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Vande Mataram Controversy: कांग्रेस ने क्यों लगा दी थी वंदे मातरम गाने पर पाबंदी, किन लाइनों को लेकर हुआ था विवाद?

Vande Mataram Controversy: महाराष्ट्र में वंदे मातरम पर एक विवाद खड़ा हो गया है. आइए जानते हैं कि कांग्रेस ने वंदे मातरम गाने पर पाबंदी क्यों लगाई थी और किन लाइनों का हुआ था विरोध.

Vande Mataram Controversy: हाल ही में महाराष्ट्र में वंदे मातरम को लेकर एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया. दरअसल 31 अक्टूबर को वंदे मातरम गीत के डेढ़ सौ साल पूरे हो चुके हैं. इस पर महाराष्ट्र सरकार ने यह आदेश दिया कि राज्य के सभी स्कूलों में 31 अक्टूबर से 7 नवंबर तक राष्ट्रीय गीत का पूरा संस्करण गाया जाएगा. सरकार के इस आदेश के बाद सपा नेता अबू आजमी ने इसका विरोध किया. इसी बीच आइए जानते हैं कि इतिहास में कांग्रेस ने वंदे मातरम गाने पर क्यों पाबंदी लगाई थी और किन लाइनों को लेकर विवाद फैला था. 

कैसे हुई वंदे मातरम की उत्पत्ति 

बंकिम चंद्र चटर्जी ने वंदे मातरम को 1870 के दशक में लिखा था. 1882 में उनके मशहूर बंगाली उपन्यास आनंदमठ में इसका प्रकाशन किया गया. 1896 में रविंद्रनाथ टैगोर ने इसे पहली बार कांग्रेस के एक अधिवेशन में गया था. जल्द ही यह भारत के स्वतंत्रता आंदोलन का एक नारा बन चुका था. 

लेकिन काफी कम समय में ही वंदे मातरम का विरोध होना शुरू हो गया था. कुछ मुस्लिम नेताओं ने वंदे मातरम पर आपत्ति जताई और तर्क यह दिया कि इसमें राष्ट्र को एक हिंदू देवी के रूप में दर्शाया गया है. उन्होंने कहा कि यह इस्लामी मान्यताओं के विपरीत है. 

आजादी से पहले हुआ विवाद 

 वक्त के साथ-साथ वंदे मातरम बंगाल की सीमाओं से आगे बढ़कर एकता का राष्ट्रीय प्रतीक बन गया. मोहम्मद अली जिन्ना ने भी शुरुआत में इस गीत की सराहना की थी. लेकिन कुछ वक्त बाद इस गीत पर आपत्ति होने लगी क्योंकि इसमें मातृभूमि को देवी दुर्गा के रूप में देखा गया है. इस गीत में एक शब्द है 'रिपुदलवारिणी' , इस शब्द को लेकर काफी विवाद हुआ. दरअसल इसका मतलब होता है शत्रुओं का नाश करने वाली. लेकिन कुछ मुस्लिम नेताओं ने रिपु शब्द का अर्थ मुसलमान के रूप में ले लिया. जबकि इतिहासकारों के मुताबिक यह शब्द किसी समुदाय के लिए नहीं बल्कि अंग्रेजों के लिए था. हालांकि इस बढ़ते धार्मिक विभाजन की वजह से कांग्रेस को इन चिंताओं को दूर करने के लिए कदम उठाना पड़ा.

1937 में कांग्रेस समिति का फैसला 

इस विवाद को सुलझाने के लिए कांग्रेस ने 1937 में एक समिति बनाई. इस समिति में रविंद्र नाथ टैगोर, सुभाष चंद्र बोस, मौलाना अबुल कलाम आजाद और जवाहरलाल नेहरू शामिल थे. आखिर में समिति ने यह फैसला लिया कि वंदे मातरम के सिर्फ पहले दो छंद, जो गैर धार्मिक शब्दों में मातृभूमि की स्तुति करते हैं गाए जाने चाहिए.

इसके बाद यह फैसला लिया गया कि आधिकारिक कार्यक्रमों और कांग्रेस के अधिवेशन में सिर्फ पहले दो छंद ही गाए जाएंगे. इस फैसले पर रविंद्र नाथ टैगोर की लोगों ने काफी आलोचना की, जिसके बाद उन्होंने 2 नवंबर 1937 में एक पत्र में यह लिखा कि उन्होंने खुद कलकत्ता अधिवेशन के दौरान यह गीत गाया है.

मुस्लिम लीग का दबाव और प्रतिबंध 

कांग्रेस के साथ हुए समझौते के बावजूद मोहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व वाली मुस्लिम लीग को संतुष्टि नहीं मिली. 17 मार्च 1938 को जिन्ना ने व्यक्तिगत रूप से जवाहर लाल नेहरू और महात्मा गांधी से वंदे मातरम को पूरी तरह से त्यागने का अनुरोध किया. हालांकि महात्मा गांधी ने इस पर कोई फैसला नहीं लिया लेकिन हरिजन पत्रिका में लिखा कि वह इससे पैदा होने वाले किसी भी सांप्रदायिक तनाव को बर्दाश्त नहीं करेंगे. 1940 तक आते-आते कांग्रेस ने अपने अधिवेशन में वंदे मातरम के गायन पर आधिकारिक रूप से प्रतिबंध लगा दिया. 

स्वतंत्रता के बाद मिली मान्यता 

स्वतंत्रता के बाद 24 जनवरी 1950 में भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने सभा में एक वक्तव्य पढ़ा जिसमें वंदे मातरम को देश के राष्ट्रगीत के रूप में आधिकारिक रूप से अपनाया गया.

ये भी पढ़ें: क्या होता है पोस्टल बैलेट पेपर, किस श्रेणी के मतदाता करते हैं इसका इस्तेमाल?

स्पर्श गोयल को कंटेंट राइटिंग और स्क्रीनराइटिंग में चार साल का अनुभव है.  इन्होंने अपने करियर की शुरुआत नमस्कार भारत से की थी, जहां पर लिखने की बारीकियां सीखते हुए पत्रकारिता और लेखन की दुनिया में कदम रखा. इसके बाद ये डीएनपी न्यूज नेटवर्क, गाजियाबाद से जुड़े और यहां करीब दो साल तक काम किया.  इस दौरान इन्होंने न्यूज राइटिंग और स्क्रीनराइटिंग दोनों में अपनी पकड़ मजबूत की.

अब स्पर्श एबीपी के साथ अपनी लेखनी को निखार रहे हैं. इनकी खास रुचि जनरल नॉलेज (GK) बीट में है, जहां ये रोज़ नए विषयों पर रिसर्च करके अपने पाठकों को सरल, रोचक और तथ्यपूर्ण ढंग से जानकारी देते हैं.  

लेखन के अलावा स्पर्श को किताबें पढ़ना और सिनेमा देखना बेहद पसंद है.  स्क्रीनराइटिंग के अनुभव की वजह से ये कहानियों को दिलचस्प अंदाज़ में पेश करने में भी माहिर हैं.  खाली समय में वे नए विषयों पर रिसर्च करना और सोशल मीडिया पर अपडेट रहना पसंद करते हैं.

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