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Bihar Assembly Election: चुनाव में कितना खर्च कर सकती हैं पार्टियां, कैसे होता है इनका हिसाब-किताब?

Bihar Assembly Election: चुनाव के समय सभी राजनीतिक दल जमकर खर्च करते हैं. आज हम जानेंगे कि सभी पार्टियों की चुनाव में खर्च सीमा क्या होती है. आइए जानते हैं.

Bihar Assembly Election: बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारी तेज हो चुकी हैं. इसी बीच भारत निर्वाचन आयोग आज शाम 4 बजे दिल्ली के विज्ञान भवन में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करने की तैयारी कर रहा है. शायद आयोग प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान आधिकारिक चुनाव तारीखों की घोषणा कर सकता है. अक्सर चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों द्वारा खर्च किए जाने वाले धन को लेकर सवाल उठते रहते हैं. आज हम जानेंगे कि चुनाव के दौरान कोई भी पार्टी कितना खर्च कर सकती है और उनका हिसाब किताब कैसे होता है.

कितना खर्च कर सकते हैं राजनीतिक दल 

भारत में राजनीतिक दलों के लिए चुनाव खर्च पर कोई भी सीमा नहीं है. इस वजह से दलों को बड़े पैमाने पर अभियान, रैलियां और विज्ञापन आयोजित करने के लिए काफी सहायता मिलती है. लेकिन उन्हें चुनाव आयोग को सभी आय और खर्च की रिपोर्ट देनी होती है. आपको बता दें कि राष्ट्रीय स्तर के नेताओं जैसे स्टार प्रचारकों की यात्रा और खर्च को उम्मीदवार के खर्च में नहीं गिना जाता. इसी के साथ राजनीतिक दलों को चुनाव परिणाम के 75 दिनों के अंदर एक एक्सपेंस रिपोर्ट तैयार करनी होती है. इस रिपोर्ट में व्यक्तिगत उम्मीदवारों को दी जाने वाली वित्तीय सहायता भी शामिल होती है. इसी के साथ राजनीतिक दलों को ₹20,000 से ज्यादा के दान का खुलासा चुनाव आयोग को करना होता है, जबकि इस सीमा से कम का योगदान गोपनीय रखा जा सकता है.

उम्मीदवारों के लिए खर्च सीमा 

उम्मीदवारों के लिए खर्च करने की सख्त सीमाएं होती हैं. लोकसभा चुनाव में बड़े राज्यों के उम्मीदवार 95 लाख रुपए तक खर्च कर सकते हैं. इसी के साथ छोटे राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में इस सीमा को 75 लाख रुपए रखा गया है. वहीं विधानसभा चुनाव में बड़े राज्यों के उम्मीदवारों के लिए यह सीमा 40 लाख रुपए और छोटे राज्यों के लिए 28 लाख रुपए रखी गई है.

इसी के साथ उम्मीदवारों को नामांकन दाखिल करने से लेकर चुनाव परिणाम घोषित होने तक किए गए सभी खर्चों का लेखा-जोखा रखना जरूरी है. इस पूरे हिसाब किताब को परिणाम घोषित होने के 30 दिनों के अंदर जिला निर्वाचन अधिकारी को प्रस्तुत करना होता है. 

निगरानी और अनुपालन 

इस पूरी प्रक्रिया पर चुनाव आयोग सख्त नजर रखता है ताकि ज्यादा खर्च और भ्रष्टाचार को रोका जा सके. इसी के साथ उम्मीदवारों को चुनाव संबंधी खर्चों के लिए एक अलग से बैंक खाता खोलना होता है. साथ ही ₹10,000 से ज्यादा के लेनदेन इलेक्ट्रॉनिक रूप से किए जाते हैं. इन सब के अलावा आयकर विभाग और प्रवर्तन निदेशालय जैसी एजेंसी चुनाव के दौरान नगदी और बाकी अवैध लेनदेन पर नजर रखने में एक बड़ी भूमिका निभाती हैं.

ये भी पढ़ें:  आचार संहिता लागू होते ही बंद हो जाते हैं सारे काम, क्या टूटी सड़क भी नहीं बनवा सकती सरकार?

स्पर्श गोयल को कंटेंट राइटिंग और स्क्रीनराइटिंग में चार साल का अनुभव है.  इन्होंने अपने करियर की शुरुआत नमस्कार भारत से की थी, जहां पर लिखने की बारीकियां सीखते हुए पत्रकारिता और लेखन की दुनिया में कदम रखा. इसके बाद ये डीएनपी न्यूज नेटवर्क, गाजियाबाद से जुड़े और यहां करीब दो साल तक काम किया.  इस दौरान इन्होंने न्यूज राइटिंग और स्क्रीनराइटिंग दोनों में अपनी पकड़ मजबूत की.

अब स्पर्श एबीपी के साथ अपनी लेखनी को निखार रहे हैं. इनकी खास रुचि जनरल नॉलेज (GK) बीट में है, जहां ये रोज़ नए विषयों पर रिसर्च करके अपने पाठकों को सरल, रोचक और तथ्यपूर्ण ढंग से जानकारी देते हैं.  

लेखन के अलावा स्पर्श को किताबें पढ़ना और सिनेमा देखना बेहद पसंद है.  स्क्रीनराइटिंग के अनुभव की वजह से ये कहानियों को दिलचस्प अंदाज़ में पेश करने में भी माहिर हैं.  खाली समय में वे नए विषयों पर रिसर्च करना और सोशल मीडिया पर अपडेट रहना पसंद करते हैं.

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