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आग की लपटों के बीच शुरू हुई थी नरगिस और सुनील दत्त की प्रेम कहानी, मीना कुमारी से कहा था- मौत मुबारक

नरगिस दत्त का असली नाम फातिमा राशिद था. नरगिस की मां जद्दनबाई पेशे से तवायफ थीं. जद्दनबाई और नेहरू के रिश्ते बहुत गहरे थे. यही वजह थी कि नेहरू नरगिस को अपनी बेटी की तरह मानते थे.

1 जून साल 1929, एक तवायफ के घर एक बच्ची पैदा हुई. नाम रखा गया फातिमा राशिद..., फातिमा राशिद की तवायफ मां बेटी को प्यार से कनीज फातिमा कहती थी. यही कनीज फातिमा आगे चल कर मदर इंडिया बनीं. मदर इंडिया यानी के नरगिस दत्त. 1957 में आई फिल्म मदर इंडिया के बाद नरगिस दत्त ने न सिर्फ कामयाबी की ऊंचाइयों को छुआ साथ ही सफेद साड़ी वाली इस अदाकारा ने दुल्हन की लाल साड़ी भी पहनी. 

सुनील दत्त से शादी से पहले नरगिस अपनी फिल्मों के अलावा सामाजिक कार्यों के लिए जानी जाती थी. काम के दौरान ज्यादातर सफेद साड़ी में दिखाई पड़ती थीं.

मदर इंडिया के नाम से मशहूर नरगिस में अल्हड़पन, सादगी और मासूमियत का ऐसा संगम था कि जिस पर हर कोई फिदा हो जाता था. नरगिस की नजाकत और आंखें देख कोई भी मोहपाश में बंध जाए कुछ ऐसी ही थी नरगिस की अदायगी. 

अभिनय के लिए नरगिस की गहरी आंखें ही कमाल थी 

नरगिस उन अदाकाराओं में एक थी जिन्हें बहुत ज्यादा खूबसूरत तो नहीं कहा जा सकता, क्योंकि उनके दौर में मधुबाला बला की खूबसूरत मानी जाने वाली एक्ट्रेस थीं. वहीं मीना कुमारी के मुकाबले नरगिस अभिनय में रमने वाली अदाकारा भी नहीं थी, लेकिन उन्हें अदायगी और पर्दे पर खुद को पेश करने की वो कला आती थी की वो अपने जमाने की न भुलाए जाने वाली अदाकारा बन गई. नरगिस ने अपनी गहरी और बड़ी- बड़ी आंखों से भारतीय दर्शक के दिलों में जगह बनाई.

अभिनय की उम्र महज 15 साल... 

साल 1958 में नरगिस को पद्मश्री के आवार्ड से नवाजा गया. नरगिस भारतीय सिनेमा की पहली ऐसी अदाकारा थीं जिन्होंने पर्दे की दुनिया से संसद की सीढ़ियों पर कदम रखा. कभी न भुलाए जाने वाली इस अदाकारा ने फिल्मी पर्दे पर हर वो रंग दिखाए.. जो एक औरत की जिंदगी से जुड़े होते हैं. 

नरगिस की आखिरी फिल्म 1967 में आई 'रात और दिन' थी. इस फिल्म उन्होंने एक मल्टीपल पर्सनालिटी डिसऑर्डर से पीड़ित महिला का रोल निभाया था. इस भूमिका के लिए उन्होंने सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीता और इस श्रेणी में अवार्ड जीतने वाली वह पहली अभिनेत्री बनीं. नरगिस अदायगी में कितनी निपुण थी इसके अंदाजा उनके गानों को देखकर भी लगाया जा सकता है. चाहे वो जिया बेकरार हो या प्यार हुआ इकरार हुआ हो या इच्चक दाना बिच्चक दाना क्यों न हो.  

यकीनन ही नरगिस के अभिनय की उम्र महज 15 साल की थी, लेकिन 15 साल के छोटे से अभिनय की उम्र में नरगिस ने जो मुकाम हासिल किया वो शायद सिर्फ उन्हें ही मिल पाया है. फिल्मी दुनिया छोड़ने के बाद तेईस साल तक नरगिस अपने पति और बच्चे के जरिए फिल्मों से जुड़ी रहीं.


