गाजा पर तो था इजरायल का कब्जा, फिर छोड़ क्यों दिया?
इजरायल ने 1967 में ही गाजा पर अपना कब्जा जमा लिया था. अब गाजा पट्टी पर शासन तो इजरायल का था, लेकिन लोग तो वहां फिलिस्तीन के ही थे, जिनपर इस जंग से पहले इजिप्ट का शासन था.

इजरायल और हमास के बीच पिछले दो साल से जो जंग चल रही है, उसमें इजरायल का इकलौता मकसद था हमास का खात्मा ताकि बदला पूरा हो सके. हमास का खात्मा तब होगा जब हमास के कब्जे वाले गाजा पट्टी पर इजरायल का कब्जा होगा. अब इजरायल उसी दिशा में आगे भी बढ़ रहा है. गाजा पर कब्जे को लेकर इजरायली सेना के मुखिया आयल जमीर और इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के बीच भी तू-तू-मैं-मैं हो चुकी है.
इजरयाल की जनता भी अब इस जंग से त्रस्त है और चाहती है कि किसी भी कीमत पर जंग खत्म हो और जंग खत्म होने की इकलौती कीमत गाजe पर इजरायल का कब्जा ही है, लेकिन गाजा पर तो इजरायल पहले भी कब्जा कर चुका है. पहले भी इजरायल गाजा पट्टी में अपनी बस्तियां तक बसा चुका है. 11 साल तक शासन कर चुका है. फिर अचानक ऐसा क्या हुआ कि इजरायल ने गाजा पट्टी पर अपना दावा छोड़ दिया और अब इजरायल को अपनी गलती का एहसास हुआ तो फिर से उसी गाजा पट्टी पर कब्जे के लिए इतना खून बहा रहा है कि पूरी दुनिया ही इस जंग की आग से तप रही है?
अपने गठन के बाद से ही इजरायल को अरब देशों का आक्रमण झेलना पड़ रहा था. कई लड़ाइयां लड़ने के बाद 1967 में इजरायल ने अरब देशों से एक और जंग लड़ी और वो जंग निर्णायक थी, जिसने दुनिया का नक्शा ही बदल दिया. इस जंग को सिक्स डे वॉर या जून वॉर कहा जाता है, जिसके खात्मे के बाद इजरायल ने इजिप्ट के कब्जे वाले गाजा पट्टी और सिनाई प्रायद्वीप, जॉर्डन से वेस्ट बैंक और येरुशलम और सीरिया से गोलान हाईट्स तक जीत लिया.
इजरायल ने 1967 में ही गाजा पर अपना कब्जा जमा लिया था. अब गाजा पट्टी पर शासन तो इजरायल का था, लेकिन लोग तो वहां फिलिस्तीन के ही थे, जिनपर इस जंग से पहले इजिप्ट का शासन था. तो इजरायल को इस गाजा पट्टी में अपनी हुकूमत चलाने के लिए मुश्किलें हो रही थीं. इस बीच अरब लीग ने इजरायल को हराने की एक और कोशिश की ताकि 1967 में हुए नुकसान की भरपाई की जा सके. 1973 में हुई इस जंग में इजरायल का कोई खास नुकसान नहीं हुआ, बल्कि हर बार की तरह इस बार भी अरब देशों को ही मुंह की खानी पड़ी.
सबसे ज्यादा नुकसान इजिप्ट का हुआ, जिससे पहले भी इजरायल गाजा पट्टी छीन चुका था. तो इजिप्ट को जंग के खात्मे के बाद समझ आ गया कि बार-बार इजरायल से लड़ने में इजिप्ट का फायदा नहीं बल्कि नुकसान ही है. इजरायल को भी समझ में आ गया कि अरब देशों को हराकर उनकी जमीन पर इजरायल कब्जा भले ही कर ले, लेकिन वहां हुकूमत करना आसान नहीं है. ऐसे में इजिप्ट और इजरायल समझौते की टेबल पर आने को राजी हो गए, जिसमें अमेरिका ने भी मदद की.
अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर की पहल पर इजिप्ट के राष्ट्रपति अनवर सादात ने इजरायल के प्रधानमंत्री मेनाकेम बेगिन से अमेरिका के कैंप डेविड में मुलाकात की, बात की और समझौता हो गया. हमेशा एक दूसरे से लड़ने वाले अलग-अलग मुल्कों के दो राष्ट्राध्यक्ष इस कदर शांति पर सहमत हुए कि उस साल यानि कि साल 1978 में दोनों को ही शांति के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित कर दिया गया. दरअसल इजरायल और फिलिस्तीन दोनों ही इस बात पर राजी हो गए थे कि गाजा पट्टी को स्वतंत्रता दी जाएगी और वहां का शासन गाजा पट्टी के ही लोग चलाएंगे, जिसमें न तो इजरायल का दखल होगा और न ही इजिप्ट का, लेकिन इस समझौते पर पूरी तरह से अमल हो नहीं पाया, क्योंकि पहले शेख अहमद यासीन के बनाए मुजम्मा अल इस्लामिया और फिर उसी के हथियारबंद संगठन हमास के जरिए इज़रायल ने गाजा पट्टी पर अपना कब्जा बरकरार ही रखा.
