सेना के नाम के दुरुपयोग को लेकर राष्ट्रपति, EC को लिखी चिट्ठी से कई सैन्य अधिकारियों का इंकार
इस चिठ्ठी को लेकर एयर चीफ मार्शल एन सी सूरी ने एबीपी न्यूज से फोन पर साफ मना कर दिया कि उन्होनें ऐसी किसी चिठ्ठी को लिखा है या फिर हस्ताक्षर किए हैं.

नई दिल्लीः सेनाओं के राजनीतिकरण के मुद्दे को लेकर एक बार फिर बड़ा विवाद हो गया है. इस बार पूर्व सैन्य-अधिकारियों की एक चिठ्ठी को लेकर विवाद हो गया है. मीडिया में आज एक ऐसी चिठ्ठी सामने आई जिसमें 156 शीर्ष सैन्य अधिकारियों के नाम थे और जिसको लेकर दावा किया गया ये चिठ्ठी इन अधिकारियों ने मिलकर राष्ट्रपति और चुनाव आयोग को ये कहकर लिखी है कि राजनैतिक पार्टियों द्वारा चुनावी अभियान में सशस्त्र सेनाओं का नाम और उनके द्वारा किए गए ऑपरेशन्स का इस्तेमाल ना करे. लेकिन कुछ ही देर बाद इस चिठ्ठी में लिखे कुछ बड़े नामों ने साफ इंकार कर दिया कि उन्होंने ऐसी कोई भी चिठ्ठी लिखी है या उसका सर्मथन करते हैं. बता दें कि इस चिठ्ठी में आठ पूर्व सेनाध्यक्षों के नाम लिखे थे.
चार पेज की इस चिठ्ठी को लेकर एक पूर्व सैन्य अधिकारी, मेजर प्रियदर्शी चौधरी ने दावा किया कि इसे राष्ट्रपति और चुनाव आयोग को भेजा गया है. इस चिठ्ठी में कुल 156 पूर्व सैन्य अधिकारियों के नाम लिखे थे. शुरू के आठ नाम पूर्व सेनाध्यक्षों के थे, जिनमें जनरल एस एफ रोड्रिग्स, जनरल शंकर रॉय चौधरी, जनरल दीपक कपूर, एडमिरल एल रामदास, एडमिरल विष्णु भागवत, एडमिरल अरूण प्रकाश, एडमिरल सुरीश मेहता और एयर चीफ मार्शल एन सी सूरी के नाम लिखे थे.
चिठ्ठी में साफ तौर से हाल ही में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के मोदी के सेना वाले बयान और राजनैतिक पार्टियों और नेताओं द्वारा विंग कमांडर अभिनंदन के नाम और फोटो के इस्तेमाल को लेकर सवाल खड़े किए गए थे. चिठ्ठी में राष्ट्रपति और चुनाव आयोग से आग्रह किया गया था कि वो राजनैतिक पार्टियों को फौज, फौजी यूनिफार्म और फौज द्वारा किए गए ऑपरेशन्स का नाम चुनाव अभियान में ना लें.
इस चिठ्ठी को लेकर एयर चीफ मार्शल एन सी सूरी ने एबीपी न्यूज से फोन पर साफ मना कर दिया कि उन्होनें ऐसी किसी चिठ्ठी को लिखा है या फिर हस्ताक्षर किए हैं. लेकिन उन्होनें ये जरूर कहा कि कुछ दिन पहले उनके पास एक ईमेल जरूर आया था जिसमें सशस्त्र सेनाओं के राजनीतिकरण को लेकर सवाल खड़े किए गए थे और उन्होंने उसे समर्थन जरूर किया था. इस बीच एस एफ रोड्रिग्स ने भी बयान देकर इस चिठ्ठी से अपना पल्ला झाड़ लिया.
यहां तक कि खुद राष्ट्रपति भवन के सूत्रों ने भी ऐसी किसी चिठ्ठी के मिलने से साफ इंकार कर दिया. आपको बता दें कि राष्ट्रपति तीनों सेनाओं के सुप्रीम कमांडर होते हैं.
लेकिन चिठ्ठी में लिखे कुछ और नामों ने साफ कर दिया कि वे इस चिठ्ठी का समर्थन करते हैं. इनमें एयर वायस मार्शल कपिल काक (लिस्ट में 43वें नंबर) और मेजर-जनरल हर्षा कक्कड़ (31वें नंबर पर) साफ कर दिया कि वे इस चिठ्ठी का समर्थन करते हैं. उन्होनें ये भी कहा कि उन्होनें इस चिठ्ठी पर हस्ताक्षर किए हैं.
रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण से भी जब इस चिठ्ठी के बार में सवाल किया गया तो उन्होनें भी इसे फर्जी करार देकर ये कह दिया कि इसमें दिए दो बड़े नामों ने अपने आप को इससे अलग कर लिया है.
एबीपी न्यूज की पड़ताल में पता चला है कि इस चिठ्ठी को एक पूर्व सैन्य अधिकारी, मेजर प्रियदर्शी चौधरी ने अपने ट्विटर एकाउंट से सबसे पहले सार्वजनिक किया था. अपने को शौर्य चक्र विजेता बताने वाले मेजर चौधरी से जब एबीपी न्यूज ने बता कि तो उन्होनें बताया कि इस लिस्ट को उन्होनें अपने कुछ साथियों से मिलकर तैयार कराई है. उन्होंने इस लिस्ट में दिए सैन्य अधिकारियों के ईमेल पर भेजा था और उनसे समर्थन लिया था. अपने ट्वीट में मेजर चौधरी ने लिखा है कि "भारत के सशस्त्र सेनाओं की निष्ठा बिना किसी संदेह के इस देश के प्रति है ना कि बीजेपी या फिर (प्रधानमंत्री) नरेन्द्र मोदी के. यहां तक की चुनाव आयोग भी नहीं."
काफी हद तक संभव है कि इस चिठ्ठी को राष्ट्रपति और चुनाव आयोग को भेजने या फिर मिलने से पहले मेजर चौधरी ने ट्विटर पर सार्वजनिक कर दिया. साथ ही ईमेल पर मिले समर्थन को चिठ्ठी बनाकर राष्ट्रपति और चुनाव आयोग को भेजने का दावा किया गया.
नोट:
1. जनरल दीपक कपूर को फोन किया गया, लेकिन पता चला कि वे विदेश में हैं. एडमिरल अरूण प्रकाश का फोन बंद पाया गया. वे भी ऐसा माना जा रहा है कि देश से बाहर हैं.
2. जनरल दीपक कपूर को कांग्रेस का करीबी माना जाता है.
3. जनरल शंकर रॉय चौधरी कांग्रेस और लेफ्ट के समर्थन से राज्यसभा सांसद रह चुके हैं.
4. एडमिरल रामदास आम आदमी पार्टी की कोर कमेटी के संस्थापक सदस्य थे.
5. एडमिरल विष्णु भागवत को वाजपेयी सरकार के दौरान 1998 में नौसेना प्रमुख के पद से हटा दिया गया था.
6. मेजर प्रियदर्शी चौधरी ने कुछ महीने पहले भी एक ऐसी ही फर्जी चिठ्ठी जारी की थी जिसमें दावा किया गया था कि रक्षा मंत्रालय के अधिकारी सेना की गाड़ियां इस्तेमाल करते हैं. जिसमें उस वक्त के सेना के प्रवक्ता को भी सिविलयन बता दिया गया था. विवाद बढ़ा तो मेजर चौधरी ने माफी मांगकर इस चिठ्ठी को अपने ट्विटर एकाउंट से हटा दिया था.
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