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लोकसभा में चुनाव सुधार पर चर्चा के बीच मायावती ने कर दी 3 बड़ी मांगें, क्या मानेगा चुनाव आयोग?

Lok Sabha Election Reforms: बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने चुनाव आयोग के उस तर्क को खारिज किया जिसमें बैलेट पेपर से समय अधिक लगना बताया. मायावती ने इसको लेकर इन तीन मांगों को लेकर पोस्ट किया है.

संसद के शीतकालीन सत्र में मंगलवार (9 दिसम्बर) को चुनाव सुधारों पर चर्चा हो रही है. जिसमें विपक्षी दल मौजूदा SIR प्रक्रिया को लेकर अपनी नाराजगी और तर्क दे रहे हैं. इस बीच बहुजन समाज पार्टी सुप्रीमो मायवती ने भी चुनाव सुधार चर्चा के बीच अपनी पार्टी की ओर से तीन मांगे रखीं हैं. इसमें उन्होंने यूपी में SIR प्रक्रिया की समय सीमा बढ़ाने, अपराधिक छवि के नेताओं में पार्टी के बजाय नेता को जिम्मेदार ठहराया जाए और EVM के बजाय बैलेट पेपर से दोबार चुनाव कराने की मांग की.

बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने चुनाव आयोग के उस तर्क को खारिज किया जिसमें बैलेट पेपर से समय अधिक लगना बताया. मायावती ने इसको लेकर अपने सोशल मीडिया अकाउंट एक्स पर इन तीन मांगों को लेकर आज दोपहर एक पोस्ट किया.

 'SIR की समय-सीमा तुरंत बढ़ाई जाए'

BSP सुप्रीमो मायवती ने कहा कि SIR को लेकर जो पूरे देश में व्यवस्था चल रही है BSP उसके विरोध में नहीं है. परन्तु BSP का यह कहना है कि इस सम्बन्ध में मतदाता सूची में नाम भरने की जो भी प्रक्रिया होनी है, उसके लिए जो समय सीमा निर्धारित की गई है, वो बहुत ही कम है, जिसकी वजह से BLO के ऊपर भी काफी दबाव है और कई BLO काम के दबाव के वजह से अपनी जान भी गवां चुके हैं. जहां करोड़ों मतदाता हैं वहां BLO को उचित समय मिलना ही चाहिये और ख़ासतौर पर उस प्रदेश में जहां जल्दी ही कोई भी चुनाव नहीं है.

पूर्व सीएम ने कहा, "उत्तर प्रदेश में लगभग 15.40 करोड़ से भी ज़्यादा मतदाता हैं और अगर वहां SIR का कार्य जल्दबाज़ी में पूरा करने की कोशिश की जायेगी, तो इसका नतीजा यह होगा कि अनेकों वैध-मतदाता ख़ासतौर पर जो ग़रीब हैं और काम करने के सिलसिले में बाहर गये हैं, तो फिर उनका नाम मतदाता सूची से रह जायेगा और वो बाबा साहेब डा. भीमराव अम्बेडकर जी द्वारा ऐसे व्यक्तियों को दिया गया वोट डालने का संवैधानिक अधिकार से वंचित कर देगा, जो कि पूर्ण रूप से अनुचित होगा. अतः ऐसे में SIR की प्रक्रिया को पूरी करने में जल्दबाज़ी ना करते हुये उचित समय दिया जाना चाहिये अर्थात् वर्तमान मे दी गई समय सीमा को बढ़ाना चाहिये."

