Explained: 2,050 महिलाओं में कैंसर बनने से रोका, डॉक्टर्स से कई गुना तेज डायग्नोसिस, कैसे AI इलाज में बन गया वरदान?
ABP Explainer: महाराष्ट्र में संजीवनी मिशन के तहत 2,663 महिलाओं की स्क्रीनिंग हुई. इसमें AI ने 2,050 महिलाओं में शुरुआती लक्षण मिले, जिन्हें समय पर इलाज देकर कैंसर बनने से रुक गया. यह मुमकिन कैसे हुआ?

एक तरफ जहां आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस यानी AI नौकरियों और बच्चों के लिए मुसीबत बनता जा रहा है, वहीं दूसरी तरफ इसी AI ने महाराष्ट्र में 1040 महिलाओं के गर्भाश्य कैंसर का पता लगा लिया. डॉक्टरों का कहना है कि AI की वजह से बीमारी का बहुत पहले ही पता चल गया, इसलिए यह सभी स्वस्थ हो जाएंगी. ABP एक्सप्लेनर में समझते हैं कि कैसे AI कैंसर समेत अन्य बीमारियों में वरदान साबित हो रहा, AI की जांच का तरीका क्या है और यह कितना कामयाब है...
सवाल 1- कैसे मेडिकल फील्ड में AI वरदान साबित हो रहा है?
जवाब- AI एक ऐसी तकनीक है जो कंप्यूटर को इंसान की तरह सोचना, सीखना और फैसला लेना सिखाती है. यह लाखों-करोड़ों मेडिकल डेटा, जैसे एक्स-रे, ब्लड रिपोर्ट्स, जेनेटिक इन्फॉर्मेशन और मरीजों के इतिहास को सेकेंड्स में एनालाइज कर लेता है. उदाहरण से समझें कि एक डॉक्टर को एक मरीज की रिपोर्ट देखने में घंटों लग सकते हैं, लेकिन AI यह काम चुटकियों में कर देता है और गलतियां भी कम करता है.
अमेरिकन मेडिकल एसोसिएशन के 2025 के सर्वे में पाया गया कि 66% डॉक्टर अब AI टूल्स इस्तेमाल कर रहे हैं, जो 2023 में सिर्फ 38% था. वहीं, 68% मानते हैं कि इससे मरीजों की देखभाल बेहतर हो रही है. यह वरदान है क्योंकि दुनियाभर में स्वास्थ्य सेवाओं की कमी है, डॉक्टरों की संख्या कम है, मरीज ज्यादा हैं और ग्रामीण इलाकों में तो सुविधाएं नाममात्र हैं.
AI यहां आकर न सिर्फ बीमारियों का जल्दी पता लगाता है, बल्कि इलाज को भी व्यक्तिगत बनाता है. यानी हर मरीज के लिए अलग-अलग प्लान बनाता है, जो पहले नामुमकिन था. मेडिकल फील्ड में AI के 5 बड़े फायदे हैं...
- बीमारी का पता लगाना: AI इमेजिंग टूल्स जैसे सीटी स्कैन, MRI या मैमोग्राफी की तस्वीरों को देखकर छोटी-छोटी असामान्यताएं पकड़ लेता है, जो इंसानी आंख से छूट सकती हैं. हार्वर्ड गजेट की 2025 की रिपोर्ट के मुताबिक, AI ब्रेस्ट कैंसर की जांच में फॉल्स नेगेटिव यानी गलत नकारात्मक रिजल्ट को 17.6% तक कम कर देता है. इसी तरह, फेफड़ों के कैंसर में यह 92 से 98% सटीकता से छोटे ट्यूमर ढूंढ लेता है. यह इसलिए वरदान है क्योंकि शुरुआती स्टेज में कैंसर का पता चल जाए तो इलाज आसान और सफलता दर 90% से ऊपर हो जाती है.
