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शंकरिया...वो नाम जिसने ना सिर्फ राजस्थान, बल्कि पूरे उत्तर भारत को दहशत में रखा

शंकरिया के जन्म को लगभग 21 वर्ष हो गए थे. दुनिया तेजी से बदल रही थी. शंकरिया भी बदल गया था. अब वो जयपुर का मासूम बालक शंकरिया नहीं था, बल्कि राजस्थान का मशहूर सीरियल किलर कनपटीमार बन गया था.

सोशल मीडिया और मोबाइल फोन के कैमरों की पहुंच ने उन कहानियों का दौर खत्म सा कर दिया है जो दशकों पहले अफवाहों की शक्ल में गांवों, कस्बों में घूम कर लोगों के भीतर सिहरन पैदा कर देती थीं. खासतौर से मुंहनोचवा और लकड़सुंघवा जैसी कहानियों का आतंक उत्तर भारत के गांवों में इतना ज्यादा था कि 90 के दशक में कई बच्चे दोपहर में आमों की बगिया से और रात में तारों की छत से दूर हो गए थे.

हालांकि, आज हम इन अफवाहों वाली कहानियों की बात नहीं करेंगे. बल्कि, आपको एक ऐसी सच्ची डरावनी कहानी से रूबरू कराएंगे, जिसने ना सिर्फ राजस्थान, बल्कि उससे लगे उत्तर भारत के कई राज्यों को वर्षों तक दहशत में रखा.

जयपुर का शंकरिया

साल था 1952. भारत के लोग अपने पहले लोकतांत्रिक आम चुनाव के संपन्न होने की खुशी मना रहे थे. लेकिन इसी साल राजस्थान की राजधानी जयपुर में एक ऐसे बच्चे ने जन्म लिया जो आने वाले समय में कई लोगों के लिए काल बनने वाला था. पुलिस रिकॉर्ड के मुताबिक, शंकरिया का जन्म 1952 में राजस्थान के जयपुर में हुआ था. दुनिया ने जिसे बाद में कनपटीमार के नाम से जाना.

शंकरिया से कनपटीमार तक...

देश के आम चुनाव और शंकरिया के जन्म को लगभग 21 वर्ष हो गए थे. दुनिया तेजी से बदल रही थी. शंकरिया भी बदल गया था. अब वो जयपुर का मासूम बालक शंकरिया नहीं था, बल्कि राजस्थान का मशहूर सीरियल किलर कनपटीमार बन गया था. एक के बाद एक कई हत्याओं ने कनपटीमार को एक डरावनी कहानी बना दिया था.

राजस्थान और उससे लगे इलाकों में लोग रात को अकेले कहीं आने जाने में डरते थे. हालांकि, आधिकारिक रूप से अभी तक शंकरिया सीरियल किलर घोषित नहीं हुआ था. लेकिन पुलिस और आम लोगों के बीच एक साये की कहानी घूमने लगी थी कि कोई है जो लोगों को बिना किसी वजह एक तय तरीके से मार रहा है.

70 हत्याएं और फांसी

ये 70 का दशक था. लोगों के पास सूचनाएं अखबारों के माध्यम से या फिर रेडियो के माध्यम से पहुंचती थीं. 17 मई 1979 की सुबह राजस्थान और उसके आसपास के राज्यों के लिए एक अलग सुबह थी. यहां के लोगों को उस साये से आजादी मिल गई थी, जो उन्हें रात में बाहर निकलने से रोक रहा था. दरअसल, 16 मई 1979 को कनपटीमार को फांसी दे दी गई  थी. फांसी के वक्त शंकरिया की उम्र महज 27 साल थी. इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार, शंकरिया ने अपने जीवन में 70 लोगों की हत्याएं की थी.

कनपटीमार क्यों कहते थे लोग

सीरियल किलर की एक पहचान होती है. वो अपने हर शिकार को एक ही तरीके से मारता है. शंकरिया के केस में भी ऐसा ही था. वह हर इंसान को मारने के लिए हथौड़े का इस्तेमाल करता था. शंकरिया का नाम कनपटीमार इसलिए पड़ा क्योंकि वह अपने शिकार के कान के पास हथौड़े से हमला करता था. 70 के दशक में राजस्थान में ऐसी कई लाशें मिली थीं, जिनके कान के पास हमला कर उन्हें मौत के घाट उतारा गया था.

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सुष्मित सिन्हा एबीपी न्यूज़ के बिज़नेस डेस्क पर बतौर सीनियर सब एडिटर काम करते हैं. दुनिया भर की आर्थिक हलचल पर नजर रखते हैं. शेयर बाजार के उतार-चढ़ाव के बीच तेजी से बदलते आंकड़ों की बारिकियों को आसान भाषा में डिकोड करने में दिलचस्पी रखते हैं. डिजिटल मीडिया में 5 साल से ज्यादा का अनुभव है. यहां से पहले इंडिया टीवी, टीवी9 भारतवर्ष और टाइम्स नाउ नवभारत में अपनी सेवाएं दे चुके हैं.
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