आग की लपटों के बीच शुरू हुई थी नरगिस और सुनील दत्त की प्रेम कहानी, मीना कुमारी से कहा था- मौत मुबारक

मदर इंडिया - जब 27 साल की नरगिस ने 70 साल की दादी मां के कैनवास में जान डाल दी

नरगिस को करीब से जानने वाले लोगों का ये मानना था कि नरगिस एक बहुत ही मॉडर्न लड़की थी. मदर इंडिया में 27 साल की नरगिस ने सत्तर साल की दादी मां का रोल निभा कर फिल्मी जगत के कैनवास पर औरत के हर रंग को दिखाया. इसी फिल्म की शूटिंग के दौरान सुनील दत्त और नरगिस की मुलाकात हुई थी. 

यूं तो सुनील और नरगिस दत्त ने कई फिल्मों के मौके पर एक दूसरे का आमना-सामना किया होगा, लेकिन फिल्म निर्माता महबूब खान ने अपनी फिल्म मदर इंडिया के सेट पर आधिकारिक तौर पर एक-दूसरे को मिलवाया. नरगिस फिल्म में अहम भूमिका निभा रही थी, और सुनील दत्त नरगिस के बेटे बिरजू की भूमिका निभा रहे थे. 

आग की लपटों के बीच शुरू हुई नरगिस और सुनील दत्त के प्रेम कहानी

आप नरगिस और सुनील दत्त की प्रेम कहानी के बारे में जरूर जानते होंगे. जो 1957 में मदर इंडिया के सेट पर आग की लपटों से शुरू हुई थी.  सुनील दत्त ने खुद को खतरे में डालकर नरगिस की जान बचाई थी. और बस यहीं से नरगिस के दिल में सुनील दत्त बस गए. वह शूटिंग के बाद अस्पताल में हर दिन उनसे मिलने जाती थीं और कुछ हफ्तों बाद दत्त ने नरगिस के सामने शादी का प्रस्ताव दिया, तो वह तुरंत सहमत हो गईं.

दोनों की शादी को लेकर खूब विवाद हुआ था. यह पहली हाई प्रोफाइल अंतर-धार्मिक शादी थी, लेकिन वक्त ने दोनों के रिश्ते के ऊपर बिखरी इस धूल को भी साफ कर दिया. 

शादी के बाद सुनील दत्त ने फिल्मों में काम करना जारी रखा, नरगिस ने प्रेगनेंसी के बाद काम ब्रेक लिया था.  70 के दशक के आखिर में वो दौर भी आया जब नरगिस और सुनील दत्त ने फिल्म रॉकी में संजय दत्त को लॉन्च किया. 1979 तक नरगिस की जिंदगी किसी परिकथा से कम नहीं थी. 1979 के आखिर में नरगिस कैंसर जैसी बीमारी से लड़ रही थीं.

1981 में नरगिस की कैंसर से मृत्यु हो गई और सुनील दत्त पूरी तरह टूट गए. जाहिर तौर पर नरगिस की मौत सुनील दत्त की जिंदगी के किताब का सबसे दर्दनाक पन्ना था. बेटियां नम्रता और प्रिया की जिंदगी भी मां के जाने के बाद बुरी तरह बिखर गई. मौत के समय नरगिस की दोनों बेटियां  छोटी ही थे.

पत्नी की मौत के बाद सुनील दत्त दुखी और डिप्रेशन में थे. संजय दत्त पहले से ही ड्रग्स के आदी थे. सबसे छोटी बेटी प्रिया दसवीं कक्षा की परीक्षा दे रही थी, और सबसे बड़ी नम्रता ने कॉलेज में एडमिशन लिया था. कुल मिलाकर उन सभी की ताकत जो नरगिस थी वो अब दुनिया से जा चुकी थीं.


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नरगिस का जवाहरलाल नेहरू से रिश्ता

नरगिस की मां का नाम जद्दनबाई था, पेशे से तवायफ थीं और धर्म से मुसलमान, कोलकाता के एक कोठे पर बैठती थी. जद्दन ने मोहन बाबू से शादी की. इन दोनों की ही औलाद थीं नरगिस.  

