धर्मांतरण विरोधी कानून पर सुप्रीम कोर्ट ने 10 राज्यों को भेजा नोटिस, समर्थन में आए मुस्लिम नेता
अखिल भारतीय पसमांदा मुस्लिम मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष जावेद मलिक ने धर्मांतरण विरोधी कानूनों के समर्थन में याचिका दाखिल की है.

धर्मांतरण विरोधी कानूनों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने 10 राज्यों को नोटिस जारी कर तीन हफ्ते में जवाब दाखिल करने को कहा है. मंगलवार (16 दिसंबर, 2025) को 10 राज्यों में धर्मांतरण विरोधी कानून पर रोक लगाने की मांग को लेकर दाखिल याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट ने यह नोटिस जारी किया है.
याचिकाओं में कहा गया है कि स्वेच्छा से शादी करने वाले वयस्क लोगों को ऐसे कानूनों के जरिए निशाना बनाया जा रहा है. कानून का इस्तेमाल अल्पसंख्यक उत्पीड़न में हो रहा है. जिन राज्यों से जवाब दाखिल करने को कहा गया है, वह हैं- उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, छत्तीसगढ़, हरियाणा, कर्नाटक, झारखंड और राजस्थान.
इन राज्यों में अनैतिक धर्मांतरण को रोकने के लिए कानून बनाए गए हैं, जिनके खिलाफ याचिकाएं अभी सुप्रीम कोर्ट में लंबित हैं. इस बीच अखिल भारतीय पसमांदा मुस्लिम मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष जावेद मलिक ने इन कानूनों के समर्थन में याचिका दाखिल की है.
सुप्रीम कोर्ट अब 28 जनवरी को इन याचिकाओं पर सुनवाई करेगा. चीफ जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि वह जनवरी के तीसरे हफ्ते में इस मामले की फाइनल हियरिंग के लिए लिस्ट करेंगे. सुप्रीम कोर्ट ने सभी राज्यों से कहा है कि वे तीन हफ्तों के भीतर अपना जवाब दाखिल करें. जावेद मलिक की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने आश्वासन दिया है कि इसे बाकी याचिकाओं के साथ ही सुना जाएगा.
जावेद मलिक का कहना है कि वह इन राज्यों में बनाए गए एंटी कंवर्जन लॉ का समर्थन करते हैं और चाहते हैं कि उन याचिकाओं को खारिज कर दिया जाए, जो इन कानूनों को चुनौती दे रही हैं. उन्होंने कहा कि ये कानून समाज में शांति बनाए रखने और जबरन धर्मांतरण को रोकने के लिए जरूरी हैं.
कानूनों को चुनौती देने वाली याचिकाकर्ताओं में कहा गया कि ये कानून इंटर-रिलीजन कपल्स को परेशान करने और व्यक्तिगत फैसलों में हस्तक्षेप करने का जरिया बन गए हैं. उनका आरोप है कि इन कानूनों की आड़ में कोई भी व्यक्ति बिना वजह धर्मांतरण के आरोप में फंस सकता है. इस तरह के मामलों में अक्सर लोगों की निजी जिंदगी में दखल दिया जाता है और सामाजिक तनाव भी बढ़ता है.
ये याचिकाएं जमीयत उलेमा-ए-हिंद और सिटीजन फॉर जस्टिस एंड पीस जैसे संगठन भी दाखिल कर चुके हैं. उनका कहना है कि कानून का गलत इस्तेमाल होने की संभावना है और इससे धार्मिक स्वतंत्रता और व्यक्तिगत अधिकार प्रभावित हो सकते हैं.
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Source: IOCL





















