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गणेश चतुर्थी 2025: जान‍िए मोदक की शुरुआत की दिलचस्प कहानी और क्यों बना यह गणपति का प्रिय भोग

मोदक गणपति बप्पा का सबसे प्रिय भोग माना जाता है. गणेश चतुर्थी पर बिना मोदक के पूजा अधूरी मानी जाती है. पौराणिक कथा से शुरू हुई 21 मोदक अर्पित करने की परंपरा आज भी जारी है.

गणेश चतुर्थी भगवान गणेश का आशीर्वाद पानी का सबसे बड़ा पर्व होता है. यह त्योहार समृद्धि, बुद्धि और सफलता का प्रतीक माना जाता है. मान्यता है कि बप्पा हर संकट का नाश करते हैं और जीवन में नए अवसरों के द्वार खोलते हैं. यही वजह है कि गणेश चतुर्थी को विघ्नहर्ता गणपति के स्वागत और नई शुरुआत का पर्व कहा जाता है. इस साल गणेश चतुर्थी बुधवार 27 अगस्त को मनाई जाएगी.  

गणपति बप्पा की स्थापना से ही उनके विसर्जन तक पूजा पाठ की जाती है. बप्पा की पूजा में हमेशा उनका प्रिय मोदक अहम होता है. बिना मोदक के गणपति की पूजा अधूरी मानी जाती है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि आखिर गणपति और मोदक का रिश्ता इतना गहरा कैसेबना. चलिए आज हम आपको बताते हैं कि मोदक की शुरुआत कैसे हुई और यह गणपति का सबसे प्रिय भोग किस तरह से बना. 

गणपति और मोदक का पौराणिक संबंध 

हिंदू पुराणों में एक कथा मिलती है कि एक बार ऋषि अत्रि की पत्नी अनुसूया ने भगवान शिव, माता पार्वती और गणेश को भोजन के लिए आमंत्रित किया. जब सब भोजन पर बैठे तो गणेश जी ने इतना खाना खाया कि पूरा भोज लगभग खत्म हो गया. अंत में सिर्फ मोदक ही बचे तो माता अनुसूया ने श्रद्धा से उन्हें 21 मोदक परोसे. इन्हें खाते ही गणेश जी संतुष्ट हो गए. तभी से परंपरा बन गई की गणेश चतुर्थी पर भगवान को 21 माेदक का भोग लगाना जरूरी है. 

कितना पुराना है मोदक का इतिहास 

इतिहासकारों का मानना है कि मोदक कोई आधुनिक मिठाई नहीं बल्कि इसका उल्लेख रामायण, महाभारत और आयुर्वेद जैसे ग्रंथों में भी मिलता है. चरक संहिता में तो इसे औषधिय महत्व के साथ बताया गया है. माना जाता है कि यह मिठाई करीब 200 ईसा पूर्व से बनाई जा रही है. 

महाराष्ट्र में क्यों खास है मोदक 

महाराष्ट्र में मोदक का सबसे लोकप्रिय रूप उकडीचे मोदक है.  इसे चावल के आटे से बनाया जाता है और अंदर नारियल व गुड़ की मीठी स्टफिंग भरी जाती है. इन्‍ही गर्म-गर्म मोदक पर घी डालकर खाने का अलग ही स्वाद आता है. कहा जाता है कि गुड और नारियल का यह मिश्रण न सिर्फ स्वादिष्ट है बल्कि सेहत के लिए भी फायदेमंद होता है. 

बाकी राज्यों में भी अलग-अलग नाम 

भारत के अलग-अलग हिस्सों में मोदक अलग-अलग नाम और रूप में मिलता है. तमिलनाडु में इसे कोझुकट्टई, आंध्रा और तेलंगाना में कुदुम तो कर्नाटक में कडुबु कहा जाता है. हर जगह इसे गणपति उत्सव का हिस्सा माना जाता है. 

समय के साथ बदला रूप 

जहां पहले मोदक सिर्फ स्टीम या फ्राई करके बनाए जाते थे. वहीं आज बाजारों में चॉकलेट मोदक, केसर मोदक, मावा मोदक और यहां तक की आइसक्रीम मोदक तक मिलते हैं. आधुनिक रूप चाहे जैसा भी हो लेकिन परंपरा वही रहती है गणपति बप्पा को भोग लगाना जरूरी होता है.

मोदक का असली अर्थ

मोदक शब्द संस्कृत के मोदा से आया है जिसका अर्थ होता है खुशी यां आनंद. शायद यही कारण है कि इससे बप्पा का प्रिय भोग माना जाता है. जब भक्त श्रद्धा से उन्हें मोदक अर्पित करते हैं तो मान्‍यता है कि भगवान गणेश उनकी मनोकामना पूरी करते हैं.

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