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EXCLUSIVE: यूएस-इंडिया स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप फोरम निभा रहा कोविड के खिलाफ जंग में अहम योगदान, जानिए क्या है रणनीति 

भारत इस वक्त कोरोना के कहर से जूझ रहा है. ऐसे में अमेरिका में रहने वाले भारतीय मूल के लोग देश को इस संकट से निकालने के लिए हर संभव मदद कर रहे हैं.

नई दिल्ली: भारत में कोरोना से बिगड़ते हालात के बीच देश और विदेश से मदद का दौर जारी है. अमेरिका में भारत की मदद के लिए यूएस-इंडिया स्ट्रेटेजिक पार्टनरशिप फोरम अहम भूमिका निभा रहा है. इस फोरम के प्रमुख डॉ. मुकेश अघी ने एबीपी न्यूज़ से बातचीत में बताया कि फोरम किस तरह भारत की मदद के लिए हर संभव मदद कर रहा है.

अमेरिका से तीन कैटेगरी में मिल रही मदद 
डॉ. अघी ने बताया कि, "भारत के लिए अमेरिका से आ रही मदद मुख्यतः तीन श्रेणियों में है. पहली कैटेगरी अमेरिकी सरकार से मिलने वाली मदद की है, दूसरी कैटेगरी बिजनेस कम्युनिटी और तीसरी कैटेगरी इंडियन डायसपोरा की तरफ से मिलने वाली मदद की है. बिजनेस कम्युनिटी ने काफी प्रयास किया है. बिजनेस कमेटी की तरफ से रेमडेसीविर और एंटीवायरल दवाई भेजी जा रही हैं. कई कंपनियों ने लाखों की संख्या में परीक्षण किट भेजे हैं, जो भारत पहुंच गए हैं. इसके अलावा मुख्य मांग ऑक्सीजन की थी. इसके लिए हमने 11 टन के करीब 1000 क्रायोजेनिक कंटेनर दुबई, सिंगापुर, बैंकॉक समेत अलग-अलग जगहों से लेकर पहुंचाए हैं. ऐसे और 10 कंटेनर हम भेज रहे हैं."

1 लाख ऑक्सीजन कंसंट्रेटर भारत भेजने का संकल्प 
डॉ. अघी ने कहा कि, "इस समय बहुत जरूरी है कि अस्पतालों से ऑक्सीजन की जरूरत का दबाव कम किया जाए. इसके लिए हम बड़ी संख्या में ऑक्सीजन कंसंट्रेटर भेज रहे हैं. हमने एक लाख ऑक्सीजन कंसंट्रेटर भारत भेजने का संकल्प लिया है. उसमें से मई के महीने में ही 25000 कंसंट्रेटर भेजे जाने हैं. आप देखिए कि तक हम 3000 ऑक्सीजन कंसंट्रेटर भेज भी चुके हैं. इस कड़ी में 7 मई के बाद रोज एक विमान 15 टन सहायता सामग्री के साथ भारत पहुंचेगा. यह सारा सामान हम रेड क्रॉस को उपलब्ध करा रहे हैं, जो आगे भारत सरकार को दे रहा है. हमारा ध्यान इस बात की तरफ भी है कि 3 महीने के बाद भारत को किस तरीके की जरूरत है पड़ सकती है. हमारी कोशिश है कि हम फील्ड हॉस्पिटल बनाएं, ऑक्सीजन जनरेशन प्लांट स्थापित करें."

