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नारियल को क्यों कहते हैं 'श्रीफल', जानिए इसका महत्व और शास्त्रीय व लौकिक स्वरूप

नारियल को श्रीफल भी कहते हैं. प्रत्येक पूजा में इसका उपयोग होता है. इसके जल से देवी-देवताओं को स्नान कराया जाता है. धार्मिक ग्रंथों के जानकर अंशुल पांडे से जानते हैं नारियल का शास्त्रीय और लौकिक पक्ष.

सम्पूर्ण भारतवर्ष में किसी भी मांगलिक अवसर पर की जा रही पूजा में एक चीज जो परम आवश्यक है, वह है 'श्रीफल'. कलश स्थापना हो, विवाह हो, उपनयन संस्कार हो, पूजा हो, यहां तक कि बेटी की विदाई हो, नारियल प्रत्येक अवसर पर होना अनिवार्य है. नई गाड़ी लेते समय भी नारियाल फोड़कर उसका जल नई गाड़ी पर छिड़का जाता है. पारसी वधु भी हाथ में नारियल पकड़े नजर आते हैं. जानते हैं क्यों यह तटीय स्थान पर उगने वाले पेड़ से निकला फल हमारे यहां शुभ मंगल का पर्याय बन गया है?

नारियल के पेड़ के सभी हिस्से उपयोगी फल का महत्व हम जानते ही हैं, पर इसकी लम्बी पत्तियां कच्चे घर के ऊपर छाजन या छत के रूप में उपयुक्त होती है. इसके तने से उपयोगी वस्तु बनाने का काम लिया जा सकता है. इसका पानी पिया ही जाता है, जब भी कोई व्यक्ति हॉस्पिटल में भर्ती होता है हम आवश्य ही उसको नारियाल पानी भेंट देते हैं क्योंकि विज्ञान भी कहता है कि नारियल पानी बहुत उपयोगी है हमारे शरीर के लिए. इसके भीतर का सफेद गूदा कई तरह से खाने के काम में उपयोग में लाया जाता है. नारियल का छिलका ईंधन जलाने के काम में लाया जाता है और इसके अन्दरूनी कठोर छिलका कटोरी के रूप में प्रयुक्त होता है.

