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पद्म पुरस्कार विजेता भूल से भी ना करें ये गलती, वरना छिन सकता है पुरस्कार

Padma Awards: जिनको पद्म पुरस्कार या भारत रत्न दिया जाता है. उन्हें इस बारे में जानकारी दी जाती है कि अपने नाम के पहले या नाम के बाद में पुरस्कार का नाम लगाना नहीं चाहिए. अगर ऐसा किया तो फिर

भारत में इन दिनों एक खबर सुर्खियों में चल रही है. जिसमें ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने वाले पहलवान बजरंग पूनिया भारत सरकार द्वारा दिया गया अपना पद्मश्री पुरस्कार लौटने की बात कह रहे हैं. बजरंग पूनिया ने सोशल मीडिया प्लेटफाॅर्म 'एक्स' पर अपना बयान जारी करते हुए कहा,'मैं अपना पद्मश्री सम्मान प्रधानमंत्री को वापस लौट रहा हूं. कहने के लिए बस मेरा यह पत्र है. यही मेरा बयान है.'

भारत में चौथा सबसे बड़ा नागरिक सम्मान होता है पद्मश्री. जो किसी भी क्षेत्र में विशिष्ट कार्य करने वाले व्यक्ति या समूहों को दिया जाता है. बजरंग पूनिया को साल 2019 में पहलवानी के क्षेत्र में शानदार प्रदर्शन करने के लिए पद्मश्री पुरस्कार दिया गया था. हम आपको बताने जा रहे हैं पद्म पुरस्कारों और भारत सरकार के सबसे बड़े नागरिक सम्मान भारत रत्न से जुड़ी एक बेहद महत्वपूर्ण खबर जो शायद अब तक आपको ना पता हो. 

शाॅ ऑफ करेंगे तो मुश्किल होगी

भारत में चार नागरिक सम्मान होते हैं. सबसे बड़ा नागरिक सम्मान भारत रत्न होता है. जो किसी भी क्षेत्र में उच्चतम स्तर का प्रदर्शन करने वाले व्यक्तियों को समूह को दिया जाता है. इसके बाद पद्म विभूषण आता है, इसके बाद पद्मभूषण और फिर अंत में पद्मश्री. किसी के भी लिए इन पुरस्कारों में से कोई भी पुरस्कार मिलना बेहद बड़ी बात होती है. लेकिन अक्सर देखा गया है अगर किसी को इन पुरस्कारों में से कोई पुरस्कार मिलता है. उसके बाद हर जगह वो अपने नाम के साथ इसका उपयोग करते है. तो जब वह कहीं जाता है ऐसे में उसके नाम के आगे उसके पुरस्कार का नाम जोड़ दिया जाता है.

उदाहरण के तौर पर पूर्व दिग्गज क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर. अक्सर देखा गया है कि सचिन तेंदुलकर कहीं जाते हैं. किसी समारोह में या किसी कॉन्क्लेव में तो उन्हें संबोधित करते हुए सचिन तेंदुलकर नहीं बल्कि भारत रत्न श्री सचिन तेंदुलकर कहा जाता है. जो कि इन पुरस्कारों के नियम से गलत है. जिन-जिन को पद्म पुरस्कार या भारत रत्न दिया जाता है. उन्हें इस बारे में जानकारी दी जाती है. लेकिन बावजूद इसके कुछ लोग अपने नाम से पहले यह नाम के बाद में पुरस्कार का नाम लगाना बेहद फख्र की बात समझते हैं. अगर ऐसा है तो फिर वह लोग सावधान हो जाएं क्योंकि ऐसा करने पर आपसे पुरस्कार वापस लिया जा सकता है. 

सम्मान और उपाधि में होता हैं फर्क

यह सुनने के बाद आम आदमी या फिर इन पुरस्कारों के विजेताओं के मन में सवाल जरूर उत्पन्न होगा. कि यह तो उन्हें सरकार द्वारा उपाधि दी गई है. उनके सम्मान में यह पुरस्कार उन्हें दिया गया है. तो ऐसे में क्यों ना वह उसे पुरस्कार का नाम अपने नाम के आगे पीछे लगाएं. तो बता दें कि यह सिर्फ सम्मान है जो सरकार देती है. सम्मान में उपाधि में फर्क होता है. उदाहरण के तौर पर समझे तो किसी व्यक्ति ने अगर पीएचडी की है तो वह अपने नाम के आगे डॉक्टर लगा सकता है. लिख सकता है दूसरे भी उसे डॉक्टर कहकर संबोधित कर सकते हैं. क्योंकि उसने यह उपाधि अर्जित की है. उसे या किसी ने इनाम में यह सम्मान में नहीं थी.

उसी प्रकार भारतीय सेना में अधिकारियों की रैंक होती है. उनके नाम के पहले हमेशा उनकी रैंक को संबोधित किया जाता है जैसे कर्नल गौतम राजऋषि. अक्सर देखा गया है सेना के अधिकारी जब कहीं कोई लेख लिखते हैं या किसी समारोह में उन्हें बुलाया जाता है. तो उनके नाम के आगे उनकी रैंक लगाई जाती है. क्योंकि उन्होंने यह अर्जित की होती है. यह सम्मान उन्होंने हासिल किया होता है. सरकार द्वारा उन्हें यह दिया नहीं गया होता. 