- पर्सनलाइज्ड मेडिसिन: यहां AI मरीज के जीन, लाइफस्टाइल और मेडिकल हिस्ट्री को देखकर बताता है कि कौन-सी दवा उसके लिए बेहतर रहेगी. स्टैनफोर्ड मेडिसिन की 2025 स्टडी के मुताबिक, उनका MUSK मॉडल 16 तरह के कैंसर में 75% सटीकता से मरीज की जीवित रहने का अंदाजा लगाता है. इससे कीमोथेरेपी या सर्जरी के साइड इफेक्ट्स कम होते हैं और इलाज सस्ता पड़ता है.
- दवा की खोज: AI प्रोटीन स्ट्रक्चर प्रेडिक्ट करके नई दवाओं को सालों की बजाय हफ्तों में डिजाइन कर देता है. प्रीसिडेंस रिसर्च की 2025 रिपोर्ट के मुताबिक, जेनरेटिव AI का हेल्थकेयर मार्केट 2025 में 45-46% की सालाना ग्रोथ के साथ 1.55 बिलियन डॉलर से बढ़कर 2034 तक 45.82 बिलियन डॉलर हो जाएगा.
- खतरे का अलर्ट: प्रिवेंटिव केयर में AI मरीजों के डेटा से पहले ही खतरे का अलर्ट दे देता है. जैसे डायबिटीज या हार्ट अटैक का रिस्क होना, जिससे लाखों जिंदगियां बच सकती हैं. वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की 2025 रिपोर्ट के मुताबिक, AI से ग्लोबल हेल्थकेयर कॉस्ट 10-15% कम हो सकती है.
- प्रशासनिक कामों में मदद: AI नोट्स बनाना, अपॉइंटमेंट शेड्यूलिंग या क्लेम प्रोसेसिंग करने में भी मदद करता है. मैकिंसे की 2025 रिपोर्ट कहती है कि इससे डॉक्टरों का बर्नआउट यानी थकान 30% कम हो गया है, जिससे वह मरीजों पर ज्यादा फोकस कर पाते हैं.
2024-25 में महाराष्ट्र के धाराशिव जिले में संजीवनी मिशन चला, जहां ग्रामीण इलाकों में महिलाओं की संख्या ज्यादा है, लेकिन स्वास्थ्य सुविधाएं कम हैं. 2,663 महिलाओं की स्क्रीनिंग हुई, जिसमें AI ने पैप स्मीयर टेस्ट और इमेजिंग से प्री-कैंसर स्टेज पकड़े. 2,050 महिलाओं में शुरुआती लक्षण मिले, जिन्हें समय पर इलाज देकर कैंसर बनने से रुक गया. ट्रिब्यून इंडिया की 2025 रिपोर्ट के मुताबिक, संजीवनी ने 700 दिनों में 60 करोड़ लोगों तक पहुंच बनाई और 1.3 करोड़ डिजिटल इंगेजमेंट्स जनरेट किए.
इसी तरह पंजाब में 2025 में AI-इनेबल्ड डिवाइसेस लॉन्च हुए, जैसे सर्वाइकल कैंसर के लिए पेरिविंकल का स्मार्ट स्कोप, जो रेडिएशन-फ्री है. ग्लोबल लेवल पर, हार्वर्ड का ओपनएविडेंस टूल डॉक्टरों को रीयल-टाइम में मेडिकल लिटरेचर सर्च करने देता है और UVA हेल्त का AI ब्रेन कैंसर सर्जरी में 74% सटीकता से ट्रीटमेंट इफेक्ट्स अलग करता है. यह उदाहरण साबित करते हैं कि AI अब सिर्फ बड़े हॉस्पिटल्स तक सीमित नहीं, बल्कि गांवों तक पहुंच रहा है. AI ने कैंसर डिटेक्शन को 90% सटीक बना दिया है और दवा की खोज 50% तेज हो गई है.
लेकिन चुनौतियां भी हैं, जैसे डेटा प्राइवेसी और बायस, जिन्हें यूरोपीयन AI एक्ट जैसे नियम सुलझा रहे हैं.
