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कर्नाटक में मंकी फीवर का कहर, जानिए कितना खतरनाक है ये बुखार, कैसे करें बचाव
मंकी फीवर का पहला केस 16 जनवरी को सामने आया था. कर्नाटक के उत्तर कन्नड़ जिले में यह बीमारी तेजी से बढ़ी है. हालांकि, अभी तक किसी तरह का गंभीर मामला नहीं आया है इससे सावधान रहने की जरूरत हैं.
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मंकी फीवर का कारण ( Image Source :Freepik )
Monkey Fever: कोरोना के बाद अब मंकी फीवर का खतरा बढ़ रहा है. कई राज्यों में इस बुखार के मामले बढ़ने की खबरें आ रही हैं. स्वास्थ्य अधिकारियों के मुताबिक, पिछले 15 दिनों में कर्नाटक के उत्तर कन्नड़ जिले में मंकी फीवर (Monkey Fever) के केस तेजी से बढ़े हैं. कुल 31 संक्रमितों में से 12 मरीज अभी अस्पतालों में भर्ती हैं. जबकि बाकी मरीजों का इलाज घर पर ही चल रहा है. सभी की हालत स्थिर है, अभी तक किसी तरह का गंभीर मामला नहीं आया है लेकिन आइए जानते हैं आखिर यह फीवर क्या है और यह कितना खतरनाक है...
मंकी फीवर क्या है
मंकी फीवर यानी क्यासानूर फॉरेस्ट डिजीज (KFD) जानवरों से इंसानों में फैल सकता है. बंदरों के शरीर में पाए जाने वाले टिक्स (किलनी) के काटने से यह बीमारी इंसानों में आ सकती है. देश के कुछ राज्यों में इसके केस देखने को मिले हैं. इनें कर्नाटक, महाराष्ट्र और गोवा शामिल है.
क्यासानूर फॉरेस्ट डिजीज क्या होता है
केएफडी जिसे मंकी फीवर भी कहा जाता है, इंसानों के लिए बेहद खतरनाक हो सकता है. इसलिए सावधान रहने की सलाह दी जा रही है. इस संक्रामक बीमारी की वजह से अचानक से बुखार, गंभीर सिरदर्द, मांसपेशियों में दर्द और थकान जैसी समस्याएं हो सकती हैं. बीमारी बढ़ने के साथ उल्टी और दस्त जैसे गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल का खतरा भी बढ़ सकता है. हेल्थ एक्सपर्ट्स के मुताबिक, मंकी फीवर के गंभीर मामलों में नाक और मसूड़ों से खून आ सकता है. कंपकंपी, चलने में समस्याएं, मानसिक भ्रम जैसी न्यूरोलॉजिकल प्रॉब्लम्स भी हो सकती हैं. इसलिए इसका इलाज तुरंत करवाना जरूरी हो जाता है.
मंकी फीवर से कैसे बचें
मेडिकल रिपोर्ट्स के अनुसार, मंकी फीवर यानी केएफडी के लिए किसी तरह का विशेष इलाज नहीं है। सिर्फ लक्षणों का पता लगाकर इसके जोखिमों को कम करने का इलाज किया जाता है. खून आने वाली समस्याओं में मरीजों को अस्पताल में भर्ती कराया जाता है और लगातार पानी पीने की सलाह दी जाती है. हेल्थ एक्सपर्ट्स के मुताबिक, मंकी फीवर से बचने के सभी उपाय करते रहने चाहिए. इसकी वैक्सीन भी मौजूद है. जिसे लगवाने से संक्रमण से बचाव और बीमारी के गंभीर रूप लेने का जोखिम कम हो सकता है. टिक्स के काटने से भी बचना चाहिए. इसके लिए सुरक्षित कपड़े पहन सकते हैं.
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डॉ. सब्य साचिन, वाइस प्रिंसिपल, जीएसबीवी स्कूल
Opinion