अपराधी प्रत्याशियों का पूरा बोझ पार्टी पर डालना बंद करो

उन्होंने कहा, "अपनी दूसरी मांग को लेकर लिखा कि सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशानुसार चुनाव आयोग द्वारा निर्देश जारी किये गये हैं. ऐसे लोग जिनका कोई भी आपराधिक इतिहास है, उन्हें अपने हलफनामें में इसका अपने आपराधिक इतिहास का पूरा ब्योरा देना होगा और इसके साथ-साथ स्थानीय अख़बारों में भी इसका पूरा विवरण भी प्रकाशित करना होगा. तथा जिस राजनैतिक पार्टी से वे चुनाव लड़ रहे हैं, उस राजनैतिक पार्टी की भी ज़िम्मेदारी होगी कि वह इस सूचना को अपने स्तर से भी राष्ट्रीय अख़बारों में भी प्रकाशित करेगी."

मायावती ने कहा, "इस सम्बन्ध में BSP का कहना है कि अक्सर यह पाया गया है कि जिस व्यक्ति को चुनाव लड़ने के लिए टिकट/सिम्बल दिया जाता है उनमें से कुछ लोग अपना आपराधिक इतिहास पार्टी को नहीं बतातें हैं तथा कुछ लोगों के सम्बन्ध में स्क्रूटनी (scrutiny) के समय ही पार्टी को इसका पता लग पाता है, जिसकी वजह से इसकी ज़िम्मेवारी पार्टी के ऊपर आ जाती है और वैसे भी ऐसे प्रत्याशियों के आपराधिक इतिहास को राष्ट्रीय अख़बारों में छपवाने की ज़िम्मेवारी पार्टी के ऊपर डाली गयी है."

पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा, "जबकि इस सम्बन्ध में हमारी पार्टी का यह सुझाव है कि आपराधिक छवि वाले प्रत्याशियों के सम्बन्ध में सभी औपचारिकताएं पूरी करने की ज़िम्मेवारी उन्हीं पर डालनी चाहिये ना कि पार्टी के ऊपर होनी चाहिये. और अगर आगे चलकर यह मालूम होता है कि किसी प्रत्याशी ने अपना आपराधिक इतिहास छुपाया है तो इससे सम्बंधित हर प्रकार की कानूनी कार्रवाई और ज़िम्मेदारी भी उसी पर आनी चाहिये ना कि पार्टी के ऊपर."

'EVM पर भरोसा नहीं'

BSP की ओर से EVM का मुद्दा फिर प्रमुखता से उठाते हुए मायावती ने कहा, "ईवीएम के द्वारा उसमें लगातार उठती गड़बड़ियों की शिकायत जो चुनाव के दौरान और उसके बाद व्यक्त की जाती है, उसे दूर करने के लिए और चुनाव प्रक्रिया में सभी का पूर्ण रूप से विश्वास पैदा करने के लिए अब EVM के द्वारा वोट डलवाने की जगह पुनः बैलेट पेपर से ही वोट  डलवाने की प्रक्रिया लागू की जाये और अगर किसी वजह से ऐसा अभी नहीं किया जा सकता है, तो कम से कम VVPAT के डब्बे में जो वोट डालते समय पर्ची (slip) गिरती है. उन सभी पर्चियों की गिनती सभी बूथों में करके EVM के वोटों से मिलान किया जाये."

मायावती ने आगे कहा, "ऐसा ना करने का जो कारण चुनाव आयोग द्वारा बताया जाता है, कि इसमें काफी समय लग जायेगा जबकि इनका यह तर्क बिलकुल भी उचित नहीं है. क्योंकि अगर सिर्फ कुछ और घन्टे गिनती में लग जाते हैं तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ना चाहिये, जबकि वोट डालने की चुनाव प्रक्रिया महीनों चलती है. और यह इसलिए भी जरूरी है कि इससे देश की आमजनता का चुनाव प्रक्रिया में विश्वास बढ़ेगा तथा इस प्रकार के जो अनेकों प्रकार के सन्देह उत्पन्न होते हैं उनपर भी पूर्ण विराम लगेगा, जो देश हित में होगा."

बहरहाल चुनाव सुधार चर्चा के बीच बीएसपी द्वारा इन तीन मांगों ने विपक्ष को चुनाव आयोग और सरकार पर दबाब बनाने में संजीवनी का काम किया है.

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