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Assembly Election 2023: मध्‍य प्रदेश और राजस्‍थान में कमलनाथ-गहलोत और मोदी के बीच में महामुकाबला, किसमें कितना दम?

Assembly Election 2023: राजस्थान और मध्य प्रदेश में इस साल के अंत में होने वाले चुनाव रोमांचक हो सकते हैं. बीजेपी ने इन दोनों ही जगहों पर सीएम फेस की घोषणा नहीं की है. पार्टी मोदी मैजिक के भरोसे है.

MP Rajasthan Assembly Election 2023: मध्य प्रदेश और राजस्थान में विधानसभा चुनाव को लेकर भले ही तारीखों का ऐलान न हुआ हो, लेकिन यहां चुनावी बिगुल बज चुका है. दोनों ही राज्यों में मुकाबला कांग्रेस और बीजेपी के बीच है. ऐसे में दोनों दल एक-दूसरे पर जमकर हमले कर रहे हैं. बीजेपी जहां पीएम नरेंद्र मोदी के चेहरे पर दोनों जगह जीत का दावा कर रही है, तो वहीं कांग्रेस राजस्थान में सीएम अशोक गहलोत और मध्य प्रदेश में पूर्व सीएम कमलनाथ के चेहरे पर ताल ठोक रही है.

ऐसे में मुकाबला पीएम नरेंद्र मोदी और कमलनाथ-अशोक गहलोत के बीच है. बड़ा सवाल ये है कि क्या नरेंद्र मोदी अपने दम पर लोकसभा चुनावों की तरह पार्टी को इन दोनों राज्यों में बंपर जीत दिला पाएंगे. अशोक गहलोत और कमलनाथ कैसे पीएम को चुनौती देंगे, इनका वोट बैंक कौन है और बीजेपी का सीएम फेस घोषित न करना फायदेमंद होगा या नुकसानदायक? यहां हम इन्हीं सवालों के जवाब आपको देंगे.

लोकसभा में मोदी फैक्टर कितना रहा कामयाब?

लोकसभा चुनाव की बात करें तो इसमें मोदी फैक्टर काफी हावी दिखता है और राजनीतिक समीकरण पूरी तरह से बदल जाते हैं. मोदी फैक्टर इतना हावी है कि जिन राज्यों में कांग्रेस या दूसरे दलों की सरकार है, वहां भी बीजेपी 90 से 95 प्रतिशत सीटें जीतने में कामयाब रहती है. सबसे बड़ा उदाहरण कर्नाटक ही है. यहां इस साल कांग्रेस ने विधानसभा में जीत दर्ज की है, जबकि 2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी को यहां कुल 28 सीटों में से 25 सीटों पर जीत मिली थी.

हिमाचल प्रदेश में लोकसभा की 4 सीटें हैं और 2019 चुनाव में बीजेपी को सभी 4 पर जीत मिली थी. दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार है, लेकिन 2019 लोकसभा चुनाव में यहां सातों सीटों पर बीजेपी ने कब्जा किया था. राजस्थान की बात करें तो यहां की 25 लोकसभा सीटों में से 24 पर बीजेपी ने 2019 चुनाव में जीत दर्ज की थी. इसके अलावा गुजरात, बिहार, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश जैसे कई और राज्य हैं जहां बीजेपी लोकसभा में दो चुनावों से 90 प्रतिशत से अधिक सीटें जीत रही हैं.

विधानसभा चुनावों में मोदी फैक्टर कितना चला?

बेशक पीएम नरेंद्र मोदी के चेहरे और नाम से भारतीय जनता पार्टी ने 10 साल में कई विधानसभा चुनावों में जीत दर्ज की, लेकिन अब कई राज्यों में स्थिति बदल रही है. बात अगर इसी साल हुए चुनाव की करें तो कर्नाटक चुनाव से बीजेपी को बड़ा झटका लगा है. कर्नाटक में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा और कांग्रेस सत्ता में वापस आई. वहीं 2022 के अंत में हिमाचल प्रदेश में हुए चुनाव में भी कांग्रेस ने जीत दर्ज की और बीजेपी को हार का सामना करना पड़ा, जबकि कर्नाटक में पीएम नरेंद्र मोदी समेत बीजेपी के टॉप लीडरों ने पूरी ताकत झोंक दी थी. 

मोदी के फेस पर बीजेपी किन-किन राज्यों  में जीती?