40 कंपनियों के सीईओ से की चर्चा
उन्होंने बताया, "करीब 2 हफ्ते पहले हमने इस प्रयास की शुरुआत की. मैंने माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ सत्या नडेला से बात की, एडोब के सीईओ शांतनु नारायण और मास्टरकार्ड के सीईओ अजय बंगा भी चर्चा हुई. सभी इस बात को लेकर सहमत थे कि हमें कॉरपोरेट्स की तरफ से भारत की मदद के लिए कुछ करना है. उसके बाद हम लोगों ने एक प्लान बनाया और करीब 1 सप्ताह पहले हमने 40 से अधिक कंपनी सीईओ के साथ चर्चा की. कई कंपनियों की तरफ से ऑक्सीजन कंसंट्रेटर के लिए संकल्प जताया गया. हमारी चुनौती इस समय पैसे या प्रयासों की नहीं है बल्कि दिक्कत लॉजिस्टिक्स को लेकर आ रही है. हमारी पहली कंसाइनमेंट भारत पहुंचने के वक्त कुछ परेशानियां आई थीं. हमें उसे पहले टोक्यो और फिर भारत भेजना पड़ा, लेकिन अब वह दिक्कतें दूर हो गई हैं. हम हर दिन एक विमान भारत भेजने की व्यवस्था बना चुके हैं."

यहां देखें डॉ. मुकेश अघी का इंटरव्यू

वैक्सीन को लेकर यह कहा 
डॉ. मुकेश अघी ने कहा कि, "हमें इस बात के लिए प्रशासन का धन्यवाद देना चाहिए कि उन्होंने वैक्सीन को बौद्धिक संपदा पाबंदियों से बाहर करने की कोशिशों का समर्थन किया है. उन्होंने इस चीज का महत्व समझा है कि सभी को टीका लगाया जाना जरूरी है. यदि एक देश में टीकाकरण होता है और दूसरे में नहीं हो पाता तो इससे कोरोना के खिलाफ लड़ाई कमजोर ही रहेगी. अमेरिका में फाइजर और मॉडर्ना के टीके एमआरएनए आधारित है. लिहाजा उनके उत्पादन की क्षमता अभी अमेरिका से बाहर नहीं है. लेकिन जॉनसन एंड जॉनसन और एस्ट्रेजनेका के टीकों को भारत में उत्पादन की इजाजत मिल जाती है, तो इससे बड़ी संख्या में वैक्सीन उपलब्ध हो सकेंगी. इन तीनों को भी भारत की वैक्सीन उत्पादन क्षमता का लाभ मिलेगा. यदि आईपीआर के बंधन हट जाते हैं तो भारत बड़ी संख्या में टीकों का उत्पादन कर सकता है. इससे न केवल भारत में कोरोना वैक्सीन की उपलब्धता बढ़ेगी, बल्कि दुनिया के कई देशों को भी इसका लाभ मिलेगा."

राष्ट्रपति जो बाइडेन को लिखी चिट्ठी
उन्होंने कहा कि, "यह बात सही है कि अमेरिका की तरफ से भारत की मदद के लिए शुरू हुई कवायद में कुछ देरी हुई. अमेरिका की प्रतिक्रियाएं शुरुआत में धीमी थीं. अप्रैल के दूसरे तीसरे हफ्ते में बाइडन प्रशासन का पूरा ध्यान क्लाइमेट सम्मिट पर था. दुनिया के करीब 40 राष्ट्र प्रमुखों के साथ वह लोग कोऑर्डिनेट कर रहे थे. ऐसे में लग रहा था कि भारत में बढ़ता संकट उनकी प्राथमिकताओं में नहीं था. इसलिए हमें लगा की जब इस पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है तो हमने राष्ट्रपति जो बाइडेन और विदेश मंत्री टोनी ब्लिंकन को चिट्ठी लिखी। हमने अमेरिकी प्रशासन को साफ कहा कि आपको भारत की मदद करनी है। हमने उन्हें बता दिया कि अगर आपन समय रहते मदद नहीं की, तो वर्षों के दौरान भारत और अमेरिका के रिश्ते मजबूत बनाने के लिए की गई मेहनत बेकार हो जाएगी. उन्हें यह भी बताया गया कि बीते साल जब हमारे का को मदद की जरूरत थी तब भारत ने सहायता की थी. भारत ने महत्वपूर्ण दवाइयां भेजी थीं. हमने चिट्ठियां लिखी फोन किए. इसके बाद प्रशासन हरकत में आया और उनकी तरफ से बयान आए ट्वीट किए गए."

