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कब और कहां बनाया गया था दुनिया का पहला जहाज, जानें कितनी आई थी लागत?

जहाजों ने एक ओर समुद्र से जुड़े सफर ने लोगों की लाइफ को आसान किया है, वहीं दूसरी ओर यह भी हमारे इतिहास का एक जरूरी हिस्सा बन चुका है.समुद्र के रास्ते यात्रा मानव सभ्यता के प्राचीन दिनों से है.

समुद्र में जहाजों से न सिर्फ लोग एक देश से दूसरे देश का सफर करते हैं, बल्कि इसके जरिए व्यापार भी बड़े पैमाने पर होता है. जहां एक ओर समुद्र से जुड़े सफर ने लोगों की लाइफ को आसान किया है, वहीं दूसरी ओर यह भी हमारे इतिहास का एक जरूरी हिस्सा बन चुका है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि दुनिया का पहला जहाज कब और कहां बनाया गया था, और उस पर कितनी लागत आई थी. समुद्र के रास्ते यात्रा करना मानव सभ्यता के प्राचीन दिनों से ही रहा है, और यह सच है कि इस सफर की शुरुआत किसी बहुत बड़ी तकनीकी खोज से हुई थी. हम सब जानते हैं कि समुद्र के रास्ते व्यापारी सामान का आदान-प्रदान करते थे, लेकिन शुरुआत में ये समुद्र यात्रा इतनी आसान नहीं थी. जहाजों का निर्माण एक लंबी और मुश्किल प्रक्रिया का हिस्सा था. ऐसे में चलिए आज जानते हैं कि दुनिया का पहला जहाज कब और कहां बनाया गया था और कितनी लागत आई थी. 

दुनिया का पहला जहाज कब और कहां बनाया गया था?

समुद्र के सबसे पहले जहाजों की शुरुआत मिस्र, यूनान, और फोनीशियन जैसे प्राचीन सभ्यताओं से हुई थी. यह सभी सभ्यताएं समुद्र के रास्ते व्यापार और अन्वेषण के लिए नावों और जहाजों का यूज करती थीं.  इनमें से समुद्र में पहला जहाज बनाने का क्रेडिट मिस्र वासियों को दिया जाता है. मिस्र वासियों ने सबसे पहले पपीरस से बनी लंबी और संकरी नावों का निर्माण किया था. ये नावें चप्पुओं से चलाई जाती थीं और मुख्य रूप से समुद्र के पास व्यापार के लिए यूज की जाती थीं. मिस्र के समुद्री यात्रियों ने अपने जहाजों के जरिए मेडिटेरिनियन सागर में अन्य देशों के साथ व्यापार किया था. 

कितनी लागत आई थी?

जब मिस्र वासियों ने सबसे पहले पानी पर चलने वाली नावों का निर्माण शुरू किया था, तो उस समय के जहाजों की लागत का हिसाब लगाना मुश्किल है. फिर भी यह कहा जा सकता है कि उस वक्त पपीरस की लकड़ी और चप्पुओं से बनी नावों की लागत आज के जहाजों से बहुत कम रही होगी. लेकिन, ये नावें शुरुआत में सिर्फ छोटे साइज की और हल्की होती थीं, जो मुख्य रूप से नदियों और तटीय जल क्षेत्रों में ही चलने के लिए बनी थीं. 

यूनान और फोनीशियनों का योगदान

यूनान और फोनीशियनों ने अपने समुद्री व्यापार को बढ़ाने के लिए जहाजों का निर्माण किया और उनका यूज सिर्फ के व्यापार के लिए नहीं, बल्कि युद्ध के लिए भी किया. यूनानियों ने गैली नावों का निर्माण किया, जो तीन पंक्तियों में चप्पू लगाने वाले नाविकों द्वारा चलाई जाती थीं. इस प्रकार के जहाजों का निर्माण बहुत महंगा था क्योंकि उन्हें युद्ध के लिए तैयार करना और उन पर युद्ध सामग्री रखना बहुत मुश्किल काम था.

फोनीशियनों ने समुद्र के रास्ते लंबी यात्राएं कीं, और उन्होंने जहाजों को व्यापार के साथ-साथ अन्वेषण के लिए भी यूज किया. इनकी नावों की लागत और निर्माण की तकनीक आज भी इतिहासकारों के लिए रिसर्च का विषय है. 

जहाज निर्माण के मॉडर्न युग में बदलाव

समय के साथ जहाजों के निर्माण में कई बदलाव आए. 18वीं सदी के लास्ट में जहाजों का निर्माण और भी बढ़ा हो गया था, और जहाजों की लागत भी बढ़ गई थी. औद्योगिक क्रांति के समय में जहाज निर्माण के लिए लोहे और इस्पात का यूज किया गया, जिससे जहाजों का साइज बढ़ा और निर्माण की लागत में भी इजाफा हुआ. 19वीं सदी में भाप से चलने वाले जहाजों का आविष्कार हुआ, जिससे समुद्री यात्रा में एक क्रांति आई. आजकल, जहाजों के निर्माण में मॉर्डन तकनीकों का यूज किया जाता है. यह बहुत महंगे होते हैं, और उनकी लागत लाखों डॉलर में होती है. समुद्री यात्रा के लिए यूज किए जाने वाले विशाल क्रूज जहाजों, मालवाहक जहाजों, और युद्धपोतों का निर्माण एक मुश्किल और खर्चीला काम है. 

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