नरेंद्र मोदी अब भी बीजेपी के लिए सबसे बड़ा चेहरा हैं और उनके नाम पर दूसरे प्रदेशों में भी पार्टी को अच्छे वोट मिल जाते हैं. अगर 2022 की बात करें तो इस साल गुजरात और उत्तर प्रदेश में बीजेपी की सत्ता में वापसी हुई. 2022 में पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में से चार में बीजेपी जीती. उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में भी मोदी का जादू दिखा और बीजेपी सत्ता में आई. हालांकि पंजाब में आम आदमी पार्टी को जीत मिली. 

कमलनाथ और गहलोत किस जाति पर रखते हैं प्रभाव?

चुनावों में जाति सबसे अहम फैक्टर रहता है. ऐसे में यह जानना काफी महत्वपूर्ण हो जाता है कि राजस्थान और मध्य प्रदेश में कांग्रेस की तरफ से सीएम के फेस अशोक गहलोत और कमलनाथ किस जाति पर प्रभाव रखते हैं, वह अपने दम पर किसी वोट बैंक को पार्टी के खेमे में ले जा सकते हैं. बात अगर कमलनाथ की करें तो उन्होंने कभी अपनी जाति आउट नहीं की है. वह अपने नाम के बाद कोई सरनेम भी नहीं लगाते जिससे उनकी जाति का पता चल सके, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि उनका वोट बैंक नहीं है. राजनीतिक एक्सपर्ट बताते हैं कि कमलनाथ की पकड़ आदिवासी वोटरों पर बहुत अच्छी है और यही वोटर मध्य प्रदेश चुनाव के नतीजों को प्रभावित करने की क्षमता रखता है. 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने मध्य प्रदेश की कुल 47 ट्राइबल रिज़र्व सीट में से 31 पर जीत दर्ज की थी, जबकि बीजेपी के खाते में सिर्फ 16 सीटें आईं थीं.

2011 की  जनगणना के मुताबिक, मध्य प्रदेश में अनुसूचित जनजाति की जनसंख्य 1.53 करोड़ से अधिक थी. दस साल पहले मध्य प्रदेश के कुल 7.26 करोड़ निवासियों में से 21.08 आदिवासी थे. अगर बात वर्तमान समय की करें तो फिलहाल आदिवासी समुदाय की आबादी लगभग 1.75 करोड़ है, जो सूबे की कुल जनसंख्या का 22 पर्सेंट हैं. वहीं, राज्य की अन्य 35 विधानसभा सीटों पर आदिवासी मतदाता 50 हजार से अधिक हैं. कुल मिलाकर आदिवासी समुदाय का असर 84 सीटों पर है. इसी वोटर को टारगेट करते हुए पिछले दिनों कांग्रेस के नेता ओमकार सिंह मरकाम ने कमलनाथ को आदिवासी बताया था. उन्होंने कमलनाथ के आदिवासी होने के नारे भी लगवाए और कहा कि आदिवासी समाज कमलनाथ को आदिवासी होने का सर्टिफिकेट देता है. तब ओमकार सिंह मरकाम ने नारे लगवाए, ‘शिकारपुर का निवासी है, कमलनाथ भी आदिवासी है’. कमलनाथ को आदिवासी बताते हुए ओमकार सिंह मरकाम ने कहा, ‘मुझसे कई लोगों ने पूछा, आप कौन होते हो कमलनाथ जी को आदिवासी का सर्टिफिकेट देने वाले? मैंने कहा दो प्रकार का सर्टिफिकेट मिलता है. एक जन्म से मिलता है और एक कर्म से मिलता है. कर्म के आधार पर आदिवासी समाज कमलनाथ को आदिवासी होने का सर्टिफिकेट देता है.’

अशोक गहलोत

अशोक गहलोत की जाति की बात करें तो वह माली-सैनी समाज के हैं. पिछले दिनों सीएम ने कहा था कि मेरी जाति सैनी, कुशवाहा, माली कहलाती है. पूरे विधानसभा में मेरी जाति का मैं अकेला एमएलए हूं. इस बयान से अशोक ने कुशवाहा-माली समाज के वोट बैंक पर नडर डाली है. इसके अलावा अशोक गहलोत का सबसे बड़ा वोट बैंक सरकारी योजनाओं का लाभार्थी है. चुनाव से पहले गहलोत ने घरेलू और कृषि बिजली कनेक्शन पर फ्यूल सरचार्ज माफ कर बड़ी घोषणा की है. करीब 1.40 करोड़ बिजली कनेक्शन वाले शहरी और ग्रामीण उपभोक्ताओं को इसका फायदा मिलेगा. इसके अलावा राजस्थान सरकार ने 1 करोड़ 35 लाख महिलाओं और लड़कियों को इंदिरा गांधी फ्री स्मार्टफोन योजना की शुरुआत कर की है इसके तहत पहले फेज में 40 लाख, दूसरे फेज में 80 लाख महिलाओं को तीन साल के डेटा के साथ फ्री स्मार्टफोन दिए जाएंगे. इसके अलावा और भी कई चीजें हैं जिनसे अशोक गहलोत का वोट बैंक जाति से अलग विस्तृत रूप लेता है. 

