पहले हवा, फिर जमीन पर बनाया गया था यह विशाल शिव मंदिर! औरंगजेब ने की थी इसे ध्वस्त करने की नाकाम कोशिश
भारत में एक बड़ी आबादी हिदू धर्म को मानने वाले लोगों की है, इस लिए आपको देश के हर कोने में कई एतिहासिक मंदिर देखने को मिल जाएंगे. चलिए, ऐसे ही एक ऐतिहासिक मंदिर के बारे में आपको बताते हैं.

भारत को मंदिरों का देश कहा जाता है. अगर आप घूमने निकलते हैं तो आपको हर कुछ किलोमीटर पर छोटे या बड़े मंदिर जरूर देखने को मिलते हैं. जिन लोगों को ईश्वर में विश्वास होता है, वे लोग मन की शांति और ईश्वर के प्रति अपनी सच्ची श्रृद्धा के लिए मंदिर जाते हैं. यही कारण है कि मंदिर भारतीय संस्कृति के गौरव का प्रतीक रहे हैं. देश के अंदर कुछ प्रसिद्ध मंदिरों को समय समय पर तोड़ने की कोशिश की गई. हालांकि, आज भी वे मंदिर उतने ही भव्य और शानदार रूप में खड़े हैं. चलिए, ऐसे ही एक शिव मंदिर के बारे में जानते हैं जिसको पहले हवा में बनवाया गया था, बाद में इस मंदिर को जमीन पर बनवाया गया.
कौन सा है यह शिवमंदिर?
महाराष्ट्र में कई ऐतिहासिक और भव्य मंदिर मौजूद हैं. इन्हीं मंदिरों में से एक है औरंगाबाद का कैलाश मंदिर. इस मंदिर को सिर्फ एक चट्टान काटकर और तराशकर बनाया गया. इसको बनाने में 18 साल का समय लगा था. साक्ष्यों के अनुसार कहा जाता है कि इस मंदिर का निर्माण राष्ट्रकूट वंश के राजा कृष्ण प्रथम ने सन 756 से सन 773 के दौरान करवाया था. बताया जाता है कि राजा काफी बीमार थे, तब रानी ने उनकी सेहत के लिए भगवान शिव से प्रार्थना की अगर राजा ठीक होते हैं तो एक भव्य शिव मंदिर का निर्माण करवाया जाएगा. राजा के स्वस्थ होने के बाद इस मंदिर का निर्माण कराया गया. जिस चट्टान पर इस मंदिर का निर्माण हुआ, पहले उसको U आकार में काटा गया था. उस दौरान चट्टान से निकलने वाले 2,00,000 टन पत्थर हटाए गए थे. यह विश्व की सबसे बड़ी शिल्प निर्मित संरचना है, जो एक ही पत्थर से बनाई गई.
औरंगजेब ने भी की थी तुड़वाने की कोशिश
मुगलों के सबसे क्रूर शासक औरंगजेब ने इस मंदिर को कई बार तुड़वाने की कोशिश की, लेकिन वह कभी सफल नहीं हो पाया. हालांकि, मंदिर को ध्वस्त करने के प्रयासों के चलते इस मंदिर को छोटे स्तर पर नुकसान हुए. बताया जाता है कि उसके भेजे 1000 मजदूरों ने इस मंदिर को तीन साल तक तोड़ने का प्रयास किया, लेकिन सिर्फ पांच प्रतिशत हिस्सा ही नष्ट कर पाए. इस तरह 2000 साल पहले बना भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर आज भी अपनी भव्यता के लिए जाना जाता है. हर साल यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु आते हैं.
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