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मुफ्त वाली योजनाओं के बचाव में सुप्रीम कोर्ट पहुंची आम आदमी पार्टी, याचिकाकर्ता की मंशा पर ही उठाए सवाल

AAP Free Scheme: अश्विनी उपाध्याय की याचिका में सुप्रीम कोर्ट से मांग की गई है कि चुनाव प्रचार के दौरान मुफ्त की योजनाओं की घोषणा को मतदाताओं को रिश्वत देने की तरह देखा जाए.

Free Scheme: मुफ्त की योजनाओं के बचाव में आम आदमी पार्टी (AAm Aadami Party) सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) पहुंच गई है. 'आप' (AAP) ने इस तरह की योजनाओं की घोषणा को राजनीतिक पार्टियों का लोकतांत्रिक और संवैधानिक अधिकार बताया है. पार्टी की तरफ से दाखिल अर्जी में याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय (Ashwini Upadhyay) की मंशा पर भी सवाल उठाए गए हैं.

पिछले हफ्ते सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एन वी रमना के अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने गैरजरूरी मुफ्त योजनाओं से अर्थव्यवस्था को हो रहे नुकसान पर चिंता जताई थी. राज्यों पर बकाया लाखों करोड़ों रुपए के कर्ज का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने मामले के समाधान के लिए एक कमिटी बनाने के संकेत दिए थे. कोर्ट ने मामले से जुड़े पक्षों से इस कमिटी के संभावित सदस्यों के नाम सुझाने के लिए कहा था. मामले की अगली सुनवाई गुरुवार, 11 अगस्त को होनी है.

'आप' ने याचिकाकर्ता पर उठाया सवाल

अपने राष्ट्रीय सचिव पंकज कुमार गुप्ता को प्रतिनिधि बना कर दाखिल आवेदन में आम आदमी पार्टी ने मुफ्त योजनाओं के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल करने वाले वकील अश्विनी उपाध्याय को राजनीतिक व्यक्ति बताया है. पार्टी ने कहा है कि उपाध्याय का भारतीय जनता पार्टी से लंबे समय से जुड़ाव रहा है. उनकी याचिका का मकसद जनहित नहीं, बल्कि राजनीतिक हित है.

'आप' ने मामले में खुद को भी पक्ष बनाए जाने की मांग की है. कहा है कि भारतीय संविधान में कल्याणकारी राज्य अवधारणा दी गई है. सरकारों से यह उम्मीद की जाती है, वह समाज के हर तबके को सुविधाएं दें. ऐसे में, जरूरतमंद लोगों की सुविधा के लिए सरकार अगर कुछ उपलब्ध कराती है, तो उसे मुफ्तखोरी कहना गलत है.

नेताओं को घोषणा करने से नहीं रोक सकते

अश्विनी उपाध्याय की याचिका में सुप्रीम कोर्ट से मांग की गई है कि चुनाव प्रचार के दौरान मुफ्त की योजनाओं की घोषणा को मतदाताओं को रिश्वत देने की तरह देखा जाए. चुनाव आयोग अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए ऐसी घोषणा करने वाली पार्टी की मान्यता रद्द करे लेकिन आम आदमी पार्टी ने कहा है कि संविधान के अनुच्छेद 19 (1)(a) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता एक मौलिक अधिकार है. संविधान में इस अधिकार की कुछ सीमाएं ज़रूर दी गई हैं लेकिन नेताओं का अपने मंच से लोगों के कल्याण के लिए किसी योजना का वादा करना इस किसी सीमा का उल्लंघन नहीं करता. इसलिए, उनके भाषण को इस तरह नियंत्रित नहीं किया जा सकता.

कोर्ट ने भी गरीबों की मदद को सही कहा था

ध्यान रहे कि मामले को सुनते हुए चीफ जस्टिस ने भी कहा था कि गरीब और जरूरतमंद लोगों के जीवन स्तर को सुधारने में सहायता करना सरकारों का कर्तव्य है लेकिन गैरजरूरी मुफ्त की योजनाएं देश का बहुत नुकसान कर रही हैं. कोर्ट ने यह भी कहा था कि इस तरह की घोषणाओं से होने वाले राजनीतिक लाभ के चलते कोई भी पार्टी कर्ज में डूबे राज्यों की अर्थव्यवस्था पर चर्चा नहीं करना चाहती.

'राज्यों के कर्ज की कई वजह'

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व वाली पार्टी की याचिका में यह कहा गया है कि राज्यों पर बकाया लाखों करोड़ों रुपए का कर्ज कई वजह से है. याचिकाकर्ता ने सिर्फ मुफ्त की योजनाओं पर इसका ठीकरा फोड़ने की कोशिश की है. केंद्र सरकार भी निशुल्क अनाज समेत कई लाभ जरूरतमंदों को दे रही है. आम आदमी पार्टी ने ये भी कहा है कि बड़े उद्योगपतियों और व्यापारिक घरानों को भी बहुत तरह की सुविधाएं दी जाती हैं. कई बार उनका कर्ज माफ किया जाता है.

'हर पार्टी का प्रतिनिधि कमिटी में हो'

अपने आवेदन के अंत में 'आप' (AAP) ने कमिटी के गठन पर भी सुझाव दिया है. कहा है कि अगर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) इस मामले में कमिटी का गठन करना चाहता है, तो फिर उस कमेटी में रिजर्व बैंक, वित्त आयोग, नीति आयोग जैसी संस्थाओं के प्रतिनिधियों के अलावा देश की सभी राज्य सरकारों के 1-1 प्रतिनिधि को भी शामिल किया जाए. साथ ही, हर राजनीतिक दल के भी 1-1 प्रतिनिधि को कमिटी में रखा जाए. कमिटी में जमीनी स्तर पर लोगों के बीच काम कर रहे एनजीओ (NGO) के प्रतिनिधियों को भी जगह मिले.

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