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सूडान में भूख मिटाने को सूखा चारा और जानवरों की खाल खा रहे लोग, जानें कब घोषित होता है अकाल

गृह युद्ध से सूडान में हालात इतने भयावह हो गए कि लोग अब जिंदा रहने के लिए जानवरों के खाल और सुखी घास खाने को मजबूर हैं. सूडान में भुखमरी की हालत ऐसी हो गई है कि खाने-पीने का सामान खत्म हो चुका है.

देश में चल रहे भीषण गृह युद्ध से सूडान में हालात इतने भयावह हो गए हैं कि लोग अब जिंदा रहने के लिए जानवरों के खाल और सुखी घास तक खाने को मजबूर हैं. दरअसल, सूडान में चल रहे गृह युद्ध से भुखमरी की हालत ऐसी हो गई है कि खाने-पीने का सामान खत्म हो चुका है. अनाज के गोदाम खाली है और लाखों लोग भूख से जूझ रहे हैं. अंतरराष्ट्रीय भूख निगरानी संस्था आईपीसी की रिपोर्ट के अनुसार, सूडान के दो बड़े शहर अल-फशीर और काडुगली अब औपचारिक रूप से अकाल की स्थिति में है. 

18 महीने की घेराबंदी ने तोड़ी लोगों की उम्मीदें

सूडान के शहर अल-फशीर पर करीब 18 महीने तक सेना का कब्जा रहा. इस दौरान शहर में खाद्य आपूर्ति पूरी तरह बंद कर दी गई. लोगों को जानवरों का चारा, सूखी घास और यहां तक की खाल तक खानी पड़ी थी. स्थानीय लोगों का कहना है कि जब कुछ जगहों पर सामुदायिक रसोई शुरू की गई तो उन पर ड्रोन से हमले किए गए. वहीं जब लोग भाग कर नजदीकी तविला पहुंचे तो ज्यादातर बच्चे कुपोषित और बीमार मिले. एमएसएफ के अधिकारी के अनुसार, यहां रहने वाले कई लोग इतने कमजोर हो गए थे कि उन्हें पहचानना तक मुश्किल था. 

भूख के साथ बढ़ी हिंसा और तबाही 

अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायालय ने सूडान के अल-फशीर में सामूहिक हत्याओं और बलात्कार की घटनाओं की जांच शुरू कर दी है. वहीं रेड क्रॉस ने भी चेतावनी दी है कि दारफुर में इतिहास खुद को दोहरा रहा है. आईपीसी की रिपोर्ट में भी बताया गया है कि तविला, मेलिट और तविशा जैसे इलाकों में भी अकाल का खतरा मंडरा रहा है. करीब 21.2 मिलियन लोग यानी सूडान की कुल आबादी का 45 प्रतिशत हिंसा गंभीर खाद्य असुरक्षा से जूझ रहा है.ा

दो साल से जारी है संघर्ष

सूडान में आरएसएफ और सरकारी सेना के बीच पिछले 2 साल से संघर्ष जारी है. इस लड़ाई ने लाखों लोगों को बेघर कर दिया है. दारफुर और कोरदाफन जैसे इलाकों में जातीय हिंसा और महंगाई ने हालात और बिगाड़ दिए हैं. संयुक्त राष्ट्र और अन्य राहत संगठनों की मदद भी युद्ध और सरकारी अड़चनों के कारण जरूरतमंदों तक नहीं पहुंच पा रही है. बताया जा रहा है कि साल 2023 में शुरू हुए युद्ध और आर्थिक प्रतिबंधों ने सूडान की कमर तोड़ दी है. वहीं सूडान की खेती-बाड़ी ठप हो चुकी है, पशुधन खत्म हो गया है और अब लोग मिट्टी और सूखी घास की रोटी बनाकर जिंदा है. इसके अलावा सूडान के कई इलाकों में बच्चे भूख से मर रहे हैं, जबकि अस्पतालों में दवाइयां और डॉक्टर दोनों गायब है. 

बच्चों और बुजुर्गों पर सबसे ज्यादा असर

संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट बताती है कि सूडान की आधी से ज्यादा आबादी भुखमरी की स्थिति में है. हर तीसरा बच्चा कुपोषण से पीड़ित है. कई जगह पर लोग बीमारी से पहले भूख से मर रहे हैं. वहीं यूएन और रेड क्रॉस जैसी एजेंसी राहत सामग्री भेजने की कोशिश कर रही है, लेकिन जंग के चलते सहायता जरूरतमंदों तक नहीं पहुंच पा रही है. इसके अलावा सूडान में ज्यादातर सड़कें और पुल नष्ट हो चुके हैं, जिससे सप्लाई रुक गई है.

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कविता गाडरी बीते कुछ साल से डिजिटल मीडिया और पत्रकारिता की दुनिया से जुड़ी हुई है. राजस्थान के जयपुर से ताल्लुक रखने वाली कविता ने अपनी पढ़ाई माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय भोपाल से न्यू मीडिया टेक्नोलॉजी में मास्टर्स और अपेक्स यूनिवर्सिटी जयपुर से बैचलर ऑफ जर्नलिज्म एंड मास कम्युनिकेशन में की है. 
पत्रकारिता में अपना सफर उन्होंने राजस्थान पत्रिका से शुरू किया जहां उन्होंने नेशनल एडिशन और सप्लीमेंट्स जैसे करियर की उड़ान और शी न्यूज के लिए बाय लाइन स्टोरी लिखी. इसी दौरान उन्हें हेलो डॉक्टर शो पर काम करने का मौका मिला. जिसने उन्हें न्यूज़ प्रोडक्शन के लिए नए अनुभव दिए. 

इसके बाद उन्होंने एबीपी नेटवर्क नोएडा का रुख किया. यहां बतौर कंटेंट राइटर उन्होंने लाइफस्टाइल, करंट अफेयर्स और ट्रेडिंग विषयों पर स्टोरीज लिखी. साथ ही वह कंटेंट मैनेजमेंट सिस्टम और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर भी लगातार सक्रिय रही. कविता गाडरी हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं में दक्ष हैं. न्यूज़ राइटिंग रिसर्च बेस्ड स्टोरीटेलिंग और मल्टीमीडिया कंटेंट क्रिएशन उनकी खासियत है. वर्तमान में वह एबीपी लाइव से जुड़ी है जहां विभिन्न विषयों पर ऐसी स्‍टोरीज लिखती है जो पाठकों को नई जानकारी देती है और उनके रोजमर्रा के जीवन से सीधे जुड़ती है.

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