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जब अतीक अहमद को सुनाई जा रही थी सजा, काले कोट पहने कुछ लोग किसे कर रहे थे मैसेज?

अतीक अहमद को उमेश पाल अपहरण कांड मामले में उम्रकैद की सजा सुनाई है. उसे प्रयागराज से फिर साबरमती जेल भेज दिया गया है.

तारीख 28 मार्च...जगह एमपी-एमएलए कोर्ट...शहर प्रयागराज, कठघरे में खड़ा था अतीक अहमद जिस पर उमेश पाल के अपहरण केस में सजा सुनाई जा रही थी. अदालत में भारी भीड़ थी...अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ के चेहरे पर तनाव साफ दिख रहा था...

अदालत में कार्यवाही शुरू हुई. काले कोट पहने वकीलों का भी खासा जमावड़ा था. इन्हीं वकीलों के बीच ही काले कोट पहने कुछ लोग बैठे थे. ये सभी कोर्ट की सुनवाई के दौरान किसी को मैसेज करके अपडेट दे रहे थे. लेकिन बाकी वकीलों ने जब उन पर सवाल उठाए तो ये सब वहां से चले गए. बाद में जब सजा सुना दी गई तो ये सब दोषियों के साथ ही उनके वाहनों के पीछे चले गए. इस बात का पता नहीं लग पाया कि वो लोग कौन थे?

44 साल की गुंडागर्दी पर अब लगा कानून का कोड़ा
अतीक अहमद को सजा मिलते ही 44 साल से कानून के साथ जारी चूह-बिल्ली का खेल भी खत्म हो गया है. अब उम्मीद जताई जा रही है कि उसके ऊपर हत्या सहित दूसरे मामलों में भी अब न्याय हो सके.

44 साल पहले अतीक अहमद पर तमंचे से मोहम्मद गुलाम नाम के एक शख्स को गोली मारने का आरोप लगा था. तब से लेकर बीते महीने उमेश पाल की हत्या होने तक उसके खिलाफ कई मामले दर्ज हुए हैं, लेकिन पुलिस को इन मामलों में ठोस सबूत की तलाश है. 

उमेश पाल अपहरण कांड में सजा मिलने के बाद अतीक और गैंग के खिलाफ अब बाकी मामलों की पैरवी तेज होने की उम्मीद है. मीडिया में आई खबरों की मानें तो 5 मामलों में प्रशासन अब तेजी दिखा रहा है. जिसमें 1996 में अशोक साहू हत्याकांड जिसमें अतीक का भाई अशरफ भी आरोपी है, साल 2002 का नसीम अहमद हत्याकांड शामिल है.

इसके साथ ही 14 ऐसे मामलों की भी समीक्षा की जा रही है जिसमें अतीक अहमद और उसके गैंग के साथियों को बरी कर दिया गया था. बता दें कि अतीक अहमद के खिलाफ पहला मामला 1979 में दर्ज किया था. तब से लेकर उसके खिलाफ 100 केस दर्ज हैं. 

पार्टियां बदलने में माहिर अतीक अहमद समाजवादी पार्टी, बीएसपी और अपना दल में रह चुका है. लेकिन यूपी में योगी सरकार आने के बाद से उसकी संपत्तियों पर 'बुल्डोजर' चलने लगा था. शातिर अतीक मौके की नजाकत को देख सीएम योगी की तारीफ करने लगा था.

अतीक के पक्ष में खड़े थे 52 गवाह, लेकिन 8 पड़ गए भारी
उमेश पाल अपहरण कांड केस में अतीक के पक्ष में 52 गवाह खड़े थे और उसके खिलाफ मात्र 8 ही लोगों की गवाही हुई थी. सबसे बड़ी बात ये थी कि उमेश पाल पक्ष में 19 दस्तावेजी सबूत दिए गए थे जबकि अतीक के वकील एक भी पेश नहीं कर पाए.

सबूत जो अतीक अहमद पर भारी पड़ गए
लैंड क्रूजर: उमेश पाल ने बताया था कि उसका अपहरण लैंड क्रूजर की कार से किया गया था जिसका नंबर भी कोर्ट में था. इस कार की बरामदगी पुलिस ने कर ली थी.