सवाल 2- AI बीमारियों का पता लगाने के लिए क्या करता है?
जवाब- किसी जादूगर की तरह AI बीमारी का पता खुद से नहीं लगा सकता है, बल्कि वह डॉक्टरों का सबसे तेज और स्मार्ट असिस्टेंट बनकर काम करता है. वह लाखों-करोड़ों पुरानी रिपोर्ट्स, फोटो, स्कैन और मरीजों के डेटा को देखकर सीखता है और फिर नई रिपोर्ट में बीमारी को बहुत जल्दी पकड़ लेता है.
- ट्रेनिंग: AI को पहले बहुत सारा डेटा दिखाया जाता है, जैसे एक बच्चे को सिखाते हैं कि सेब लाल और गोल होता है. ठीक वैसे ही AI को लाखों स्वस्थ और बीमार लोगों की रिपोर्ट्स, एक्स-रे, MRI, ब्लड टेस्ट, बायोप्सी स्लाइड्स और जेनेटिक रिपोर्ट्स दिखाई जाती हैं. इसमें लिखा होता है कि कौन-सी रिपोर्ट में कौन-सी बीमारी थी. जैसे टाटा मेमोरियल हॉस्पिटल ने अपने AI को पिछले 20 साल के 5 लाख से ज्यादा कैंसर मरीजों के डेटा से ट्रेन किया है.
- प्रैक्टिस: जब नया मरीज आता है, तो AI उसकी रिपोर्ट देखता है. वह सेकेंड्स में पुरानी लाखों रिपोर्ट्स से मिलान करता है और कहता है, 'यह रिपोर्ट उस बीमारी से 96% मिलती है' या 'ये पूरी तरह नॉर्मल है.'
इसके अलावा...
- AI असल में एक्स-रे, CT स्कैन, MRI, अल्ट्रासाउंड की तस्वीरें देखता है, जैसे फेफड़ों में छोटी सी गांठ, ब्रेस्ट में 3-4 मिलीमीटर का ट्यूमर या ब्रेन में सूजन. यह इंसानी आंखों से नहीं दिखता, इसलिए AI उसे हाइलाइट कर देता है.
- कैंसर की पुष्टि के लिए जो छोटी-छोटी कोशिकाएं देखी जाती हैं, उनकी डिजिटल फोटो AI 30 सेकंड में पढ़ लेता है और बताता है कि कितने प्रतिशत सेल्स कैंसर वाली हैं.
- खून में कैंसर का DNA (ctDNA) या कोई असामान्य प्रोटीन बहुत कम मात्रा में भी हो तो AI पकड़ लेता है. बायोप्सी के बिना ही कैंसर का पता चल जाता है.
- सिर्फ मोबाइल कैमरे से ली गई फोटो से ही AI बता देता है कि कोशिकाएं नॉर्मल हैं या प्री-कैंसरस. यही तकनीक धाराशिव, हिंगोली और उस्मानाबाद में हजारों महिलाओं की जान बचा रही है.
- सामान्य मोबाइल से खींची फोटो से ही त्वचा कैंसर या मुंह का कैंसर का खतरा बता देता है.
- मरीज का उम्र, वजन, ब्लड प्रेशर, शुगर और परिवार में कौन सी बीमारी थी, सब देखकर भविष्य में हार्ट अटैक, डायबिटीज या कैंसर होने की संभावना पहले ही बता देता है.
AI कभी अकेला फैसला नहीं लेता है. वह हमेशा डॉक्टर को रिपोर्ट दिखाता है और कहता है, 'मुझे इतना प्रतिशत संदेह है, आप एक बार देख लीजिए'. डॉक्टर अंतिम फैसला लेता है. इसीलिए गलती की संभावना बहुत कम हो जाती है.
सवाल 3- क्या AI हर तरह की बीमारी का पता लगा सकता है?
जवाब- नहीं. AI अभी हर तरह की बीमारी का पता नहीं लगा सकता है. यह बहुत पावरफुल है, लेकिन फिर भी सीमित है. AI इन बीमारियों का पता 90% तक सटीकता से लगा सकता है.
