पीएम आवास योजना से मनरेगा तक, मोदी सरकार में कितनी योजनाओं और कानूनों के बदल चुके नाम?
मोदी सरकार में तमाम योजनाओं, मंत्रालयों और कानून का नाम बदला जा चुका है. आइए जानें की इस राज में आखिर कितने नाम बदले जा चुके हैं और अब उनको कैसे जाना जाता है.

सरकारी योजनाएं चलती रहती हैं, लेकिन उनके नाम बदलते रहते हैं. कभी बोर्ड बदल जाता है, कभी फाइल के कवर पर नई पहचान चिपक जाती है. मोदी सरकार के दौर में यह सिलसिला और तेज हुआ है. पीएम आवास योजना से लेकर मनरेगा और IPC तक, नामों में हुए बदलाव सिर्फ औपचारिक नहीं माने जा रहे. सवाल यह है कि क्या ये बदलाव नीति की दिशा बताते हैं या सत्ता की सोच का आईना हैं? इसी पड़ताल पर आधारित है यह रिपोर्ट.
नाम बदलने की राजनीति और उसका संदेश
मोदी सरकार के नेतृत्व में केंद्र सरकार ने कानूनों, योजनाओं और मंत्रालयों के नाम बदलने की जिस रफ्तार को पकड़ा है, वह अब एक स्पष्ट पैटर्न बन चुका है. हाल ही में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम का नाम बदलकर विकसित भारत-रोजगार और आजीविका मिशन कर दिया गया. सरकार इसे नए भारत की जरूरतों के अनुरूप कदम बता रही है, जबकि विपक्ष इसे रीब्रांडिंग की राजनीति कह रहा है, लेकिन सच यह है कि नाम बदलने के पीछे एक वैचारिक सोच साफ झलकती है.
अंग्रेजी से हिंदी की ओर झुकाव
इन बदलावों में सबसे प्रमुख बात यह है कि नाम अधिकतर हिंदी या संस्कृतनिष्ठ हिंदी में रखे जा रहे हैं. सरकार बार-बार कह चुकी है कि वह औपनिवेशिक विरासत से बाहर निकलना चाहती है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई मंचों से मैकाले की शिक्षा व्यवस्था और अंग्रेजी मानसिकता पर सवाल उठा चुके हैं. इसी सोच के तहत कानूनों और योजनाओं की पहचान भारतीय भाषा और संदर्भों से जोड़ने की कोशिश की जा रही है.
योजनाएं वही, पहचान नई
ग्रामीण इलाकों में घर देने वाली इंदिरा आवास योजना को 2016 में प्रधानमंत्री आवास योजना ग्रामीण बना दिया गया. मकसद नहीं बदला, लेकिन नाम से राजनीतिक हस्ताक्षर जुड़ गया. इसी तरह शहरी विकास के लिए जवाहरलाल नेहरू राष्ट्रीय शहरी नवीकरण मिशन की जगह अमृत योजना लाई गई. बिजली पहुंचाने वाली राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना को दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना में समाहित किया गया. इन बदलावों में विकास की निरंतरता बनी रही, लेकिन नामों से पुरानी सरकारों की छाप हटती गई.
मंत्रालयों की नई पहचान
सिर्फ योजनाएं ही नहीं, मंत्रालयों की पहचान भी बदली गई. मानव संसाधन विकास मंत्रालय फिर से शिक्षा मंत्रालय बना. जहाजरानी मंत्रालय को बंदरगाह, जहाजरानी और जलमार्ग मंत्रालय कहा जाने लगा. सरकार का तर्क है कि इससे मंत्रालयों का काम और दायरा साफ होता है. आलोचकों का कहना है कि यह प्रतीकात्मक राजनीति का हिस्सा है.
कानूनों में भी दिखा बदलाव
सबसे बड़ा बदलाव आपराधिक कानूनों में देखने को मिला. IPC, CrPC और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम लागू किए गए. गृह मंत्री अमित शाह ने इसे उपनिवेशवाद से मुक्ति का कदम बताया. सरकार का दावा है कि ये कानून भारतीय समाज और आज की जरूरतों के अनुरूप हैं.
नए बिल, नए नाम
महिला आरक्षण कानून को नारी शक्ति वंदन अधिनियम नाम दिया गया. उच्च शिक्षा से जुड़े नए कानून और परमाणु ऊर्जा सुधारों के बिल भी आकर्षक हिंदी नामों के साथ पेश किए गए. इन नामों में ‘विकसित भारत’ और ‘नारी शक्ति’ जैसे शब्द सरकार के राजनीतिक नैरेटिव को मजबूत करते हैं.
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Source: IOCL
