चालिए अब श्रीफल के शास्त्रीय पक्ष पर दृष्टि डालते हैं-

  • श्रीफल पूजा में क्यों उपयोग होता है: शिव पुराण रूद्र संहिता 14.41 (उपरि श्रीफलं त्वेकं गन्धपुष्पादिभिस्तथा रोपयित्वा च धूपादि कृत्वा पूजाफलं भवेत्॥) अनुसार, श्रीफल चढ़ाकर धूप आदि से भगवान को निवेदन करे, तो पूजा का पूरा-पूरा फल प्राप्त होता है.
  • नारियल के फूल क्या सेहत के लिए उपयोगी होते हैं: गरूड़ पुराण 189 के अनुसार नारियल वृक्ष के फूल रक्तवात-विकार नष्ट हो जाता है.
  • नारियल वृक्ष ने मनुष्य जाति पर क्यों उपकार किया: नालिकेरवृक्षः तृतीयः पाठ (प्रथमवयसि पीतं तोयमल्पं स्मरन्तः शिरसि निहितभारा नारिकेला नराणाम् ।
    उदकममृतकल्प दराजीवनान्तं न हि कृतग्रुपकारं साधवो विस्मरन्ति॥) अनुसार, नारियल मनुष्यों को जीवन भर अपना मधुर जल पिलाते हैं क्योंकि उनके अनुसार मनुष्य नारियल वृक्ष के प्रथम वर्ष में उन्हें साल भर पानी पिलाते हैं यह उपकार नारियल ने ये भार अपने सिर पर धारण कर लिया. साधु पुरुष और नारियल एक जैसे माने गए हैं.
  • नारियल को श्रीफल क्यों कहा जाता हैं: मत्स्यपुराणमें 261.43 (पद्म हस्ते प्रदातव्यं श्रीफलं दक्षिणे करे) अनुसार, दाहिने हाथ में श्रीफल और बायें हाथ में कमल का उल्लेख है. इस श्लोक से स्पष्ट होता हैं कि क्योंकि वह माता लक्ष्मी को प्रिय है इसलिए इसे श्री(लक्ष्मी)फल(नारियल) कहते हैं.
  • क्या नारियल हवन के हविश में भी चढ़ाया जाता हैं: कूर्म पुराण 39.88 (घृतेन स्नापयेद् रुद्र सपूत श्रीफल दहेत्।) अनुसार घृत युक्त श्रीफल का हवन करना चाहिए. इससे स्पष्ट होता है कि यज्ञ एवं हवन में नारियल अनिवार्य है. पारंपरिक पूजा में भी जब यज्ञ की पूर्णाहुति होती है तो यजमान को खड़े होकर नारियल चढ़ाना पड़ता है पूर्णाहुति के रुप में.
  • क्या नारियल का जल देवी–देवताओं को अर्पण किया जाता हैं: देवी पुराण 11.18.41 (ततः पानीयकं दद्याच्छुभं गङ्गाजलं महत् । कर्पूरवालासंयुक्तं शीतलं कलशस्थितम् ॥ ४१) अनुसार नारियल-जल से युक्त कलश का शीतल जल देवी को अर्पण करें.
  • क्या नारियल के जल से भगवान को स्नान करवाना चाहिए: पद्मा पुराण पाताल खंड अध्याय 80 के अनुसार, नारियल युक्त जल से भगवान को स्नान कराएं.
  • क्या नारियल चढ़ाने से अनुसार मनोकामना पूर्ण होती हैं: अर्थेश्वर लिंग पर नारियल चढ़ाने से संतान प्राप्ति होती हैं. स्कंद पुराण प्रभास खण्ड के अनुसार,
    सोमेश्वर से पूर्वं साठ धनुष की दूरी पर अर्थेश्वर लिंग है, जो पुत्रहीन स्त्री उधर नारियल चढ़ाती है, वह बलवान  एवं सुन्दर पुत्र पाती है.
  • कलश स्थापना में नारियल क्यों रखतें हैं: पद्म पुराण श्रीमद्भागवत माहात्म्य 114.31–35; के अनुसार श्रीमद्भागवत पुराण के आगे श्रीफल (नारियल) रखकर नमस्कार करें और प्रसन्न चित्त से इस प्रकार स्तुति करें-“श्रीमद्धागवत के रूप में आप (नारियल) साक्षात्‌ भगवान श्री कृष्ण ही यहां विराजमान हैं". अर्थात उस नारियल में भगवान का वास होता है और इसलिए इसकी पूजा की जाती है.

ये तो रहा शास्त्रीय स्वरुप अब चलते हैं लौकिक स्वरूप की ओर: 

मान्यताओं के अनुसार जो मनुष्य अपने बुरे कर्मों से मुक्ति पाना चाहते थे वे नारियल को सिर के रूप में मानते थे और इसे तोड़कर भगवान को चढ़ाते थे. प्रतीकात्मक रूप से वे बुराइयों से मुक्त होने के लिए ऐसा करते थे. उनकी इच्छा बलिदान को रक्तहीन करने की थी जिसके टूटने से मानव के अहं और स्वार्थ के टूटने का आभास होता है. इस फल के खोल के ऊपर तीन काले धब्बे हैं. आप बीच में छेद करके ही भीतर पानी तक पहुंच सकते हैं. भगवान शिव की तीसरी आंख इस मध्य आंख की ओर संकेत करती है.

मान्यता है कि घर में नारियल रखने और नारियल की पूजा करने से माता लक्ष्मी का वास होता है और उनकी कृपा बनी रहती है. हालांकि नारियल चढ़ाने के समय कुछ बातों का और फोड़ने का एक समय होता है. किसी भी अच्छे कार्य का आरम्भ नारियल तोड़ कर किया जाता है. प्रत्येक पूजा अर्चना में भी भगवान को नारियल जरूर चढ़ाया जाता है. प्रचलित मान्यता है कि नारियल चढ़ाने से सभी मनोकामनाऐं पूरी हो जाती हैं. पूजा में प्रयोग किए हुए नारियल को तोड़ कर प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है.

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