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परमाणु बम से हमला हो जाए और तबाह हो जाए पूरी दुनिया, फिर भी जिंदा रहेगा ये एकमात्र जीव

Nuclear Attack Cockroaches: अगर दुनिया पर परमाणु हमला हो जाए, तब भी एक जीव ऐसा है, जिसकी जिंदगी रुकने वाली नहीं है. इंसानों से ताकतवर ये छोटा जीव रेडिएशन को मात देकर दुनिया के अंत में भी सांस लेता रहेगा.

कल्पना कीजिए… दुनिया पर परमाणु बम गिर चुका है. शहर राख हो चुके हैं, हवा जहर बन चुकी है, जमीन जल चुकी है और इंसानों सहित ज्यादातर जीव मिट चुके हैं, लेकिन इस तबाही के बीच एक ऐसा छोटा-सा जीव है, जो न गर्मी से जला, न रेडिएशन से मरा और न ही पूरी दुनिया के अंत से हिला. आखिर इस जीव में ऐसा क्या है जो कयामत जैसे धमाके में भी सांस लेता रह जाता है? यही राज वैज्ञानिकों को भी हैरान कर देता है. आइए जानें.

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जिंदा थे कॉकरोच

द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हिरोशिमा और नागासाकी पर हुए परमाणु बम हमलों ने दुनिया को यह सोचने पर मजबूर कर दिया था कि इंसानी सभ्यता कितनी नाजुक है. हवा में फैलते रेडिएशन ने जहां इंसानों से लेकर जानवरों तक हर चीज को मिट्टी में मिला दिया, वहीं इस तबाही के बाद जब वैज्ञानिकों ने क्षेत्र का सर्वे किया, तो एक चौंकाने वाला खुलासा सामने आया कि कॉकरोच बड़ी संख्या में जिंदा पाए गए थे. यह बात दुनिया के लिए किसी सदमे से कम नहीं थी.

कैसे जिंदा रह गए कॉकरोच?

वैज्ञानिकों ने यह समझने के लिए गहरी रिसर्च शुरू की कि जब उच्च स्तर का रेडिएशन इंसानों का तुरंत अंत कर सकता है, तो कॉकरोच कैसे जीवित रह गए? रिसर्च में जो बातें सामने आईं, उन्होंने कॉकरोच की काबिलियत को एक नए स्तर पर खड़ा कर दिया. सबसे पहले तो यह पाया गया कि इंसानों की तुलना में कॉकरोच का शरीर रेडिएशन को काफी हद तक सहन कर सकता है. जहां इंसान 800 रैड तक की रेडिएशन मात्रा में ही मर सकते हैं, वहीं कॉकरोच 10,000 रैड तक झेलने की क्षमता रखते हैं. यह अंतर इतना बड़ा है कि इसे समझना ही अपने आप में हैरान करने वाला है. 

वैज्ञानिकों के अनुसार, परमाणु बम का मुख्य नुकसान रेडिएशन नहीं, बल्कि विस्फोट के ठीक बाद फैलने वाली तीव्र गर्मी और ऊर्जा से होता है. इसी वजह से वे कॉकरोच जो विस्फोट के बिलकुल पास थे, वे भी तुरंत मारे गए. लेकिन जो थोड़ी दूरी पर थे, उन्होंने रेडिएशन को मात दे दी और जीवित रह गए.

आखिर क्यों कॉकरोच पर नहीं होता रेडिएशन का असर

कॉकरोच रेडिएशन में क्यों नहीं मरते, इसका जवाब उनके शरीर की कोशिकाओं की खासियत में छिपा है. इंसानों में कोशिकाएं बहुत जल्दी-जल्दी विभाजित होती हैं, और जितनी तेजी से कोशिकाएं विभाजित होंगी, उतना ही रेडिएशन का असर घातक होगा. वहीं कॉकरोच के शरीर में यह प्रक्रिया काफी धीमी होती है, हफ्ते में केवल एक बार. इसी वजह से रेडिएशन उनकी कोशिकाओं को तुरंत नुकसान नहीं पहुंचा पाता है

जापान में हुए धमाकों को भी सहन कर गए कॉकरोच

जापान में हुए धमाकों के दौरान गामा रेज का स्तर लगभग 10,300 रैड दर्ज किया गया था. यह इंसानों के लिए सीधे मौत का पैगाम था, लेकिन कॉकरोच ने इसे भी सहन कर लिया. इसलिए वैज्ञानिकों का मानना है कि अगर पृथ्वी पर कभी ऐसी कयामती तबाही हुई जिसमें इंसान और बड़े जीव समाप्त हो जाएं, तो कॉकरोच जैसे जीव सबसे लंबे समय तक जीवित रहेंगे.

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About the author निधि पाल

निधि पाल को पत्रकारिता में छह साल का तजुर्बा है. लखनऊ से जर्नलिज्म की पढ़ाई पूरी करने के बाद इन्होंने पत्रकारिता की शुरुआत भी नवाबों के शहर से की थी. लखनऊ में करीब एक साल तक लिखने की कला सीखने के बाद ये हैदराबाद के ईटीवी भारत संस्थान में पहुंचीं, जहां पर दो साल से ज्यादा वक्त तक काम करने के बाद नोएडा के अमर उजाला संस्थान में आ गईं. यहां पर मनोरंजन बीट पर खबरों की खिलाड़ी बनीं. खुद भी फिल्मों की शौकीन होने की वजह से ये अपने पाठकों को नई कहानियों से रूबरू कराती थीं.

अमर उजाला के साथ जुड़े होने के दौरान इनको एक्सचेंज फॉर मीडिया द्वारा 40 अंडर 40 अवॉर्ड भी मिल चुका है. अमर उजाला के बाद इन्होंने ज्वाइन किया न्यूज 24. न्यूज 24 में अपना दमखम दिखाने के बाद अब ये एबीपी न्यूज से जुड़ी हुई हैं. यहां पर वे जीके के सेक्शन में नित नई और हैरान करने वाली जानकारी देते हुए खबरें लिखती हैं. इनको न्यूज, मनोरंजन और जीके की खबरें लिखने का अनुभव है. न्यूज में डेली अपडेट रहने की वजह से ये जीके के लिए अगल एंगल्स की खोज करती हैं और अपने पाठकों को उससे रूबरू कराती हैं.

खबरों में रंग भरने के साथ-साथ निधि को किताबें पढ़ना, घूमना, पेंटिंग और अलग-अलग तरह का खाना बनाना बहुत पसंद है. जब ये कीबोर्ड पर उंगलियां नहीं चला रही होती हैं, तब ज्यादातर समय अपने शौक पूरे करने में ही बिताती हैं. निधि सोशल मीडिया पर भी अपडेट रहती हैं और हर दिन कुछ नया सीखने, जानने की कोशिश में लगी रहती हैं.

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