6 दिनों में अमेजन और फ्लिपकार्ट ने बेचा 19 हजार करोड़ का सामान
दीवाली से पहले बाजार सजकर तैयार हैं. ई-कॉमर्स साइट्स पर ऑफर्स की भरमार है. दशहरे पर महंगी कारें भी खूब बिकीं फिर मंदी कहां है.

नई दिल्ली: दुनिया के 90 फीसदी देशों में अर्थव्यवस्था की रफ्तार सुस्त पड़ सकती है. ये कहना है उस संस्था का जो दुनिया भर की अर्थव्यवस्था पर नजर रखती है. IMF ने ये भी कहा कि भारत जैसे देशों पर वैश्विक मंदी का सबसे ज्यादा असर पड़ सकता है. IMF के इस आकलन को भारत के लिए खतरे की घंटी के तौर पर भी देखा जा सकता है लेकिन सवाल है कि क्या हमारी सरकार IMF के इस आकलन से सहमत है. सरकार की तरफ से लगातार ये कहा जा रहा है कि मंदी जैसे कोई हालात फिलहाल देश में नहीं है. मंदी को लेकर आखिर इतना कन्फ्यूजन क्यों है. वो कौन से कारण हैं जो मंदी का इशारा देते हैं और ऐसी क्या चीजें हैं जिन्हें देखकर लगता है कि मंदी नहीं है.
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दीवाली से पहले बाजार सजकर तैयार हैं. ई-कॉमर्स साइट्स पर ऑफर्स की भरमार है. दशहरे पर महंगी कारें भी खूब बिकीं फिर मंदी कहां है. देश की आर्थिक स्थिति को लेकर विपक्ष सरकार को घेरने में लगा है. कुछ समय पहले आए जीडीपी के गिरते आंकड़े ने विपक्ष के उस दावे को मजबूत कर दिया कि देश मंदी के दौर से गुजर रहा है.
वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम की रैंकिंग में भारत 10 पायदान नीचे गिरकर 58 से 68वें नंबर पर आ गया. IMF ने कह दिया कि वैश्विक मंदी का सबसे ज्यादा असर ब्राजील और भारत जैसे देशों पर है. भारत में अगस्त महीने में 8 कोर सेक्टरों में गिरावट दर्ज की गयी और 5 में निगेटिव ग्रोथ यानी शून्य से नीचे की विकास दर रही.
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ये तमाम आंकड़े सिर्फ इस तरफ इशारा करते हैं कि भारत की अर्थव्यवस्था में कहीं कुछ तो झोल है लेकिन इस तस्वीर का एक दूसरा पहलू भी है. जब देश में चारों तरफ मंदी का शोर मचा हो ऐसे वक्त पर वो कंपनियां मुनाफा कैसे कमा रही हैं जो आम लोगों की जरूरत का सामान बेचती हैं.
त्योहार के नाम पर लोगों को हर खरीदारी पर बंपर छूट देने का दावा करने वाली अमेजन और फ्लिपकार्ट जैसी कंपनियां जमकर सामान बेच रही हैं. दीवाली आने से पहले ही इन कंपनियों ने इतना सामान बेच लिया है जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती.
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सिर्फ 6 दिन में अमेजन और फ्लिपकार्ट ने 3 अरब डॉलर यानी करीब 19000 करोड़ रुपए की बिक्री की है. 2018 के मुकाबले ये करीब 30 फीसदी ज्यादा है. रेड सीर की रिपोर्ट के मुताबिक इस बिक्री में सबसे बड़ी हिस्सेदारी मोबाइल फोन की है. बड़ी बात ये है कि सामान खरीदने वालों में tier-2 और उससे भी छोटे शहरों के लोग ज्यादा हैं. फिर सवाल है कि अगर लोगों के पास खरीदारी के लिए पैसा है तो आर्थिक मंदी कहां है.
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ये सही है कि देश की आर्थिक सेहत का अंदाजा किसी एक चीज से नहीं लगाया जा सकता.
- भारत में कृषि विकास दर 5 फीसदी से घटकर 2.9% हो गयी है - मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर की ग्रोथ 12% से गिरकर 0.6% हो गयी - सर्विस सेक्टर में विकास दर 8.1% से गिरकर 7.5% पर आ गयी है - बेरोजगारी दर अक्टूबर के महीने में 7.8% पर पहुंच गयी है
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और इन सब के साथ जब देश की जीडीपी 6 साल के सबसे निचले स्तर पर पहुंच जाए तो इसका मतलब यही है कि प्रति व्यक्ति आय कम हुई है. लोग पहले से कम कमा रहे हैं. आय नहीं होगी तो लोग खर्च कहां से करेंगे और खर्च नहीं करेंगे तो बाजार से सामान खरीदेंगे कैसे. लेकिन फिर ये कैसे हो रहा है कि त्योहारों के मौसम में गाड़ियों की बिक्री बढ़ गयी है.
- लग्जरी कार कंपनी मर्सिडीज बेंज ने सिर्फ एक दिन में 200 गाड़ियों की डिलीवरी की - दशहरे के दिन मुंबई में मर्सिडीज की 125 गाड़ियां शोरूम से निकल गयीं - गुजरात में 74 कारों की डिलीवरी हुई - जिन गाड़ियों की बिक्री हुई उनकी शुरूआत ही 40 लाख रुपए से होती है
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गाड़ियों की बिक्री का ये रिकॉर्ड तब बना है जब पिछले कुछ दिनों से ऑटो इंडस्ट्री में भी मंदी का शोर मचा हुआ है. अब ये कैसे हो सकता है कि एक तरफ मंदी हो और दूसरी तरफ सिर्फ त्योहार के नाम पर लोग 90 लाख तक की गाड़ी खरीद रहे हों. देश की अर्थव्यवस्था और मंदी को लेकर तमाम जानकारों की राय बंटी हुई है. यानी कहीं न कहीं मंदी को लेकर एक तरफ का कन्फ्यूजन फैला हुआ है.
IMF ने भी यही कहा कि मंदी पूरी दुनिया में है और करीब 90 फीसदी देश इसकी चपेट में हैं. ऐसे में सरकार पर जिम्मेदारी बढ़ जाती है. सिर्फ कॉरपोरेट और बैंकों की मदद से समस्या हल नहीं होगी. सरकार को उन आम लोगों के बारे में भी सोचना होगा जो अपनी सैलरी का एक बड़ा हिस्सा टैक्स में दे देते हैं. क्या दीवाली पर सरकार ऐसे लोगों के लिए कोई खुशखबरी लाएगी?
Source: IOCL






















