BJP President: राष्ट्रीय अध्यक्ष से कितना अलग होता है राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष का पद? BJP के फैसले के बाद दूर कर लीजिए कंफ्यूजन
BJP President: बीजेपी ने संगठन में ऐसा कदम उठाया है, जो आने वाले दिनों की राजनीति की दिशा बदल सकता है. एक नाम, एक उम्र और एक फैसले के पीछे छुपा है भविष्य का बड़ा संकेत. आइए जान लेते हैं.

BJP President: बीजेपी संगठन में एक अहम बदलाव करते हुए पार्टी ने राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष के नाम का एलान कर दिया है. बिहार सरकार में मंत्री रहे नितिन नबीन को यह जिम्मेदारी सौंपी गई है. यह फैसला इसलिए भी खास माना जा रहा है, क्योंकि इससे पहले जेपी नड्डा ने भी इसी पद से अपनी राष्ट्रीय नेतृत्व की यात्रा शुरू की थी और लगभग सात महीने बाद उन्हें पार्टी की कमान सौंप दी गई थी.
पहली बार किसी बिहार के शख्स को मिली इतनी बड़ी जिम्मेदारी
बीजेपी के इतिहास में यह पहला मौका है जब राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष की जिम्मेदारी बिहार से आने वाले किसी नेता को मिली है. महज 45 वर्ष की उम्र में नितिन नबीन को इतनी बड़ी संगठनात्मक भूमिका देकर पार्टी ने साफ संकेत दिया है कि अब फोकस अगली पीढ़ी के नेतृत्व को आगे लाने पर है. संगठन के भीतर इस फैसले को भविष्य की सियासत की तैयारी और युवा नेतृत्व पर भरोसे के तौर पर देखा जा रहा है. आइए इसी क्रम में जान लेते हैं कि राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष का पद राष्ट्रीय अध्यक्ष से कितना अलग होता है.
राष्ट्रीय अध्यक्ष का काम
राष्ट्रीय अध्यक्ष किसी भी पार्टी का सर्वोच्च संगठनात्मक पद होता है. वही पार्टी की वैचारिक दिशा तय करता है, बड़े राजनीतिक फैसलों पर अंतिम मुहर लगाता है और चुनावी रणनीति से लेकर गठबंधन तक के मुद्दों पर पार्टी का आधिकारिक चेहरा माना जाता है. संगठन के भीतर नियुक्तियां, अनुशासनात्मक कार्रवाई और राज्यों की इकाइयों पर नियंत्रण आमतौर पर राष्ट्रीय अध्यक्ष के अधिकार क्षेत्र में आता है. सार्वजनिक मंचों और मीडिया में भी राष्ट्रीय अध्यक्ष को ही पार्टी की आवाज माना जाता है.
राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष
इसके मुकाबले राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष का पद अपेक्षाकृत अलग प्रकृति का होता है. यह पद अक्सर तब बनाया जाता है जब पार्टी संगठन बहुत बड़ा हो जाए या राष्ट्रीय अध्यक्ष की जिम्मेदारियां ज्यादा फैल गई हों. कार्यकारी अध्यक्ष का काम रोजमर्रा के संगठनात्मक संचालन को संभालना, राज्यों के नेताओं से समन्वय रखना, अभियानों की निगरानी करना और राष्ट्रीय अध्यक्ष के निर्देशों को जमीन पर लागू कराना होता है. कई बार यह पद संक्रमणकालीन व्यवस्था के तौर पर भी बनाया जाता है, ताकि सत्ता का संतुलन बना रहे या नेतृत्व परिवर्तन धीरे-धीरे हो सके.
कैसे फैसले लेता है राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष
सबसे अहम फर्क यह है कि राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष आमतौर पर राष्ट्रीय अध्यक्ष के अधीन काम करता है. उसके फैसले अंतिम नहीं होते, बल्कि राष्ट्रीय अध्यक्ष की सहमति या दिशा-निर्देश पर आधारित होते हैं. हालांकि कुछ दलों में, अगर पार्टी संविधान अनुमति देता है, तो कार्यकारी अध्यक्ष को व्यापक प्रशासनिक अधिकार दिए जा सकते हैं, लेकिन फिर भी राजनीतिक रूप से सर्वोच्च पद राष्ट्रीय अध्यक्ष का ही माना जाता है.
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