Ideas of India: एबीपी नेटवर्क के सीईओ अविनाश पांडे ने बताया कैसी हो नए भारत की सोच
ABP Ideas of India: आइडियाज ऑफ इंडिया समिट के पहले दिन एबीपी नेटवर्क के सीईओ अविनाश पांडे ने कहा कि देश के बेहतरीन बुद्धिजीवियों को बुलाने के लिए इससे बेहतरीन साल नहीं हो सकता था.
आइडियाज ऑफ इंडिया समिट के पहले दिन कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए एबीपी नेटवर्क के सीईओ अविनाश पांडे ने कहा कि देश के बेहतरीन बुद्धिजीवियों को बुलाने के लिए इससे बेहतरीन साल नहीं हो सकता था. यह भारत की स्वतंत्रता का 75वां साल है और एबीपी ग्रुप का 100वां.
पीछे देखने और आगे बढ़ने का यह एक शानदार मौका है. यह वो साल है, जब हमने कोविड की तीसरी लहर देखी, तीसरे विश्व युद्ध की चेतावनी सुनी और भारत में 5 राज्यों का चुनाव भी देखा. एबीपी नेटवर्क के सीईओ अविनाश पांडे ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हमने अमेरिकी दबदबे में गिरावट देखी, चीन की अर्थव्यवस्था में तेजी आई. वहीं रूस के खतरनाक सपने भी दुनिया देख रही है. साथ ही दुनिया के रईस लोग स्पेस रेस में लगे हुए हैं.
उन्होंने कहा कि एबीपी नेटवर्क में हम उस चीज में यकीन रखते हैं, जिसमें भारत भरोसा रखता है, जो है शालीनता से संवाद और तर्कों का आदान-प्रदान. हम आंकड़ों में यकीन रखते हैं, लेकिन सही कदम उठाना हमारी जिम्मेदारी है.
सीईओ अविनाश पांडे ने कहा, हम सिर्फ टीआरपी से ही नहीं चलते बल्कि लोगों के दिलों को भी छूते हैं. हम दर्शकों को मापते नहीं हैं बल्कि उन्हें संजोते हैं. हम जानते हैं कि न्यूज से जिंदगियां बदल सकती हैं लेकिन हमारी टैगलाइन है कि हम एक ऐसा समाज चाहते हैं जो जागरूक और सूचित हो. हम स्वस्थ प्रतिस्पर्धा में यकीन रखते हैं न कि न्यूज को बेवजह सनखनीखेज बनाने में. हम तथ्यों के साथ सच दिखाते हैं.
उन्होंने कहा, इस समिट में अगले दो दिनों में हम पांच अहम डिबेट देखेंगे, जिसमें पहला है नेशनलिज्म और ग्लोबलिज्म. हाल तक हम सब सोचते थे कि इंटरनेशनलिज्म खत्म हो चुका है. जब मैं कॉलेज में था, तो कहा जाता था कि नेशनलिज्म खत्म हो चुका है और अब इंटरनेशनलिज्म का जमाना है. लेकिन अब राष्ट्रवाद ने खुद को दोबारा खड़ा कर लिया है. चाहे वो डोनाल्ड ट्रंप का मेक इंडिया ग्रेट अगेन हो या फिर बोरिस जॉनसन का ब्रेग्जिट.
लेकिन फिर कोविड-19 आया और उसने हमें सिखाया कि कैसे हम सब एक दूसरे से जुड़े हैं. जब हम सीमाओं के परे देखेंगे, तभी हम समस्याओं को सुलझा पाएंगे, चाहे वो आर्टिफिशिल इंटेलिजेंस से जुड़ा हो, क्लाइमेट चेंज हो या फिर आर्थिक असमानता.
दूसरी जो बड़ी डिबेट होगी, वो है एल्गोरिदम और इमोशनल इंटेलिजेंस की. भारतीय ये बात मानते हैं कि दुनिया को समझने के लिए पहले खुद को समझना जरूरी है. तीसरी डिबेट सतत विकास पर होगी, जो आज की सबसे बड़ी जरूरत है.
चौथी बड़ी डिबेट जो दुनिया में चल रही है वो है डिजिटल तानाशाही बनाम डिजिटल डेमोक्रेसी. सभी लोगों तक इंटरनेट की पहुंच भारत में अब तक पूरी नहीं हो पाई है. एक अनुमान कहता है कि इस साल 658 मिलियन इंटरनेट यूजर्स होंगे, जो पूरी आबादी का 47 प्रतिशत है. इसका मतलब है कि भारत की आधी आबादी अब भी इंटरनेट से दूर है.
आखिरी डिबेट भारत के इतिहास पर होगी. आज जो लोग यहां मौजूद हैं, उनकी जिंदगी में काफी कुछ बदल गया है. इस पीढ़ी ने बहुत कुछ देखा है. 1983 तक हमारे पास मोबाइल फोन नहीं था. 1995 तक गूगल नहीं था. 1996 में फेसबुक आया और दुनिया बदलनी तब शुरू हुई जब 2004 में फेसबुक को दुनिया में इस्तेमाल करना शुरू किया. हमने तेज प्रगति देखी तो इन आविष्कारों से विनाश भी देखा.
उन्होंने कहा, हम ज्यादा चाहते हैं लेकिन कम में भी जीना जानते हैं. हमारे पास दुनिया के सर्वश्रेष्ठ लोग हैं, जिनके पास कोमल मन हैं. हम वैश्विक समुदाय में यकीन रखते हैं लेकिन हमें भारत की विविधता में भी विश्वास है. हमें शांति पसंद है लेकिन अगर खुद की रक्षा की बात आएगी तो हम जंग भी लड़ सकते हैं. ये सभी बातें एबीपी ग्रुप के बेहद करीब हैं और मुझे इसका प्रतिनिधित्व करते हुए बेहद खुशी हो रही है.मैं चाहता हूं कि जो लोग यहां मौजूद हैं वे भारत के बारे में अपनी राय जरूर दें.
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