Nataraja Apasmara Purusha: भगवान नटराज के पैरों के नीचे कौन दबा है, क्या आप जानते हैं
Nataraja Apasmara Purusha: भगवान शिव के कई अवतारों में एक है नटराज, जिसमें वे नृतक के रूप में नजर आते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि नजराज की प्रतिमा में पैरों के नीचे कौन दबा हैं.

Nataraja Apasmara Purusha: हिंदू धर्म में भगवान शिव के अनेक रूपों का वर्णन मिलता है, जिसमें नटराज स्वरूप भी एक है. यह शिव का सबसे रहस्यमय और दार्शनिक रूप है. तमिलनाडु के चिदंबरम मंदिर में नटराज की मूर्ति प्रतिष्ठित है. कहा जाता है कि, यहां शिव ने आनंद तांडव नृत्य किया था. शिव का नटराज रूप केवल एक नृत्य मुद्रा नहीं, बल्कि सृष्टि के संचालन, जीवन और मोक्ष का प्रतीक है.
आप तमिलनाडु के चिदंबरम मंदिर यदि नहीं भी गए हों तो, नटराज की मूर्ति अवश्य देखी होगी. नटराज की प्रतिमा में भगवान शिव के पैरों के नीचे एक जीव दबा होता है. क्या आप जानते हैं कि वह कौन है? ऐसी क्या वजह है कि भगवान ने इसे अपने पैरों के नीचे दबाया. कई लोगों के मन में इसे लेकर सवाल होते हैं, जिसका जवाब हम आपको यहां दे रहे हैं.
नटराज के पैर के नीचे कौन दबा है
शास्त्रों के अनुसार भगवान नटराज के पैरों के नीचे जो दबा है, उसका नाम ‘अपस्मार पुरुष’ है. अपस्मार पुरुष को अज्ञान, अहंकार, मोह और अविद्या का प्रतीक माना गया है. यह वह नकारात्मक अवस्था है, जोकि मनुष्य को सत्य, ज्ञान और आत्मबोध से दूर रखता है. धार्मिक मान्यताओं में अपस्मार को केवल एक दानव नहीं, बल्कि मानव के भीतर छिपी कमजोरियों का प्रतीक बताया गया है.
नटराज ने अपने पैर से दबाया अज्ञान, अहंकार, मोह और अविद्या
नटराज की मूर्ति में भगवान शिव का दायां पैर अपस्मार पुरुष पर रखा होता है, जो यह दर्शाता है कि ज्ञान और चेतना, अज्ञान पर विजय प्राप्त करती है. वहीं, उनका उठा हुआ बायां पैर मोक्ष और मुक्ति का संकेत देता है. इसका अर्थ कि जब मनुष्य अहंकार और अज्ञान से मुक्त होता है, तभी उसे जीवन के सत्य का बोध होता है.
नटराज की मुद्रा का अर्थ और रहस्य
भगवान नटराज के चारों हाथ भी गहरे अर्थ से जुड़े हैं. एक हाथ में डमरू सृष्टि की उत्पत्ति का संकेत देता है, दूसरा हाथ अग्नि के रूप में संहार का प्रतीक है.
तीसरा हाथ अभय मुद्रा में सुरक्षा और निर्भयता का संदेश देता है, जबकि चौथा हाथ उठे हुए चरण की ओर संकेत करता है, जो मोक्ष का मार्ग दिखाता है.
नटराज के चारों ओर बना अग्नि वलय ब्रह्मांड की निरंतर गति, समय और परिवर्तन का प्रतीक है, जो बताता है कि सृष्टि स्थिर नहीं, बल्कि निरंतर परिवर्तनशील है और इसी परिवर्तन के बीच शिव का नृत्य संदेश देता है कि संतुलन बनाए रखना जीवन का सार है.
इस प्रकार नटराज का यह स्वरूप यह सिखाता है कि जब तक मनुष्य अपने भीतर के अपस्मार यानी अहंकार, भ्रम और अज्ञान को नहीं दबाता, तब तक आत्मिक शांति संभव नहीं. इस प्रकार शिव का नटराज रूप केवल पूजा के साथ जीवन दर्शन भी है.
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