सोशल मीडिया पर यह दिखा
डॉ. अघी ने कहा कि, "हमारी चिंता थी कि भारत में अमेरिका विरोधी भावनाएं भी बढ़ने लगी थीं. आमतौर पर जिस तरीके की बातें सोशल मीडिया पर आ रही थीं. हमने उन्हें बताया कि बीते 20 सालों से जो मेहनत की गई है, वह बेकार हो जाएगी भारत और अमेरिका के रिश्तो में. उन्होंने भी इस चीज को स्वीकार किया कि अमेरिका को अपने प्रयास बढ़ाने की जरूरत है. भारत की मदद न करने का कोई भाव नहीं था. ऐसे में पूरा प्लान बनाया गया और अमेरिकी सरकार से लेकर पूरा तंत्र इस काम में जुट गया. मैं आपको बता सकता हूं कि इस समय हमें हर दिन लोगों के फोन आ रहे हैं. भारत की मदद के लिए समुदाय के लोग फंड रेजिंग कर रहे हैं. लाखों डॉलर से ज्यादा की मदद जमा कर ली गई है. ऐसे में हमारे सामने बड़ी परेशानी लॉजिस्टिक्स की है. हम इस सामान को कैसे भारत को पहुंचाएं. वहां कैसे इसे जरूरतमंद लोगों तक ले जाया जाए."

विदेशों से सामान खरीदकर भारत पहुंचा रहे 
उन्होंने बताया कि, "इस सप्ताह फेडेक्स एक विशेष चार्टर्ड फ्लाइट 777 विमान के साथ भेज रहा है. हम इस कोशिश में जुटे हैं कि वह दो विमान भेजें. ताकि हम ज्यादा से ज्यादा सामान को पहुंचा सकें. इसके अलावा चीन से भी हमारी फ्लाइट रोज भारत पहुंच रही है, क्योंकि हम बहुत से सामान को चीन से खरीद कर भारत पहुंचा रहे हैं. भारत सरकार के भी संपर्क में हैं. रोज सुबह हमारी भारत में एंपावर्ड ग्रुप जो नीति आयोग के अंतर्गत काम कर रहा है उसके साथ चर्चा होती है. भारत को किस तरीके की जरूरत है, हम अमेरिका से कैसा सामान भेज सकते हैं और उसे किस तरह भेजा जा सकता है. इन तमाम मुद्दों पर हम भारतीय अधिकारियों के साथ चर्चा कर आगे बढ़ते हैं. हमारा ध्यान इस बात पर भी रहता है कि अलग-अलग देशों से आ रही मदद में कहीं ऐसा ना हो कि एक ही सामान बहुत अधिक मात्रा में पहुंच जाए. लिहाजा जिस चीज की जरूरत हो उसे जल्द से जल्द उपलब्ध कराया जाए. चाहें वह दवाइयां हो या उपकरण हों."

कोरोना की तीसरी लहर को लेकर यह कहा
डॉ. अघी ने कहा कि, "हमारे सामने सवाल इस बात का भी है कि तीसरी वेव जब आएगी इसके लिए हम तैयार हैं या नहीं? क्योंकि फ्रांस और ब्रिटेन हो या अन्य देश तीसरी वेव का सामना कई मुल्कों को करना पड़ा. यह वेव जब आएगी तब शहरों से ज्यादा ग्रामीण इलाकों में असर करेगी. इसी वजह से हम फील्ड हॉस्पिटल स्थापित करने की योजना पर आगे बढ़ रहे हैं. हमारा प्लान है कि हम 200 बिस्तर वाले करीब 50 फील्ड अस्पताल स्थापित करें जिनके पास अपनी ऑक्सीजन क्षमता हो. हमें पूरा भरोसा हैं कि भारत और अमेरिका की साझेदारी इस संकट के बाद और मजबूत होकर उभरेगी. साथ ही दोनों देश मिलकर कोरोना के खिलाफ इस लड़ाई को कामयाबी के साथ जीतेंगे."

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