सीएम फेस घोषित न करने से बीजेपी को होगा नुकसान या फायदा?

राजस्थान और मध्य प्रदेश में बीजेपी की तरफ से सीएम का दावेदार कौन होगा, यह अभी तक स्पष्ट नहीं है. पार्टी ने किसी भी नाम का ऐलान नहीं किया है. पिछले दिनों राजस्थान में हुई एक जनसभा में पीएम नरेंद्र मोदी ने साफ कर दिया था कि पार्टी से सीएम का चेहरा नतीजों के बाद तय किया जाएगा. फिलहाल कमल चिह्न ही सीएम का चेहरा है. इससे साफ है कि बीजेपी बिना सीएम के दावेदार का ऐलान किए दोनों जगह चुनाव लड़ेगी. अब सवाल ये उठता है कि पार्टी को इसका नुकसान होगा या फायदा? एक्सपर्ट मौजूदा हालात को देखते हुए बताते हैं कि बीजेपी को इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है. बेशक बीजेपी को इस फॉर्मूले पर चलते हुए पिछले कुछ साल में कई राज्यों में सफलता मिली हो, लेकिन राजस्थान और मध्य प्रदेश में स्थिति ऐसी नहीं है.

सबसे पहले बात राजस्थान की करें तो यहां कांग्रेस की सरकार है और मौजूदा सीएम अशोक गहलोत लोगों के बीच अच्छे खासे लोकप्रिय हैं. उन्होंने अपने मौजूदा कार्यकाल में कई ऐसी योजनाएं शुरू की हैं जिनसे पार्टी का वोट बैंक बढ़ा है. ऐसी स्थिति में बीजेपी के पास बढ़त बनाने के लिए पहला मौका सीएम का चेहरा बताना ही था, ताकि लोग तुलना करके निर्णय कर सकें, लेकिन पार्टी ने ये विकल्प नहीं दिया है. बीजेपी के लिए दूसरी समस्या पार्टी की अंदरूनी कलह है, इससे भी उसे नुकसान हो सकता है. दरअसल, पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे पार्टी से नाराज बताई जा रही हैं. पार्टी के अब तक के कैंपेन में वह बैकफुट पर ही नजर आ रही हैं. ऐसे में उनके समर्थक भी उन्हें नजरअंदाज किए जाने से नाराज होकर पार्टी को नुकसान पहुंचा सकते हैं.

अब बात मध्य प्रदेश की करें तो यहां अभी बीजेपी की सरकार है और शिवराज सिंह चौहान सीएम हैं. वह इससे पहले तीन बार सीएम रह चुके हैं और यह उनका चौथा टर्म है, लेकिन इस बार भी पार्टी उन्हें सीएम बनाएगी या नहीं, ये साफ नहीं है. ऐसे में शिवराज सिंह के समर्थक भी इससे नाराज हो सकते हैं. इसके अलग ये बात भी महत्वपूर्ण है कि पिछले चुनाव में यहां कांग्रेस बहुमत के पास थी और उसी ने सरकार बनाई थी, लेकिन कुछ महीने बाद ही ज्योतिरादित्य सिंधिया बगावत करते हुए अपने समर्थक एमएलए के साथ बीजेपी में शामिल हो गए थे, इससे कमलनाथ सरकार गिर गई थी. ऐसे में यह साफ है कि कांग्रेस अब भी यहां मैदान में है और बीजेपी को कड़ी टक्कर देगी. कांग्रेस की तरफ से लगभग साफ है कि कमलनाथ पार्टी का चेहरा होंगे, पर बीजेपी की तरफ से कौन होगा यह पता नहीं है. ऐसे में बिना चेहरे के वोटर भी कंफ्यूजन की स्थिति में रह सकते हैं और पार्टी को इसका नुकसान उठाना पड़ सकता है.

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