- ब्रेस्ट, सर्वाइकल, फेफड़े, मुंह, प्रोस्टेट, त्वचा, कोलोन आदि जैसे कैंसर.
- छाती के एक्स-रे से टीबी.
- CT एंजियोग्राफी से ECG या Echo जैसी दिल की बीमारियां.
- डायबिटीज की आंख की बीमारी.
- CT स्कैन या MRI से स्ट्रोक और ब्रेन हैमरेज.
- न्यूमोनिया और कोविड जैसी फेफड़ों की बीमारियां.
- MRI से अल्जाइमर की शुरुआती स्टेज.
- फोटो से स्किन कैंसर और फंगल इन्फेक्शन.
इन सब में AI डॉक्टर से भी बेहतर या बराबर परफॉर्म कर रहा है. भारत में अपोलो, टाटा मेमोरियल, AIIMS, QURE.AI और निरमाई जैसी कंपनियां रोज हजारों मरीजों में इनका इस्तेमाल कर रही हैं.
सवाल 4- तो क्या AI की जांच के नतीजों पर पूरा भरोसा किया जा सकता है?
जवाब- नहीं. AI की जांच के नतीजों पर अभी 100% पूरा भरोसा नहीं किया जा सकता है. हमेशा आखिरी फैसला डॉक्टर का ही होना चाहिए. ब्रेस्ट कैंसर का मैमोग्राम देखना, सर्वाइकल कैंसर का पैप स्मियर देखना, फेफड़ों का TB या कैंस का एक्स-रे देखने के लिए AI पर 90% तक भरोसा किया जा सकता है.
वहीं AI इन मामलों में गलती भी कर सकता है...
- मरीज की स्किन बहुत काली हो या बहुत गोरी हो. स्किन कैंसर की फोटो में कभी गलती हो जाती है.
- बहुत पुराना या खराब क्वालिटी का स्कैन हो.
- बहुत दुर्लभ तरह का कैंसर हो, जिसका डेटा AI को कम मिला हो.
- मरीज को एकसाथ 2-3 बीमारियां हों तो AI कभी-कभी एक को छोड़ देता है.
- गांव में मोबाइल से खींची गई फोटो में लाइट कम होने से भी गलत रिजल्ट आ सकता है.
द लेंसेट डिजिटल हेल्थ की 2025 की एक बड़ी स्टडी के मुताबिक, AI की गलती की दर 2% से 8% तक रहती है. AI दुनिया का सबसे तेज और स्मार्ट असिस्टेंट है, लेकिन डॉक्टर नहीं.
सवाल 5- क्या आने वाले समय में स्वास्थ्य भी AI पर निर्भर हो जाएगा?
जवाब- हां, स्वास्थ्य बहुत हद तक AI पर निर्भर हो जाएगा, लेकिन दिल और दिमाग वाला डॉक्टर कभी खत्म नहीं होगा. वैज्ञानिकों का कहना है कि 2030-2035 तक AI 80-90% बीमारियों का बहुत अच्छे से पता लगा लेगा, क्योंकि डेटा तेजी से बढ़ रहा है और नई तकनीक (मल्टीमॉडल AI) आ रही है. लेकिन 100% हर बीमारी का पता लगाना शायद कभी संभव न हो, क्योंकि कुछ बीमारियां बहुत जटिल होती हैं और इंसान का दिमाग भी आज तक उन्हें पूरी तरह नहीं समझ पाया है.
वहीं, भारत ने एक नई रिसर्च में ऐसा AI फ्रेमवर्क डिवेलप किया गया है, जो कैंसर की कोशिकाओं के भीतर होने वाली जटिल गतिविधियों को पढ़कर बता सकता है कि ट्यूमर किस वजह से बढ़ रहा है और मरीज के शरीर में कौन-सी खतरनाक प्रक्रियाएं एक्टिव हैं.
Source: IOCL























