसभा का चुनाव होना था तब कांग्रेस की कमान नंद कुमार पटेल के हाथ में थी. पटेल को कांग्रेस का तेज तर्रार नेता माना जाता था. पटेल ने जनता के मत को भांप कर परिवर्तन यात्रा की शुरू की थी. इस यात्रा के दौरान 25 मई 2013 को जीरम घाटी में नक्सली हमले में पटेल समेत कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेताओं की मृत्यु हो गई.

ऐसे में जब कांग्रेस की प्रथम पंक्ति मारी जा चुकी थी और राज्य में बीजेपी ने एक बार फिर से सरकार बना ली थी, तब दिसंबर 2013 में कांग्रेस आलाकमान ने प्रदेश कांग्रेस की जिम्मेदारी बघेल को सौंपी थी. यह ऐसा समय था जब कांग्रेस के कायकर्ता निराश थे. साल 2014 में जब लोकसभा का चुनाव हुआ तब कांग्रेस को यहां लाभ नहीं हुआ और मोदी लहर के कारण कांग्रेस यहां 11 में से 10 सीटों पर हार गई.

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लेकिन इसके बावजूद कांग्रेस आलाकमान ने भूपेश बघेल पर भरोसा जताया और पांच सालों तक वह लगातार मेहनत करते रहे. भूपेश के सामने इस दौरान पार्टी के भीतर ही सबसे बड़ी चुनौती थी. यह चुनौती थी उनके पुराने प्रतिद्वंदी पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी. राज्य निर्माण के बाद जब यहां अजीत जोगी के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी तब भूपेश राजस्व मंत्री बनाए गए. जोगी और बघेल के मध्य विवाद होता रहा. साल 2013 में भूपेश के प्रदेश अध्यक्ष बनने के बाद जोगी ने इसका सबसे अधिक विरोध किया था.

जब 2015—16 में अंतागढ़ उप चुनाव को लेकर कथित सीडी का मामला हुआ तब अजीत जोगी के पुत्र अमित जोगी को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. इसे भूपेश बघेल की बड़ी जीत के रूप में देखा गया. बाद में अजीत जोगी ने जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ :जे: के नाम से नई का पार्टी का गठन कर लिया. भूपेश बघेल इस पार्टी को हमेशा बीजेपी की बी टीम कहते रहे हैं.

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जोगी पिता पुत्र के पार्टी से बाहर जाने के बाद भी भूपेश बघेल के लिए परेशानी कम नहीं हुई और वह लगातार अपने ही विधायकों और नेताओं से लड़ते रहे. हालांकि इस दौरान राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी का साथ भी उन्हें मिलता रहा. इधर सरकार के मुखर विरोधी होने के कारण भूपेश बघेल को कठिनाई का सामना करना पड़ा. बघेल, उनकी पत्नी और मां के खिलाफ आर्थिक अपराध अन्वेषण शाखा में मामला दर्ज हुआ तब बघेल परिवार समेत गिरफ्तारी देने इस शाखा के दफ्तर में पहुंच गए.

बघेल लगातार राज्य सरकार के खिलाफ पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को लेकर आंदोलन करते रहे. वह भ्रष्ट्राचार, चिटफंड कंपनी और किसानों के मुद्दे उठाते रहे और पीडीएस घोटाले को लेकर मुख्यमंत्री रमन सिंह और उसके परिवार पर लगातार निशाना साधते रहे. इस दौरान उन्होंने पनामा पेपर का मामला उठाया और मुख्यमंत्री के सांसद पुत्र को भी घेरने की कोशिश की.

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इस बीच, विवादों ने उनका पीछा नहीं छोड़ा. पिछले साल जब राज्य के लोक निर्माण विभाग के तत्कालीन मंत्री राजेश मूणत का कथित अश्लील सीडी का मामला सामने आया तब वह पत्रकार विनोद वर्मा के साथ खड़े हो गए. वर्मा को राज्य की पुलिस ने सीडी मामले में गाजियाबाद से गिरफ्तार किया था. इस मामले में भूपेश बघेल के खिलाफ भी अपराध दर्ज हुआ और मामला सीबीआई को सौंप दिया गया. मामला जब अदालत में पहुंचा तब बघेल ने जमानत नहीं लेकर जेल जाना पसंद किया. उन्होंने जनता को यह बताने की कोशिश की कि सरकार के खिलाफ लड़ाई की वजह से वह जेल भेजे गए हैं.

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राज्य में भूपेश बघेल की छवि कांग्रेस के तेज तर्रार नेता की है जिन्होंने नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंह देव के साथ मिलकर लगातार हार के कारण निराश संगठन में फिर से नई जान फूंकी. बघेल का जन्म 23 अगस्त साल 1961 में दुर्ग जिले के सभ्रांत किसान परिवार में हुआ. उन्होंने अपने राजनीतिक जीवन की शुरूआत 80 के दशक में की थी. वह लगातार कांग्रेस के कार्यक्रमों और आंदालनों में शामिल होते रहे.

बघेल के कार्यों को देखकर पार्टी ने साल 1993 में उन्हें टिकट दी और वह पाटन विधानसभा क्षेत्र से चुनाव जीत गए. बाद में वह 1998 और 2003 में भी क्षेत्र से विधायक रहे. साल 2008 में वह चुनाव हार गए थे. इस चुनाव में बीजेपी के विजय बघेल ने उन्हें हराया था. हार के बाद बघेल को साल 2009 में रायपुर लोकसभा सीट से पार्टी ने उम्मीदवार बनाया लेकिन वह रमेश बैस से चुनाव हार गए. बघेल पर पार्टी ने एक बार फिर भरोसा जताया और साल 2013 के विधानसभा चुनाव में उन्हें जीत मिली.

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साल 2013 में प्रदेश कांग्रेस की कमान मिलने के बाद भूपेश बघेल ने पार्टी को एकजुट किया और सरकार के खिलाफ भी मोर्चा खोला. राज्य सरकार और उनके खास अधिकारियों पर हमलों के कारण बघेल को परेशानी का सामना करना पड़ा लेकिन इससे पार्टी के कार्यकर्ता एकजुट हो गए. इस एकजुटता का परिणाम है कि लंबे अंतराल के बाद कांग्रेस की सत्ता में वापसी हो सकी. इसका श्रेय भूपेश बघेल को जाता है.

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