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जिस श्राउड में लपेटा गया था यीशु का शरीर, उसे कहां रखा गया है?

सूली से उतारने के बाद ईसा मसीह के शरीर को लपेटने के लिए जिस कपड़े का इस्तेमाल हुआ वह करीब 14 फीट लंबा और साढ़े तीन फीट चौड़ा है. इस कफन पर एक आदमी की धुंधली सी छवि भी बनी हुई है.

Shroud of Turin: ईसाई धर्म के प्रवर्तक ईसा मसीह की याद में गुड फ्राइडे इस बार 18 अप्रैल को मनाया जाएगा. यह दिन ईसाई धर्म के अनुयायियों के लिए बहुत ही भावनात्मक होता है, जिसमें ईसा मसीह को सूली पर लटकाए जाने की घटना को याद किया जाता है और ईश्वर से प्रार्थना की जाती है. कहा जाता है कि सूली पर लटकाए जाने के बाद ईसा मसीह की मृत्यु शुक्रवार को ही हुई थी, उन्हीं की याद में गुड फ्राइडे मनाया जाता है. 

अब सवाल यह है कि मृत्यु के बाद जब ईसा मसीह को सूली से उतारा गया और उनके शरीर को जिस कपड़े में लपेटा गया, वह श्राउड (कफन) अब कहां है और किस हालत में है? इस कफन को लेकर क्या कहानियां प्रचलित हैं? आइए जानते हैं...

कैसा है कफन?

सूली से उतारने के बाद ईसा मसीह के शरीर को लपेटने के लिए जिस कपड़े का इस्तेमाल हुआ वह करीब 14 फीट लंबा और साढ़े तीन फीट चौड़ा है. इस कफन पर एक आदमी की धुंधली सी छवि भी बनी हुई है, जिसे सदियों से ईसाईयों द्वारा यीशु के दफन कफन के रूप में पूजा जाता रहा है. कहा जाता है कि यीशु के शरीर को लपेटने के लिए लेनिन के कपड़े का इस्तेमाल किया और यह कपड़ा रोम साम्राज्य की यातना के शिकार यीशु के के खून से सना हुआ है. 

कहां रखा हुआ है कफन

जानकारी के मुताबिक, ईसा मसीह की मृत्यु से जुड़ा यह पवित्र श्राउड इटली के ट्यूरिन शहर में रखा हुआ है. इसलिए इसे ट्यूरिन का कफन भी कहते हैं. यह श्राउड पिछली चार शताब्दियों से इटली के ट्यूरिन शहर स्थित सेंट जॉन द बैपटिस्ट कैथेड्रल में रखा हुआ है. यह कफन जब से मिला है तब से ही इसकी प्रमाणिकता को लेकर कई सवाल उठ चुके हैं और इस पर कई वैज्ञानिक शोध भी हो चुके हैं. हालांकि, 20वीं सदी के अंत में वैज्ञानिकों ने इस पवित्र कफन के रेशों पर जो पराग पाया था वह यरूशलेम में पाए जाने वाले पराग से मे खाते थे, यह अब तक का सबसे पुख्ता सबूत है कि यह श्राउड यीशु का ही हो सकता है.  

यह भी पढ़ें: जिस क्रॉस पर यीशु को चढ़ाया गया था सूली, वह अब कहां हैं?

प्रांजुल श्रीवास्तव एबीपी न्यूज में बतौर सीनियर कॉपी एडिटर अपनी सेवाएं दे रहे हैं. फिलहाल फीचर डेस्क पर काम कर रहे प्रांजुल को पत्रकारिता में 9 साल तजुर्बा है. खबरों के साइड एंगल से लेकर पॉलिटिकल खबरें और एक्सप्लेनर पर उनकी पकड़ बेहतरीन है. लखनऊ के बाबा साहब भीम राव आंबेडकर विश्वविद्यालय से पत्रकारिता का 'क, ख, ग़' सीखने के बाद उन्होंने कई शहरों में रहकर रिपोर्टिंग की बारीकियों को समझा और अब मीडिया के डिजिटल प्लेटफॉर्म से जुड़े हुए हैं. प्रांजुल का मानना है कि पाठक को बासी खबरों और बासी न्यूज एंगल से एलर्जी होती है, इसलिए जब तक उसे ताजातरीन खबरें और रोचक एंगल की खुराक न मिले, वह संतुष्ट नहीं होता. इसलिए हर खबर में नवाचार बेहद जरूरी है.

प्रांजुल श्रीवास्तव काम में परफेक्शन पर भरोसा रखते हैं. उनका मानना है कि पत्रकारिता सिर्फ सूचनाओं को पहुंचाने का काम नहीं है, यह भी जरूरी है कि पाठक तक सही और सटीक खबर पहुंचे. इसलिए वह अपने हर टास्क को जिम्मेदारी के साथ शुरू और खत्म करते हैं. 

अलग अलग संस्थानों में काम कर चुके प्रांजुल को खाली समय में किताबें पढ़ने, कविताएं लिखने, घूमने और कुकिंग का भी शौक है. जब वह दफ्तर में नहीं होते तो वह किसी खूबसूरत लोकेशन पर किताबों और चाय के प्याले के साथ आपसे टकरा सकते हैं.

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