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वाटरमेलन कैसे बन गया फिलिस्तीन में विरोध का प्रतीक? बेहद दिलचस्प है कहानी

फिलिस्तीन की जमीन पर जारी इजरायल हमले के बीच वहां विरोध काफी विरोध देखा जा रहा है. विरोध की सबसे खास बात यह है कि लोग वाटरलमेलन के जरिए अपना प्रतिरोध दर्ज करा रहे हैं. आइए इसके बारे में जानते हैं.

Watermelon Palestine: दुनिया के हर देश में विरोध करने के अलग-अलग तरीके हैं. कहीं लोग हिंसा को अपना रास्ता बनाते हैं तो कुछ जगह अहिंसा के दम पर विरोध दर्ज किया जाता है, लेकिन फिलिस्तीन में वाटरमेलन यानी तरबूज के जरिए विरोध दर्ज कराया जा रहा है. दुनिया में 100 से अधिक देश हैं और हजारों से अधिक विरोध करने के तरीके, लेकिन फिलिस्तीन वाला सोशल मीडिया से लेकर आम लोगों में चर्चा का विषय बना हुआ है. आज की स्टोरी में हम इसी विषय पर बात करने वाले हैं.  

तरबूज ही क्यों?

फ़िलिस्तीन में प्रतीक के रूप में तरबूज़ का उपयोग कोई नई घटना नहीं है. यह पहली बार 1967 में सामने आया जब इज़राइल ने वेस्ट बैंक, गाजा और पूर्वी येरुशलम के कई क्षेत्रों पर कब्ज़ा कर लिया था. इसके बाद इजरायली सरकार ने गाजा और वेस्ट बैंक में फिलिस्तीनी झंडे के सार्वजनिक प्रदर्शन को अपराध घोषित करने के लिए एक सैन्य आदेश का इस्तेमाल किया. इज़राइल के आदेश के विरोध में फ़िलिस्तीनियों ने तरबूज़ का उपयोग करना शुरू कर दिया क्योंकि काटने पर, फल फ़िलिस्तीनी ध्वज के रंग प्रदर्शित करता था. तरबूज के अंदर लाल होता है, इसके बीज काले हैं, इसका छिलका सफेद है, और बाहरी छिलका हरा है, जो फिलिस्तीनी ध्वज के रंग का प्रतीक है.

दशकों पुरानी है कहानी

1993 में ओस्लो समझौते के हिस्से के रूप में इजराइल द्वारा फिलिस्तीनी झंडे को स्वीकार करना, इजराइल और फिलिस्तीन मुक्ति संगठन के बीच पारस्परिक मान्यता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था. इस ऐतिहासिक समझौते का उद्देश्य इज़राइल-फिलिस्तीन संघर्ष को संबोधित करना था. यह झंडा फिलिस्तीनी प्राधिकरण का प्रतीक है, जो गाजा और वेस्ट बैंक पर शासन करने के लिए जिम्मेदार है. आर्टिस्ट खालिद हुरानी की रचना, "द स्टोरी ऑफ द वॉटरमेलन" में फिलिस्तीन के सब्जेक्टिव एटलस में सामने आई थी. किताब से अलग उनकी कलाकृति, "द कलर्स ऑफ द फिलिस्तीनी फ्लैग" को 2013 में वैश्विक चर्चा मिली थी. 

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