झूठा साबित हुई बात: कोर्ट में अतीक अहमद ने दावा किया था अपहरण के वक्त वो अपने कार्यालय में लोगों के साथ मीटिंग में था. इस बात को पुख्ता करने के लिए उसने 10 से ज्यादा गवाह भी पेश किए. ये कोर्ट के सामने वो अतीक के इस दावे को साबित नहीं कर सके.

डिप्टी एसपी की गवाही: अपनी बात को साबित करने के लिए अतीक ने सीबीआई के उस समय डिप्टी एसपी की गवाही भी कराई लेकिन कोर्ट ने उनकी बात भी नहीं मानी.

दिलीप पाल की गवाही: इस घटना के चश्मदीद गवाह दिलीप पाल 2007 से अपनी बात पर अडिग रहे. अतीक अहमद जैसे कुख्यात माफिया के खिलाफ उसकी शहर में गवाही देना हिम्मत का काम था. इतने सालों में उन पर क्या बीती होगी ये खुद ही समझा जा सकता है.

झूठे साबित हुए दो गवाह
अतीक अहमद के साथ ही दोषी साबित हुए दिनेश पासी ने तीन गवाह पेश किए थे. जिनमें से एक ने खुद को हेलमेट बेचने वाला और दूसरे ने सीट बनाने वाला बताया था. लेकिन दोनों ही पूछताछ में साबित नहीं कर पाए.  

'मेरे पास अच्छी पिस्टल है...'
जैसे ही कोर्ट की कार्यवाही शुरू अतीक ने कहा कि फैसला सुनाने से पहले उसकी बात सुना ली जाए. उसने कहा कि जेल में बंद शख्स से उसके पास पिस्टल पहुंचाने की बात कही जा रही है. इसके बाद उसने जो बात कही वो चौंकाने वाली थी. उसने कहा, 'जब मेरे पास उससे अच्छी पिस्टल है तो मैं जेल में बंद किसी शख्स से क्यों मंगवाऊंगा'. अतीक ने आगे कहा कि उसके खिलाफ मामला सिर्फ अपहरण का है. उसने दलील दी कि बीएसपी सरकार बनने के बाद उसके ऊपर मुकदमे लाद दिए गए. अतीक ने कहा कि जो आरोप लगाए गए हैं उसी को ही देखकर फैसला सुनाया जाए.

'अल्लाह ने चाहा तो फिर मिलेंगे'
कोर्ट में अतीक अहमद अपने भाई अशरफ से गले मिलकर फूट-फूटकर रोया. अतीक अपने भाई अशरफ से 7 साल बाद मिल रहा था. इसके बाद जब सजा सुना दी गई तो दोनों भाई गले मिलकर खूब रोए और कहा कि अल्लाताला ने चाहा तो फिर मिलेंगे.

वकीलों में दिख रहा था गुस्सा
अतीक अहमद के आतंक से हर कोई परेशान था. जो भी वकील उसके खिलाफ कोई केस लेता वो भी अतीक के निशाने पर आ जाता था. बुधवार को जब अतीक को जेल से एमपीएमएलए कोर्ट लाया गया तो वकीलों ने उसके खिलाफ नारेबाजी शुरू कर दी. एक वकील ने तो अतीक को जूते की माला पहनाने की भी कोशिश की.

अतीक के खिलाफ दर्ज हुए थे हत्या के 15 मुकदमे
अतीक अहमद के खिलाफ अब तक हत्या के 15 मुकदमे दर्ज हो चुके हैं. जिसमें उसे 6 केस से बरी किया जा चुका है. लेकिन 2005 में राजू पाल हत्याकांड और 2022 में नसीम अहमद हत्याकांड मामले में उसके खिलाफ सबूत पेश किए जा चुके हैं. माना जा रहा है ये दोनों मामले में अतीक के लिए बड़ी सजा का रास्ता खोलने को तैयार बैठे हैं.

डूब गई अतीक अहमद की सियासी कश्ती
जुर्म की दुनिया का बेताज बादशाह बनने के बाद अतीक अहमद देश की सबसे बड़ी पंचायत संसद तक भी पहुंच गया था. लेकिन साल 2007 में राजू पाल हत्याकांड उसके जीवन का सबसे बड़ा मोड़ साबित हुआ. इस घटना के बाद से ही उसके अंत का आरंभ शुरू हो गया था.

