भारत vs अमेरिका vs चीन... किस देश का उपराष्ट्रपति होता है सबसे शक्तिशाली, जानिए उसके पास कौन-कौन सी पावर
Vice President Election 2025 Voting: देश में आज उपराष्ट्रपति पद के लिए चुनाव हो रहा है. इसी क्रम में जानते हैं कि भारत, चीन या फिर अमेरिका किस देश के उपराष्ट्रपति के पास ज्यादा ताकत है.

Vice President Election 2025 Voting: जगदीप धनखड़ के इस्तीफे के बाद देश में उपराष्ट्रपति के चुनाव के लिए वोटिंग चल रही है. एनडीए के उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन और इंडिया ब्लॉक के उम्मीदवार बी. सुदर्शन रेड्डी के बीच मुकाबला चल रहा और इन्हीं दोनों में से कोई एक उपराष्ट्रपति पद की शपथ लेंगे. मतदान शाम 5 बजे तक चलेगा और शाम को 6 बजे मतगणना शुरू हो जाएगी. नतीजे देर शाम तक आने की उम्मीद है. इसी क्रम में चलिए जानते हैं कि भारत, अमेरिका या फिर चीन किस देश के उपराष्ट्रपति के पास कितनी कितनी पावर है.
भारत के उपराष्ट्रपति
भारत में उपराष्ट्रपति संविधान की दूसरी सबसे बड़ी पदवी रखते हैं और राज्यसभा के अध्यक्ष भी होते हैं. वे उच्च सदन की कार्यवाही को सुगम बनाने, नियमों की व्याख्या करने और सदस्य के अविश्वास जैसे मामलों में निर्णायक भूमिका निभाते हैं, मतलब उनके निर्णय संसद में बाध्यकारी होते हैं. ऐसी स्थिति में संसदीय रूप से उनकी स्थिति महत्वपूर्ण है, लेकिन निष्पादन शक्तियां प्रधानमंत्री और मंत्रिमंडल के हाथ में ही केंद्रित होती हैं.
भारत में उपराष्ट्रपति के पास विभिन्न विश्वविद्यालयों के कुलपति और सार्वजनिक संस्थानों के अध्यक्ष होने जैसे औपचारिक पद भी शामिल हैं.
अमेरिकी उपराष्ट्रपति की पावर
अमेरिका में उपराष्ट्रपति का मुख्य काम है अपने सांसद में टाई वोट का निर्णय करना और सैनेट के अध्यक्ष का पद-निष्ठ होना. इसके अलावा वे दोनों सदनों द्वारा राष्ट्रपति को हटाए जाने या उनके पद पर मृत्यु/डिसएबिलिटी की स्थिति में राष्ट्रपति का स्थान ग्रहण कर सकते हैं.
इसके अलावा अमेरिका में कुछ अनौपचारिक भूमिकाएं भी होती हैं, जैसे कैबिनेट की बैठकों में सहयोग, राष्ट्रपति के लिए सलाह देना और विदेशों में राष्ट्रपति का प्रतिनिधित्व भी इस पद को थोड़ा प्रभावशाली बनाती हैं. हालांकि उनकी शक्तियां सीमित हैं, लेकिन निर्णय लेने की क्षमताएं और संवैधानिक उत्तराधिकारी होने की स्थिति इसे मोर्चे पर मजबूत बनाती हैं.
चीन में उपराष्ट्रपति की ताकत
चीन में उपराष्ट्रपति का पद प्रतीकात्मक ही है. वहां के संविधान में यह कहा गया है कि वे राष्ट्रपति की सहायता करते हैं और राष्ट्रपति द्वारा सौंपे जाने पर कुछ कार्यों को अपना सकते हैं. यदि राष्ट्रपति पद खाली हो जाता है, तो उपराष्ट्रपति उसी पद पर आसीन हो जाते हैं.
लेकिन, असल में अधिकांश मामलों में वे औपचारिक ही रह जाते हैं, जैसे कि दूर देशों में कार्यक्रमों में प्रतिनिधित्व करना, विदेशी मेहमानों का स्वागत करना आदि. यानी हकीकत में चीन में उपराष्ट्रपति की उपस्थिति राजनीतिक निर्णयों या नीति निर्माण में न के बराबर होती है.
यह भी पढ़ें: चुनाव जीतते ही उपराष्ट्रपति को मिलने लगेंगी इतनी सुविधाएं, सैलरी जानकर उड़ जाएंगे होश
टॉप हेडलाइंस
Source: IOCL

