क्या कहते हैं नियम

पद्म पुरस्कारों और भारत रत्न पुरस्कार का नाम के आगे और पीछे इस्तेमाल करने के बारे में इसके नियमों को जानें तो उनमें स्पष्ट तौर पर इनका इस्तेमाल न करने की हिदायत दी गई है. 10 मई 2016 को प्रश्न संख्या 2536 का उत्तर देते हुए गृह मंत्रालय में राज्य मंत्री किरण रिजिजू ने कहा था,'भारत के माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने 15 दिसंबर 1995 के अपने फैसले में अन्य बातों के साथ-साथ यह निर्देश दिया कि भारत रत्न पद्म विभूषण पद्म भूषण और पद्मश्री जैसे राष्ट्रीय पुरस्कारों का उपसर्ग या प्रत्यय के रूप में उपयोग नहीं किया जाना चाहिए. यदि ऐसा होता है तो नियमों के तहत पुरस्कार प्राप्त करने वाले व्यक्ति से पुरस्कार जब्त कर लेना चाहिए.'

इसीलिए राष्ट्रपति द्वारा जब इस पुरस्कार को दिया जाता है. तो हर पुरस्कार विजेता को सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बारे में बताया जाता है और साथ ही उन्हें सलाह दी जाती है कि वह अपने नाम के आगे या पीछे पुरस्कार का नाम ना लगाएं. साल 2019 में यह मामला संसद में फिर उठाया गया था. तब लोकसभा के एक सदस्य के लिखित प्रश्न का जवाब देते हुए तत्कालीन गृह राज्य मंत्री हंसराज गंगाराम अहीर ने 12 फरवरी 2019 को सदन के सामने इस बात को कहा था कि ,'भारत रत्न पद्म विभूषण पद्म भूषण और पद्मश्री जैसे राष्ट्रीय पुरस्कार संविधान के अनुच्छेद 18(1) के अर्थ के अंतर्गत उपाधियों के अंतर्गत नहीं आते और इस प्रकार इन्हें प्राप्त करने वाले व्यक्ति नाम के साथ उपसर्ग या प्रत्यय के रूप में किसी भी तरह से उपयोग नहीं कर सकते.'

 संविधान की धारा 18(1)

संविधान की धारा 18(1) के तहत कोई भी सैन्य उपाधि या एकेडमिक उपाधि सरकार द्वारा प्रदान नहीं की जा सकती. इसके साथ ही इस धारा के तहत भारतीय नागरिक विदेश से भी किसी उपाधि को हासिल नहीं कर सकते. यह अनुच्छेद पद्म पुरस्कारों और सैन्य रैंक और अकादमिक उपाधि के बीच में अंतर करता है. पद्म पुरस्कार सरकार द्वारा दिए जाने वाले साधारण सम्मान है तो वहीं बाकी उपाधियां है. सम्मान के साथ नाम के पहले या बाद में सम्मान हीं लगाया जा सकता. जबकि उपाधियां लगाई जा सकती हैं.

आसान शब्दों में कहें तो सरकार उपाधियां प्रदान नहीं कर सकती. यह सिर्फ पुरस्कार और सम्मान ही दे सकती है. भारत में उपाधियां को बेहद पहले ही खत्म कर दिया गया था. अगर फिर भी कोई इन नियमों को ना माने और इनका उल्लंघन करें तो ऐसे में राष्ट्रपति दिए गए किसी भी पुरस्कार को रद्द कर सकते हैं और पुरस्कार विजेता को फिर यह पुरस्कार सरेंडर करना पड़ सकता है. 

यह भी पढ़ें: कश्मीर में होते हैं सर्दियों के तीन मौसम... क्या है इसके पीछे की कहानी?

About the author नीलेश ओझा

नीलेश ओझा पिछले पांच साल से डिजिटल पत्रकारिता में सक्रिय हैं. उनकी लेखन शैली में तथ्यों की सटीकता और इंसानी नजरिए की गहराई दोनों साथ-साथ चलती हैं.पत्रकारिता उनके लिए महज़ खबरें इकट्ठा करने या तेजी से लिखने का काम नहीं है. वह मानते हैं कि हर स्टोरी के पीछे एक सोच होनी चाहिए.  

कुछ ऐसा जो पाठक को सिर्फ जानकारी न दे बल्कि सोचने के लिए भी मजबूर करे. यही वजह है कि उनकी स्टोरीज़ में भाषा साफ़ होती है.लिखने-पढ़ने का शौक बचपन से रहा है. स्कूल की नोटबुक से शुरू हुआ यह सफर धीरे-धीरे पेशेवर लेखन और पत्रकारिता तक पहुंचा. आज भी उनके लिए लेखन सिर्फ पेशा नहीं है यह खुद को समझने और दुनिया से संवाद करने का ज़रिया है.

पत्रकारिता के अलावा वह साहित्य और समकालीन शायरी से भी गहराई से जुड़े हुए हैं. कभी भीड़ में तो कभी अकेले में ख्यालों को शायरी की शक्ल देते रहते हैं. उनका मानना है कि पत्रकारिता का काम सिर्फ घटनाएं गिनाना नहीं है. बल्कि पाठक को उस तस्वीर के उन हिस्सों तक ले जाना है. जो अक्सर नजरों से छूट जाते हैं.

उन्होंने स्पोर्ट्सविकी, क्रिकेट एडिक्टर, इनशॉर्ट्स और जी हिंदुस्तान जैसे प्रमुख प्लेटफॉर्म्स के साथ काम किया है.

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