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हर साल 18 लाख लोग हो रहे स्ट्रोक का शिकार, इन वजहों से होता है स्ट्रोक

दुनियाभर में स्ट्रोक के सभी मामलों में 20 से 25 प्रतिशत मामले भारत के होते हैं. हर साल लगभग 18 लाख भारतीय इस हालत से पीड़ित हैं.

नई दिल्लीः दुनिया भर में कोरोनरी धमनी रोग के बाद मृत्यु का दूसरा सबसे आम कारण है ब्रेन स्ट्रोक, जो स्थाई विकलांगता का भी एक सबसे प्रचलित कारण है. दुनियाभर में स्ट्रोक के सभी मामलों में 20 से 25 प्रतिशत मामले भारत के होते हैं. हर साल लगभग 18 लाख भारतीय इस हालत से पीड़ित हैं.

क्या कहती है मेडिकल एसोसिएशन- इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) का कहना है कि स्ट्रोक सिर्फ वृद्धों तक सीमित नहीं रहा. जीवनशैली बदलने के चलते अब 40 साल से कम उम्र के युवाओं में भी यह बीमारी घर करती जा रही है.

कब होता है स्ट्रोक- स्ट्रोक तब होता है, जब आपके मस्तिष्क के किसी हिस्से में खून की सप्लाई ठीक से नहीं हो पाती या कम हो जाती है. इस कारण से मस्तिष्क के ऊतकों को ऑक्सीजन और पोषक तत्वों की आपूर्ति बाधित हो जाती है. ऐसे में, कुछ ही मिनटों के भीतर, मस्तिष्क की कोशिकाएं मरनी शुरू हो जाती हैं. स्ट्रोक का पता लगाना अनिवार्य है, क्योंकि यदि इलाज शुरू न हो तो हर सेकेंड 32,000 मस्तिष्क कोशिकाएं क्षतिग्रस्त होती जाती हैं.

क्या कहते हैं एक्सपर्ट- आईएमए के अध्यक्ष डॉ. के.के. अग्रवाल ने कहा, "समय ही मस्तिष्क है. इस कहावत के हिसाब से स्ट्रोक के रोगी को जल्द से जल्द अस्पताल पहुंचाना चाहिए. वहां उसे फटाफट रक्त का थक्का बनने से रोकने की थेरेपी मिलनी चाहिए. स्ट्रोक की हालत धमनी में रुकावट पैदा होने से हो सकती है (इस्केमिक स्ट्रोक) या फिर रक्त वाहिका में लीकेज होने से (हीमरेजिक स्ट्रोक). कुछ अन्य मामलों में, यह मस्तिष्क में रक्त प्रवाह अस्थाई तौर पर रुकने से भी हो सकता है (ट्रांसिएंट इस्केमिक अटैक)."

स्ट्रोक के लिए जिम्मेदार कारक- लगभग 85 प्रतिशत स्ट्रोक अस्केमिक प्रकृति के होते हैं. देश में स्ट्रोक के लिए जिम्मेदार कुछ सामान्य कारकों में हाई ब्लडप्रेशर, डायबिटीज, धूम्रपान और डिस्लिपीडेमिया रोग प्रमुख हैं. बीमारी के बारे में कम जागरूकता के कारण ये ठीक से नियंत्रित नहीं किए जाते. इस दिशा में एक अन्य प्रमुख चुनौती यह है कि स्ट्रोक के उपचार के लिए अभी भी हमारे देश में उचित व्यवस्था नहीं है."

स्ट्रोक की चेतावनी के लक्षण- अंग्रेजी के शब्द 'फास्ट' को स्ट्रोक की चेतावनी के लक्षण पहचानने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है-यह है फेस ड्रूपिंग यानी चेहरा मुरझाना, आर्म वीकनेस यानी हाथ में कमजोरी, स्पीच डिफीकल्टी यानी बोलने में कठिनाई और टाइम टू इमरजेंसी यानी आपातकाल. स्ट्रोक के कारण होने वाली अक्षमता अस्थायी या स्थायी हो सकती है. यह इस पर निर्भर करता है कि मस्तिष्क में कितने समय तक रक्त प्रवाह रुका रहा और कौन सा हिस्सा प्रभावित होता है.

स्ट्रोक का प्रारंभिक उपचार- स्ट्रोक एक आपातकालीन स्थिति है और समय पर मदद मिलने और तुरंत उपचार बेहद महत्वपूर्ण है. इसलिए, इन रोगियों की पहचान करने के लिए तेजी से कार्य करना बहुत जरूरी है. प्रारंभिक उपचार से रिकवरी की संभावना बढ़ जाती है. लिंग और आनुवंशिक कारकों पर तो किसी का जोर नहीं होता, लेकिन जीवनशैली में कुछ परिवर्तन करके युवावस्था में स्ट्रोक की आशंका को कम किया जा सकता है."

स्ट्रोक को रोकने के उपाय :

* हाई ब्लड प्रेशर स्ट्रोक की संभावना बढ़ाता है, इसलिए ब्लआड प्रेशर के स्तर पर निगाह रखें.

* वजन कम करने से कई अन्य परेशानियों से बचा जा सकता है.

* हर दिन लगभग 30 मिनट की शारीरिक गतिविधि जरूरी है.

* यदि संभव हो तो धूम्रपान और मदिरापान को छोड़ दें.

* अपनी ब्लड शुगर को नियंत्रण में रखें.

* मेडिटेशन और योग जैसी गतिविधियों के माध्यम से तनाव कम करें.

नोट: ये रिसर्च के दावे पर हैं. ABP न्यूज़ इसकी पुष्टि नहीं करता. आप किसी भी सुझाव पर अमल या इलाज शुरू करने से पहले अपने डॉक्टर की सलाह जरूर ले लें.

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