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स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी से पीड़ित मरीजों को सरकार से कैसे मिलती है मदद, कौन-कौन सी योजनाएं आ सकती हैं काम?

हेल्थ एक्सपर्ट्स का कहना है कि इस बीमारी में जन्म के शुरुआती महीनों में रीढ़ की हड्डी में धीरे-धीरे मोटर न्यूरॉन का डैमेज होने लगता है. बिना जांच इसकी पहचान नहीं हो पाती है.

Spinal Muscular Atrophy : स्पाइनल मस्कुलर एट्रॉफी (SMA) एक जेनेटिक डिसऑर्डर है, जो नर्वस सिस्‍टम और मांसपेशियों को बुरी तरह प्रभावित करता है. यह एक दुर्लभ बीमारी है. यह जिंदा पैदा होने वाले 10,000 नवजात बच्चों में से किसी एक में पाया जाता है. भारत में 38 बच्चों में से एक बच्चे को यह बीमारी है. टाइप 1 SMA सबसे गंभीर माना जाता है, जो जन्म के शुरूआती कुछ महीनों में सामने आने लगती है.

इस बीमारी से शिशुओं की मांसपेशियां कमजोर हो सकती है, सांस लेने, निगलने में कठिनाई और दिमाग की परेशानियां हो सकती हैं. इस बीमारी का इलाज काफी महंगा होता है, इसलिए हर किसी के लिए इसका इलाज संभव नहीं है. ऐसे में आइए जानते हैं स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी से पीड़ित मरीजों को सरकार से कैसे मदद मिलती है, कौन-कौन सी योजनाएं इलाज में काम आ सकती हैं...

स्पाइनल मस्कुलर एट्रॉफी कितनी खतरनाक

हेल्थ एक्सपर्ट्स का कहना है कि इस बीमारी में जन्म के शुरुआती महीनों में रीढ़ की हड्डी में धीरे-धीरे मोटर न्यूरॉन का डैमेज होने लगता है. बिना जांच इसकी पहचान नहीं हो पाती है. बच्चों में SMA से जुड़े लक्षणों या आनुवांशिक म्यूटेशन की जांच के लिए एक नॉर्मल ब्लड टेस्ट होता है. इससे जल्द इलाज मिलने और समस्या को सही तरह कंट्रोल करने में मदद मिल सकती है.

बीमारी का पता चलने पर क्या करना होता है

किसी बच्चे में स्पाइनल मस्कुलर एट्रॉफी की पहचान होने के तुरंत बाद उसका रजिस्ट्रेशन सेंटर ऑफ एक्सीलेंस (COE) में कराना चाहिए, ताकि सरकारी योजनाओं का पूरा-पूरा लाभ मिल सके. सीओई को SMA की देखभाल करने में विशेषज्ञता है. ये इस समस्या को प्रभावी तरीके से कंट्रोल करने के लिए स्वास्थ्य देखभाल, खास इलाज करते हैं. इन सेंटर्स पर रजिस्ट्रेशन करा कर, परिवार, खासतौर पर तैयार की गई मेडिकल सर्विसेज, आर्थिक मदद, समय पर इलाज के लिए थैरेपी, रिहैबिलेशन प्रोग्राम और अत्याधुनिक शोध का फायदा उठा सकते हैं.

इतना ही नहीं सीओई परिवारों को मेडिकल एक्सपर्ट्स, केयरगिवर्स और साथियों की एक सहयोगी कम्युनिटी भी उपलब्ध कराते हैं. SMA से पीड़ित बच्चे की देखभाल और सहयोग के लिए न्यूरोलॉजिस्ट, पीडियाट्रिशियन, ऑर्थोपेडिक, पल्मनोलॉजिस्ट, गैस्ट्रोएंट्रोलॉजिस्ट, ऑर्थोटिक्स और एंडोक्राइनोलॉजिस्ट भी कंट्रोल में मदद कर सकते हैं.

स्पाइनल मस्कुलर एट्रॉफी का इंजेक्शन कितना महंगा

स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी के इंजेक्शन की कीमत 17 करोड़ रुपए है. इसका नाम Zolgensma है. यह दुनिया की सबसे महंगी दवा है. यह वन-टाइम जीन थेरेपी होती है. भारत में यह अप्रूव्ड नहीं है लेकिन डॉक्टर की सलाह और सरकार की मंजूरी के बाद इसे बाहर से मंगाया जा सकता है.

SMA पीड़ितों की मदद सरकार कैसे करती है

केंद्र सरकार का तर्क है कि इस बीमारी का इलाज सरकार की वित्तीय पहुंच से काफी बाहर है. एसएमए थेरेपी की लागत सालाना 50 लाख रुपए से लेकर 8 करोड़ रुपए तक है, जबकि जीन थेरेपी की लागत 9 करोड़ रुपए से लेकर 30 करोड़ रुपए तक है. केंद्र सरकार की सलाह है कि वित्तीय सहायता की बजाय क्राउडफंडिंग और राज्यों से मदद को बढ़ावा दिया जाना चाहिए. रिपोर्ट्स के अनुसार, दुर्लभ बीमारियों के लिए राष्ट्रीय नीति के तहत 50 लाख रुपए तक की वित्तीय मदद दी जाती है. दुर्लभ बीमारियों का इलाज सेंटर ऑफ एक्सीलेंस (COE) कराया जा सकता है.

Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.

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