क्या पहली पत्नी को बताए बिना शादी नहीं कर सकता मुस्लिम शख्स, क्या है कानून?
केरल हाई कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि कोई मुस्लिम पुरुष अपनी पहली पत्नी को बिना बताए दूसरी शादी का रजिस्ट्रेशन नहीं कर सकता. जब तक कि पहली शादी वैध है और पत्नी जिंदा है.

केरल हाई कोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है. दरअसल केरल हाई कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए कहा कि कोई मुस्लिम पुरुष अपनी पहली पत्नी को बिना बताए दूसरी शादी का रजिस्ट्रेशन नहीं कर सकता. जब तक की पहली शादी वैध है और पत्नी जिंदा है. कोर्ट ने साफ किया है की दूसरी शादी का रजिस्ट्रेशन करने से पहले पुरुष को अपनी पहली पत्नी को नोटिस भेजना और उसकी सहमति लेना जरूरी होगा. अगर पहली पत्नी इस पर आपत्ति जताती है तो रजिस्ट्रार को दूसरी शादी की वैधता की पुष्टि के लिए मामला सिविल कोर्ट में भेजना होगा. कोर्ट ने इसके लिए केरल विवाह पंजीकरण नियम 2008 का हवाला दिया है.
क्या था मामला?
केरल हाई कोर्ट का यह फैसला एक मुस्लिम शख्स और उसकी दूसरी पत्नी की याचिका पर आया. जिन्होंने केरल के कासरगोड जिले की त्रिक्कारिपुर ग्राम पंचायत के फैसले को चुनौती दी थी. पंचायत ने उस शख्स की दूसरी शादी का रजिस्ट्रेशन करने से इनकार कर दिया था. वहीं याचिकाकर्ता ने स्वीकार किया था कि उसकी पहली पत्नी और दो बच्चे हैं. उसका दावा था की पहली पत्नी की सहमति से ही उसने 2017 में दूसरी शादी की थी और वह केवल दूसरी पत्नी और उसे हुए बच्चों के संपत्ति अधिकार को सुरक्षित करना चाहता है. इस याचिका पर जस्टिस पीवी कुन्हीकृष्णन ने कहा कि मुस्लिम पर्सनल लॉ एक पुरुष को एक से ज्यादा शादियां करने की इजाजत देता है. लेकिन इससे किसी के सामान्य और निष्पक्ष सुनवाई के संवैधानिक अधिकार खत्म नहीं हो सकते हैं.
केरल हाईकोर्ट ने कहा कि जब कोई पुरुष शादी का रजिस्ट्रेशन करना चाहता है तो उसे संवैधानिक आदेशों का सम्मान करना चाहिए. वहीं 2008 के नियमों के अनुसार मुस्लिम पुरुष अपनी पहली पत्नी को सूचित किए बिना, जिसके साथ उसकी शादी अभी भी वैध है वह दूसरी शादी का रजिस्ट्रेशन नहीं कर सकता है. कोर्ट ने आगे कहा कि अगर कोई पति अपनी पत्नी की उपेक्षा करता है, उसका भरण-पोषण नहीं करता या उस पर अत्याचार करता है और फिर पर्सनल लॉ का हवाला देखकर दूसरी शादी करता है तो पहली पत्नी को सुनवाई का मौका देना न्याय संगत होगा. जस्टिस कुन्हीकृष्णन ने कहा कि लैंगिक समानता हर नागरिक का संवैधानिक अधिकार है; वहीं इसमें पुरुष महिलाओं से श्रेष्ठ नहीं है, यह केवल महिलाओं का मुद्दा नहीं बल्कि एक मानवीय मामला भी है.
कुरान और शरीयत पर भी कोर्ट की टिप्पणी
कोर्ट ने कहा कि कुरान के अनुसार एक से ज्यादा शादियां मान्य है लेकिन पति को सभी पत्नियों के साथ न्याय करना होता है. हालांकि कुरान में दूसरी शादी के लिए पहली पत्नी की सहमति की आवश्यकता नहीं है, फिर भी उसे सूचित करना और उसकी राय लेना न्याय और पारदर्शिता के सिद्धांतों के अनुरूप है. वहीं कोर्ट ने पाया की याचिकाकर्ता ने अपनी पहली पत्नी को मामले में पक्षकार नहीं बनाया इसलिए उसकी याचिका खारिज कर दी गई.
हालांकि, अदालत ने यह अनुमति दी है कि वह दोबारा रजिस्ट्रेशन के लिए आवेदन कर सकता है. ऐसी स्थिति में रजिस्टर को पहली पत्नी को नोटिस भेजना होगा और उसे अपनी बात रखने का मौका देना होगा. वहीं कोर्ट का यह फैसला उन महिलाओं के लिए राहत की खबर माना जा रहा है, जिन्हें उनके पति बिना जानकारी के दूसरी शादी कर लेते हैं. हाई कोर्ट ने यह साफ किया है कि व्यक्तिगत कानून से ऊपर संवैधानिक अधिकार है और किसी भी महिला को बिना सुने उसका अधिकार नहीं छिना जा सकता है.
Source: IOCL
























