बारिश में इश्क की खुमारी और असल जिंदगी की परेशानी, पढ़ें शायरों की बेहतरीन शायरी
दिल में पड़े मुहब्बत के बीज को अक्सर आंसू से ही सींचा जाता है और अगर मुहब्बत में शायर हिज्र में हो तो वह ख़ूब लिखता है. ऐसे ही कुछ शेर बरसात शायरों ने कहा है. आइए जानते हैं वह सायरी कौनृ-कौन सी है..

नई दिल्ली: बरसात एक ऐसा मौसम है जो प्यार करने वालों को सबसे ज्यादा प्रभावित करता है. बरसात को देखकर और बरसात में भीगकर जो खुशी मिलती है वह बिलकुल वैसी ही होती है जैसी खुशी किसान को लहलहाती फसलें देखकर मिलती है, जैसी खुशी व्यापारी को भरे गोदाम को देखकर मिलती है, जैसी खुशी प्रेमी को प्रेयसी को देखकर मिलती है. जैसी खुशी आंगन को बेटी के पीहर से वापस आने पर होती है और जैसी खुशी दोस्तों को चाय-पकौड़े के साथ बातचीत करने में होती है.
अचानक बरसात में किसी की याद से दिल उदास हो जाता है तो कहीं माहौल खुशनुमा हो जाता है. बरसात के मौसम में घुमड़ते बादल, कड़कती बिजली, प्रेमियों की रिझातीं मद्धिम-मद्धिम फुहारें और गर्मी से जल चुकी जमीन के हृदय को आकाशीय प्रेम की बूंदों से तृप्त कर देती है. बरसात में हर किसी का मन प्रफुल्लित हो उठता है.
बरसात जितनी आम लोगों के लिए खास होती है उतनी ही शायरों और लेखकों के लिए भी. शायरों के अनगिनत शेर बरसात पर मौजूद हैं. कुछ शेरों में दिलों की ख़्वाहिशें अंगड़ाई लेती है तो कुछ में भीगी मिट्टी की महक का एहसास झलकता है, कुछ में किसी गरीब के कच्चे मकान के ढ़हने का दर्द बयां होता है तो कुछ में घटा देख कर ख़ुश हुईं लड़कियां जब नाचती है तो उनके आजाद होने का एहसास शायर करता है.
आइए पढ़ते हैं ऐसे कुछ शेर जो बरसात पर शायरों ने लिखे हैं..
आइए नजर डालते हैं कुछ ऐसे अ'शार पर जिनमें इश्क है, हुस्न है, अदा है और एक बेशबहा तड़प... चाहत और दीदार की कसक भी.. भीगने का सलीका और महबूबा से इसे देखने की चाहत भी.
उस ने बारिश में भी खिड़की खोल के देखा नहीं भीगने वालों को कल क्या क्या परेशानी हुई -जमाल एहसानी
प्यासो रहो न दश्त में बारिश के मुंतज़िर मारो ज़मीं पे पांव कि पानी निकल पड़े -इक़बाल साजिद
मैं वो सहरा जिसे पानी की हवस ले डूबी तू वो बादल जो कभी टूट के बरसा ही नहीं -सुल्तान अख़्तर
क्यूं मांग रहे हो किसी बारिश की दुआएं तुम अपने शिकस्ता दर-ओ-दीवार तो देखो -जाज़िब क़ुरैशी
अब भी बरसात की रातों में बदन टूटता है जाग उठती हैं अजब ख़्वाहिशें अंगड़ाई की -परवीन शाकिर
टूट पड़ती थीं घटाएँ जिन की आँखें देख कर वो भरी बरसात में तरसे हैं पानी के लिए - सज्जाद बाक़र रिज़वी
बरसात के आते ही तौबा न रही बाक़ी बादल जो नज़र आए बदली मेरी नीयत भी - हसरत मुहानीहर शेर में सिर्फ इश्क और हुस्न ही नहीं है, बल्कि असल जिंदगी की मुश्किल और परेशानी का भी जिक्र है... हालांकि, यहां भी रिश्ता मुहब्बत से टूटता नहीं, बल्कि यूं कहें कि छूटने से भी छूटता नहीं.
न जाने बादलों के दरमियान क्या साजिश हुई मेरा घर मिट्टा का था मेरे ही घर बारिश हुई
कच्चे मकान जितने थे बारिश में बह गए वर्ना जो मेरा दुख था वो दुख उम्र भर का था -अख़्तर होशियारपुरी
बरसात का बादल तो दीवाना है क्या जाने किस राह से बचना है किस छत को भिगोना है - निदा फ़ाज़ली
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