हिंदू दिवाली तो उस दिन क्या मनाते हैं सिख? इस मुगल बादशाह से है कनेक्शन
दिवाली सिर्फ हिंदुओं के लिए ही नहीं, बल्कि सिखों के लिए भी एक बेहद खास दिन है. साथ ही, इस दिन का इतिहास एक मुगल बादशाह से जुड़ा हुआ है. हिंदू दिवाली को भगवान राम की अयोध्या वापसी से जोड़ते हैं.

दिवाली पूरे देश में बड़े हर्षोल्लास से मनाई जाती है. रोशनी का यह पर्व हिंदू धर्म के अनुसार भगवान राम के 14 साल का वनवास पूरा करके अयोध्या लौटने की खुशी में मनाया जाता है. क्या आप जानते हैं कि इसी दिन को सिख समुदाय भी बहुत धूमधाम से मनाता है. दिवाली सिर्फ हिंदुओं के लिए ही नहीं, बल्कि सिखों के लिए भी बेहद खास दिन है. साथ ही, इस दिन का इतिहास एक मुगल बादशाह से भी जुड़ा हुआ है. हिंदू दिवाली पर भगवान राम की अयोध्या वापसी की वजह से अपने घरों को दीपों से सजाते हैं तो सिख दिवाली पर गुरु हरगोबिंद साहिब जी की वीरता याद करते हैं. चलिए जानते हैं कि हिंदू दिवाली तो सिख उस दिन क्या मनाते हैं और इस दिन का किस मुगल बादशाह से कनेक्शन है?
हिंदू दिवाली तो सिख उस दिन क्या मनाते हैं?
हिंदू दिवाली को भगवान राम, सीता और लक्ष्मण की अयोध्या वापसी की खुशी में मनाते हैं. वहीं, सिख धर्म के लोग उसी दिन बंदी छोड़ दिवस मनाते हैं. यह दिन सिखों के छठे गुरु, गुरु हरगोबिंद साहिब जी की रिहाई की याद में मनाया जाता है. उन्होंने सिर्फ खुद को ही नहीं, बल्कि 52 हिंदू राजाओं को भी मुगलों की जेल से आजाद कराया था. सिखों के लिए यह दिन आजादी, न्याय और इंसानियत की जीत का प्रतीक है.
इस दिन का किस मुगल बादशाह से कनेक्शन?
बंदी छोड़ दिवस का इतिहास मुगल बादशाह जहांगीर से जुड़ा है. जब गुरु हरगोबिंद साहिब जी ने अमृतसर में अकाल तख्त की स्थापना की और अपनी एक छोटी सेना बनाई तो उस समय के लाहौर के नवाब मुर्तजा खान ने बादशाह जहांगीर को शिकायत की कि गुरु जी बदला लेने की तैयारी कर रहे हैं, क्योंकि उनके पिता गुरु अर्जन देव जी की मुगलों ने हत्या कर दी थी. जहांगीर ने तुरंत गुरु जी को दिल्ली बुलाया, लेकिन जब वह गुरु जी से मिले तो उनका व्यक्तित्व और ज्ञान देखकर बहुत प्रभावित हुआ. गुरु जी ने कबीर के दोहे सुना कर उन्हें धर्म की गहराई समझाई. यही नहीं, एक बार शिकार के दौरान जब एक शेर ने जहांगीर पर हमला किया, तब गुरु हरगोबिंद जी ने शेर को एक वार में मार गिराया. इससे उनकी बहादुरी से जहांगीर और भी प्रभावित हुआ और दोनों के बीच दोस्ती हो गई.
हालांकि, चंदू शाह नाम का एक अमीर दरबारी अपने बेटे का विवाह गुरु हरगोबिंद से करवाना चाहता था, लेकिन इनकार के कारण नाराज हो गया था. वह इस दोस्ती से जलने लगा. उसने एक चाल चली. जब जहांगीर बीमार पड़ा तो चंदू शाह ने सलाह दी कि अगर कुछ धर्मगुरु ग्वालियर किले में रहकर प्रार्थना करें तो उसकी तबीयत ठीक हो सकती है. उसने जानबूझकर गुरु हरगोबिंद जी का नाम सुझाया. जहांगीर ने बात मान ली और गुरु जी को ग्वालियर भेज दिया.
ग्वालियर में बंदी 52 राजा और गुरु जी का त्याग
ग्वालियर किले में पहले से ही 52 राजा-महाराजा कैद थे, जो राजनीतिक कारणों से बंद थे. गुरु जी ने उनकी दयनीय स्थिति देखी और उनके साथ बहुत अच्छा व्यवहार किया. धीरे-धीरे वे सभी गुरु जी के भक्त बन गए. किले के प्रमुख अधिकारी हरि दास भी गुरु जी के अनुयायी हो गए. कुछ समय बाद सूफी संत साईं मियां मीर ने जहांगीर से गुरु जी को रिहा करने की सिफारिश की, जहांगीर ने तुरंत आदेश दे दिया. जब वजीर खान ग्वालियर आया और गुरु जी को रिहा करने को कहा तो गुरु हरगोबिंद जी ने शर्त रख दी मैं अकेला नहीं जाऊंगा, इन 52 राजाओं को भी साथ लेकर जाऊंगा. जहांगीर ने कहा कि जो राजा आपके कपड़े का पल्ला पकड़ सकेंगे, उन्हें छोड़ दिया जाएगा. इसके बाद गुरु जी ने खास चोला बनवाया, जिसमें 52 लटकते हुए छोर थे. हर राजा ने एक-एक छोर पकड़ लिया और इस तरह गुरु जी के साथ सभी 52 राजा रिहा हो गए.
जब गुरु हरगोबिंद साहिब जी अमृतसर वापस लौटे तो लोगों की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. पूरे शहर को दीपों और रोशनी से सजा दिया गया. अमावस्या की रात थी, और स्वर्ण मंदिर को भी दीयों से सजाया गया. यहीं से बंदी छोड़ दिवस मनाने की परंपरा शुरू हुई. आज के समय में भी, बंदी छोड़ दिवस सिख समुदाय के लिए बहुत जरूरी दिन है. इस दिन गुरुद्वारों में विशेष कीर्तन और अरदास होती है. लोग दीये जलाते हैं, पटाखे छुड़ाते हैं, और गुरु हरगोबिंद साहिब जी के बलिदान और न्यायप्रियता को याद करते हैं.
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Source: IOCL





