फिर जब हमास इजरायल के खिलाफ बागी हो गया और उसने अपने ही आका को चुनौती दे दी तो इजरायल ने वेस्ट बैंक के राजनीतिक संगठन फिलिस्तीन लिबरेशन ऑर्गनाइजेशन और उसके मुखिया यासिर अराफात से समझौता किया. साल 1993 में पीएलओ ने इजरायल को मान्यता दी और अलग देश माना तो वहीं इजरायल ने भी पीएलओ को मान्यता दे दी और इन दोनों के बीच का समझौता भी अमेरिका की पहल पर ही हुआ, जिसमें खुद तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन मौजूद थे. इसके बाद भी कई और समझौते हुए, जिसमें इजरायल और पीएलओ के बीच बातचीत हुई, जो पूरे फिलिस्तीन में शांति स्थापित करती हुई नजर आ रही थी.
साल 2004 आते-आते इजरायल को ये समझ में आ गया कि अब गाजा पट्टी से निकलने में ही उसकी भलाई है क्योंकि एक तो गाजा पट्टी की जनसंख्या लगातार बढ़ती जा रही है, जिसपर नियंत्रण रखने के लिए इजरायल को पैसे और संसाधन सब खर्च करने पड़ रहे हैं. बीच-बीच में उसे हमास से भी चुनौती मिल ही रही थी, जिसकी वजह से इजरायल की मुसीबतें कम होने की बजाय बढ़ती जा रही थीं. नतीजा ये हुआ कि साल 2004 में इजरायल के तत्कालीन प्रधानमंत्री एरियल शेरोन ने गाजा पट्टी से बाहर निकलने का फैसला कर लिया. उन्होंने गाजा को फिलिस्तीनियन अथॉरिटी के जिम्मे छोड़ दिया और कहा-
''ये एक ऐसा फैसला है जो इजरायल की सुरक्षा, अंतरराष्ट्रीय स्थिति, अर्थव्यवस्था और इजरायल में रहने वाले यहूदी लोगों के लिए अच्छा है.''
जिस वक्त एरियल शेरोन ने ये फैसला लिया, उस वक्त गाजा पट्टी में करीब 13 लाख लोग रहते थे. इनमें से भी करीब 99.06 फीसदी ऐसे लोग थे, जो फिलिस्तीनी थे और महज 0.04 फीसदी लोग ही यहूदी मूल के थे. लिहाजा इजरायल को गाजा खाली करने में कोई दिक्कत नहीं हुई. उसके जो लोग थे, उनकी आबादी 10 हजार से भी कम थी और इजरायल ने उन सभी लोगों को गाजा से निकालकर इजरायल में अलग-अलग जगहों पर शिफ्ट कर दिया. आखिरकार 15 सितंबर, 2005 को इजरायल ने गाजा को पूरी तरह से खाली कर दिया. उस तारीख को इजरायली डिफेंस फोर्स का एक भी जवान गाजा में मौजूद नहीं था.
इस बात को करीब 20 साल का वक्त बीत गया है. 20 साल पहले इजरायल ने जिस गाजा की सत्ता फिलिस्तीनियन अथॉरिटी को सौंपी थी, हमास ने दो साल के अंदर ही साल 2007 में वो छीन ली और खुद उसपर कब्जा कर दिया. इस बात को भी 18 साल बीत गए हैं और इस दरम्यान हमास ने अपनी ताकत इस कदर बढ़ा ली कि उसने इजरायल पर ही हमला कर दिया, जिसके बाद ये जंग शुरू हुई. नतीजा फिर से इजरायल को उसी गाजा पर कब्जा करने की जंग लड़नी पड़ रही है जिसे उसने अपनी मर्जी से खाली किया था.
इस लड़ाई को चलते दो साल हो चुके हैं. हजारों लोग मारे जा चुके हैं. लाखों लोग घायल हैं. कई लाख लोग गाजा छोड़कर विस्थापित हो चुके हैं. बच्चे भूखे-प्यासे दम तोड़ रहे हैं. इजरायली सेना धीरे-धीरे गाजा में अंदर तक दाखिल होती जा रही है. गाजा पर इजरायली कब्जा बढ़ने के साथ-साथ तबाही भी बढ़ती जा रही है और हम-आप बेबसी के साथ इस जंग के गवाह बने हुए हैं.
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Source: IOCL
