उम्रकैद की सजा पाने का बाद अतीक अहमद अब कोई चुनाव नहीं लड़ पाएगा. उसका एक बेटा असद और पत्नी फरार हैं. असद इस समय यूपी पुलिस की लिस्ट में सबसे बड़ा मोस्ट वांटेड है.

जेल में रहते हुए उसने अपनी पत्नी शाइस्ता को राजनीति के मैदान में उतारने की तैयारी कर चुका था. कुछ दिन पहले ही शाइस्ता बीएसपी में शामिल हुई थी. हालांकि अभी तक बीएसपी की ओर से शाइस्ता के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की गई है. लेकिन अतीक अहमद को सजा मिलने के बाद कोई भी पार्टी शाइस्ता से उचित दूरी बनाकर ही रखना चाहेगा. 

उत्तर प्रदेश की राजनीति में 80 दशक में कई बाहुबली राजनीति में आए जिसमें मुख्तार अंसारी, डीपी यादव, राजन तिवारी, छुट्टन शुक्ला और अतीक अहमद का नाम शामिल था. अतीक अहमद ने 1989 में राजनीति में कदम रखा था. 

1989 के विधानसभा चुनाव में अतीक अहमद ने निर्दलीय चुनाव लड़ा और चांद बाबा नाम के दूसरे बाहुबली को हरा दिया. इसके बाद चांद बाबा की हत्या हो गई. इस मर्डर का आरोप अतीक अहमद पर लगा. भारी-भरकम शरीर वाले अतीक अहमद ने इस जीत और हत्या के बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा. 

अतीक अहमद प्रयागराज की पश्चिमी सीट से तीन बार निर्दलीय विधायक चुना गया. साल 1996 में अतीक अहमद ने सपा के टिकट से जीत दर्ज की. साल 2004 में अतीक अहमद ने फूलपुर सीट से अपना दल के टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की. बता दें कि फूलपुर सीट से कभी पंडित नेहरू ने भी चुनाव जीता था.

लेकिन विधानसभा चुनाव में पश्चिमी सीट से उसके भाई अशरफ को राजू पाल ने विधानसभा चुनाव हरा दिया. जिस सीट पर अतीक अहमद कभी हारा नहीं था वहां से उसके भाई की हार का मतलब था अतीक के गढ़ पर हमला.

अतीक अहमद ने इसे प्रतिष्ठा और सीधी चुनौती का विषय बना लिया. उसके कुछ ही समय बाद राजू पाल की हत्या हो गई. उस समय प्रदेश में सपा की ही सरकार थी जिसके चलते उसके खिलाफ कोई ऐक्शन नहीं हुआ. हालांकि इस केस में अतीक अहमद के खिलाफ अदालत में सबूत पेश किए जा चुके हैं.

साल 2007 में प्रदेश में बीएसपी की सरकार आई और अतीक अहमद को जेल भेज दिया गया. अतीक अहमद ने जेल में रहते हुए फूलपुर से लोकसभा का चुनाव लड़ा लेकिन हार मिली. इस चुनाव के बाद से अब तक अतीक अहमद उबर नहीं पाया.

2 दिन के अंदर फिर साबरमती में सलाखों के पीछे
पूर्व सांसद अतीक अहमद को सश्रम आजीवन कारावास की सजा सुनाए जाने के बाद साबरमती केंद्रीय कारागार (सेंट्रल जेल)  में रखा जाएगा. जबकि दोषमुक्त उसके भाई पूर्व विधायक अशरफ को बरेली जेल वापस भेज दिया गया है.

सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी याचिका

सुप्रीम कोर्ट ने अतीक अहमद की उत्तर प्रदेश पुलिस की हिरासत के दौरान सुरक्षा की मांग वाली याचिका मंगलवार को खारिज कर दी है. जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस बेल एम. त्रिवेदी की पीठ ने जान को खतरा होने के अतीक अहमद के दावे पर उसे सुरक्षा के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट का रुख करने की इजाजत दी है.

सुप्रीम कोर्ट ने हालांकि उसके जान को खतरा होने के दावे को 'रिकॉर्ड' में लेने से इनकार करते हुए कहा कि उत्तर प्रदेश राज्य प्रशासन उसकी सुरक्षा सुनिश्चित करेगा.

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