Pakistan Civilian Attack: क्या पाकिस्तान की तरह अपने ही नागरिकों पर हमला कर सकती है इंडियन आर्मी? ऐसे में क्या हो सकती है कार्रवाई
Pakistan Civilian Attack: पाकिस्तान ने खैबर पख्तूनख्वा में अपने ही लोगों पर बमबारी कर दी है. आइए जानते हैं भारत में यदि आर्मी अपने लोगों पर हमला कर दे तो क्या होगा.

Pakistan Civilian Attack: पाकिस्तान पर हमेशा से ही अपने ही लोगों के खिलाफ सेना के खराब व्यवहार की आलोचना होती रही है. हाल ही में पाकिस्तानी वायु सेना ने खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में आम नागरिकों पर भारी बमबारी कर दी है. इस हवाई हमले में 30 लोग मारे गए, जिनमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल हैं. इस घटना के बाद एक चिंताजनक लेकिन जरूरी सवाल खड़ा होता है कि अगर भारतीय सेना भी इस तरह अपने नागरिकों पर हमला कर दे तो उसके बाद क्या होगा. आइए जानते हैं.
संविधान का उल्लंघन
भारतीय संविधान देश का सबसे बड़ा कानून है. संविधान के मुताबिक हर नागरिक को मौलिक अधिकार मिलता है. नागरिकों के खिलाफ कोई भी सैन्य कार्रवाई संवैधानिक व्यवस्था के खिलाफ युद्ध के बराबर ही मानी जाएगी. यह कदम लोकतंत्र को कमजोर करेगा और इसे असंवैधानिक घोषित किया जा सकता है.
सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट का हस्तक्षेप
इस तरह के मामले में सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट नागरिकों के अधिकार की रक्षा करने के लिए तुरंत हस्तक्षेप कर सकते हैं. अदालत द्वारा जांच के आदेश दिए जा सकते हैं और संबंधित अधिकारियों को निलंबित भी किया जा सकता है. इसी के साथ सरकार को भी जवाब देही के लिए तलब किया जा सकता है. अवैध सैन्य कार्रवाई के खिलाफ न्यायिक निगरानी एक सुरक्षा रेखा के रूप में काम करेगी.
अंतरराष्ट्रीय दबाव
अगर भारत में ऐसा होता है तो संयुक्त राष्ट्रीय और मानव अधिकार संगठन जैसे वैश्विक संगठन बीच में हस्तक्षेप करेंगे. इसी के साथ भारत को ट्रैवल बैन, राजनयिक अलगाव और बाकी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है.
सैन्य कानून और कोर्ट मार्शल
सेना अधिनियम के अंतर्गत नागरिकों पर जानबूझकर हमला करना एक दंडनीय अपराध है. ऐसे मामले में कोर्ट आफ इंक्वारी बिठाई जाएगी और दोषी कर्मियों को जेल भी हो सकती है या उन्हें बर्खास्त भी किया जा सकता है.
नागरिक अदालत में मुकदमा
सेवा अधिनियम की धारा 125 के तहत मामलों को नागरिक आपराधिक अदालत में भी भेजा जा सकता है. यदि मिलिट्री जस्टिस सिस्टम फेल हो जाता है तो सुप्रीम कोर्ट के मामले को संभाल सकता है और सिविलियन ट्रायल का आदेश दे सकता है. यानी कि इससे यह पक्का होता है कि दोषी लोगों को मिलिट्री कानून के तहत बचाया ना जा सके.
मानवाधिकार आयोग की भूमिका
नेशनल ह्यूमन राइट्स कमिशन सीधे सेवा की जांच नहीं कर सकता लेकिन सरकार से रिपोर्ट मांगी जा सकती है. इन रिपोर्ट के आधार पर नेशनल ह्यूमन राइट्स कमिशन सख्त कार्रवाई की सिफारिश कर सकता है. दरअसल ह्यूमन राइट्स प्रोटक्शन एक्ट 1993 के तहत सिविलियन अधिकारों की रक्षा की जाती है. इसका उद्देश्य सत्ता के दुरुपयोग पर रोक लगाना है.
इसी के साथ आपको बता दें कि भारतीय सेना बहुत ज्यादा अनुशासित है और कड़े नियमों से बंधी हुई भी है. भारत का हर जवान अपने देश और देश के नागरिकों के प्रति अपनी जिम्मेदारी को अच्छे से समझता है. भारतीय सेना का मुख्य कर्तव्य देश के नागरिकों की रक्षा करना है और साथ ही कानून का पालन करवाना है. इसी वजह से इस तरह की घटना की संभावना काफी ज्यादा कम है. इससे साफ जाहिर होता है कि किसी भी कीमत पर भारतीय सेना इस तरह का कदम नहीं उठा सकती.
यह भी पढ़ें: दुनिया के किस देश के पास हैं सबसे ज्यादा ड्रोन, किस नंबर पर आता है अपना भारत?
टॉप हेडलाइंस
Source: IOCL






















