मुहर्रम को क्यों कहा जाता है गम का महीना! ज्यादातर मुस्लिम नहीं करते शुभ काम
Muharram 2025: देश भर में आज मुहर्रम मनाया जा रहा है, वहीं कुछ जगहों पर कल भी मनाया जाएगा. ऐसे में चलिए आपको बताते हैं कि आखिर मुहर्रम पर गम क्यों मनाते हैं और क्यों कोई शुभ काम नहीं होता है.

इस्लामिक नव वर्ष की शुरुआत हो चुकी है. इस कैलेंडर के हिसाब से यह इस्लाम का पहला महीना होता है. इसको इस्लाम को पवित्र चार महीनों में से एक माना जाता है. इस महीनें में मुस्लिम धर्म को लोग गम मनाते हैं और किसी भी तरह से शुभ कार्य जैसे कि शादी आदि का आयोजन नहीं होता है. इस महीने में सिर्फ और सिर्फ मातम मनाया जाता है. अशुरा मोहर्रम के महीने का खास दिन होता है, ये 10वें दिन मनाया जाता है. आज (रविवार) अशुरा है. इस दिन मुस्लिम लोग पैगंबर मोहम्मद को नाती इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हैं, जो कि 680 ई. में कर्बला की जंग में अपने परिवार के साथ शहीद हुए थे. चलिए जानें कि इसे गम का महीना क्यों कहते हैं.
मुहर्रम क्या है
इस्लाम में मुहर्रम का शाब्दिक अर्थ होता है मनाही. कुरान और हदीस के अनुसार मुहर्रम के महीने में लड़ाई-झगड़ा करना मना है. इस माह में कई ऐसी बड़ी घटनाएं हुई हैं, लेकिन उनमें सबसे बड़ी और दुखद घटना थी पैगंबर मुहम्मद साहब के नाती हजरत इमाम हुसैन इब्न अली और उनके परिवार की कर्बला के मैदान में शहादत. वो मुहर्रम का 10वां ही दिन था जब इमाम हुसैन ने इस्लाम की रक्षा के लिए अपने परिवार को कुर्बान कर दिया था. इसीलिए इस दिन पैगंबर हजरत इमाम हुसैन की शहादत को याद किया जाता है.
क्यों मनाते हैं गम
कहा जाता है कि इमाम हुसैन ने 61 हिजरी यानि करीब 1400 साल पहले बता दिया था कि इंसानियत और हक की राह पर चलने वाला इंसान कभी भी जालिम के आगे अपना सर नहीं झुका सकता है, चाह उसकी जान क्यों न चली जाए. इमाम हुसैन ने इंसानियत को जिंदा रखा था, इस वजह से आज से 1400 साल के बाद भी लोग उनको याद करते हैं और 10वें दिन मोहर्रम पर उनकी याद में गम मनाया जाता है. हर साल करोड़ों लोग इमाम हुसैन की कब्र पर जाते हैं और जो लोग वहां तक नहीं पहुंच पाते हैं, वो लोग अपने क्षेत्र, गांव और शहर से ही मजलिस मातम, शरबत और पानी बांटते हैं. इसीलिए मोहर्रम में गम मनाया जाता है और कोई शुभ कार्य नहीं करते हैं.
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