लेखक मनमोहन देसाई ने नरगिस के परिवार पर एक किताब लिखी है. इस किताब में देसाई ने लिखा कि आजादी से पहले नरगिस के परिवार के संबध जवाहर लाल नेहरू से बहुत गहरे थे. नरगिस की मां जद्दनबाई किसी न किसी रूप में नेहरू के परिवार से जुड़ी हुई थीं. जवाहरलाल नेहरू उनके लिए बड़े भाई की तरह थे और वह उनकी कलाई पर राखी बांधती थीं. वर्षों बाद नरगिस को राष्ट्रीय सम्मान (पद्मश्री) से सम्मानित किया गया और बाद में उन्हें राज्यसभा के लिए नामांकित किया गया. नेहरू नरगिस को बेटी की तरह मानते थे.  नरगिस के गुजर जाने के बाद सुनील दत्त कांग्रेस सांसद और मंत्री बने. उनकी मृत्यु के बाद, उनकी बेटी प्रिया ने कांग्रेस के टिकट पर मुंबई में अपने निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव जीता. 

'नरगिस को पहली नौकरी की पेशकश बहुत कम उम्र में मिली'

पत्नी के गुजरने के बाद सुनील दत्त ने एक इंटरव्यू में कहा 'मेरी पत्नी वह करना चाहती थी जो उसके पिता कभी पूरा नहीं कर पाए, वह एक डॉक्टर बनना चाहती थी." नरगिस को एक अभिनेत्री के तौर पर 'नौकरी' की पेशकश की गई थी. उस वक्त नरगिस की उम्र बहुत कम थी कि वो अपने सपनों को लेकर कोई ठोस फैसला कर सकें. मां ने हाथ और किस्मत आजमाने के लिए कहा और वह आगे बढ़ी और एक बहुत बड़ी स्टार बन गई.' लेकिन वह हमेशा से डॉक्टर बनना चाहती थी. इसीलिए जब वह बड़ी स्टार बन गई तब भी वह हमेशा अस्पतालों, खासकर कैंसर के अस्पतालों में मरीजों की देखभाल करने और उनसे मिलने  मिलने जाती थी. यह विडंबना ही थी कि जब नरगिस खुद कैंसर से पीड़ित थीं, और उनकी मौत भी इसी बीमारी की वजह से हुई.

न्यूयॉर्क के एक अस्पताल में इलाज के लंबे समय बाद डॉक्टरों ने दत्त को सलाह दी कि वह लाइफ सपोर्ट सिस्टम बंद कर दें. नरगिस को कोमा में गए महीने से ज्यादा का समय बीत चुका था. लेकिन दत्त ने लाइफ सपोर्ट सिस्टम बंद करने से इंकार कर दिया. कुछ दिनों बाद ही नरगिस कोमा से बाहर भी आ गई और ठीक होने लगी. उन्हें घर ले आया गया.

मई 1981 तक नरगिस बहुत बीमार रहने लगी. बेटे संजय की डेब्यू फिल्म रॉकी 7 मई को रिलीज होनी थी और नरगिस प्रीमियर पर आना चाहती थीं. नरगिस ने सुनील दत्त' से कहा था 'जो भी हो, भले ही आपको मुझे स्ट्रेचर पर ले जाना पड़े या व्हीलचेयर पर ले जाना पड़े, मैं अपने बेटे की फिल्म का प्रीमियर देखना चाहती हूं. दत्त ने भी सभी  सभी इंतजाम किए थे. एंबुलेंस, स्ट्रेचर और व्हीलचेयर तक लाए गए थे. संजय के बगल में नरगिस के लिए एक सीट रखी. लेकिन नरगिस बेटे के बगल में बैठ ना सकीं.  3 मई को नरगिस ने दुनिया को अलविदा कह दिया. 

सुनील दत्त ने एक इंटरव्यू में बताया कि नरगिस आज भी मेरे सपने में आती हैं. दत्त ने ये भी कहा था कि नरगिस मेरी आंखों से अपने बेटे संजय दत्त को जरूर देख रही होंगी. 

मीना कुमारी के नाम नरगिस का खत

नरगिस एक्ट्रेस मीना कुमारी के बहुत करीब थी. मीना कुमारी  का निधन का 31 मार्च 1972 को हुआ. उनकी मौत के बाद नरगिस ने मीना कुमारी को एक खत लिखा था.  जिसमें उन्होंने लिखा था, "मीना, मौत मुबारक हो!" नरगिस का खत एक उर्दू मैगजीन में पब्लिश हुआ था. नरगिस ने अपने खत में लिखा, 'आपकी मौत पर बधाई' मैंने ऐसा पहले कभी नहीं कहा. मीना, आज तुम्हारी बाजी (बड़ी बहन) तुम्हें तुम्हारी मौत पर बधाई देती है और कहती है कि तुम फिर कभी इस दुनिया में कदम मत रखना. यह जगह तुम जैसे लोगों के लिए नहीं है.

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