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IAS Success Story: पिता के साथ चाय बेचने वाले हिमांशु ने देखा UPSC पास करने का सपना और ऐसे किया साकार

बरेली के हिमांशु गुप्ता ने एक छोटे से गांव से यूपीएससी तक का सफर तय करते समय तमाम मुश्किलों का सामना किया लेकिन कभी अपने सपनों को ठंडे बस्ते में नहीं डाला.

Success Story Of IAS Topper Himanshu Gupta: जब छोटी जगहों के बच्चे बड़े सपने देखते हैं तो उन्हें साकार करना आसान नहीं होता. एक सफल जिंदगी के लिए उन्हें अतिरिक्त प्रयास करना होता है क्योंकि सफलता पाने के लिए उनके पास जरूरी संसाधन भी नहीं होते. यूपी, बरेली के एक छोटे से गांव सिरॉली के हिमांशु भी जब टीवी पर बड़े और सक्सेसफुल लोगों की जीवनशैली देखते थे उससे बहुत आकर्षित होते थे. चाहते थे कि एक दिन वो भी ऐसी जिंदगी का हिस्सा बन पाएं. पर सच्चाई की ज़मीन बहुत सख्त होती है, इस पर गिरकर बड़े-बड़े सपने टूट जाते हैं. पर एक डेली लेबरर के बेटे ने अपने सपनों को टूटने नहीं दिया बल्कि उन्हें बुना और बहुत प्यार से बुना. आखिरकार अपने पिता के साथ टी-स्टॉल पर चाय बेचने वाला यह लड़का यूपीएससी की परीक्षा पास करके बन ही गया ऑफिसर. आइये जानते हैं कैसे हिमांशु ने पाया यह असंभव सा दिखने वाला लक्ष्य.

हिमांशु का बचपन –

हिमांशु का बचपन आम बच्चों जैसा नहीं था. उन्होंने बेहद गरीबी में दिन काटे. उनके पिता पहले दिहाड़ी मजदूर का काम करते थे, उसके बाद उन्होंने चाय का ठेला लगाना शुरू कर दिया. हिमांशु भी स्कूल के बाद इस काम में अपने पिता की मदद करते थे. चाय बांटने के दौरान जब वे कुछ लोगों को देखते थे कि वे उंग्लियों पर भी पैसे नहीं गिन पा रहे हैं तो सोचते थे कि शिक्षा जीवन में कितनी जरूरी है. उसी समय उन्होंने तय किया कि एजुकेशन को टूल बनाकर ही वे अपनी जिंदगी बदलेंगे. हिमांशु के बचपन की कठिनाइयों का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनका स्कूल घर से 35 किलोमीटर दूर था. वे रोज 70 किलोमीटर का सफर तय करते थे वो भी केवल बेसिक एजुकेशन पाने के लिए. इसके बाद वे पिताजी को चाय के स्टॉल में मदद करते थे. ऐसे में आप खुद ही अंदाजा लगा सकते हैं कि उनको पढ़ाई के लिए कितना वक्त मिलता था. लेकिन हिमांशु दिमाग के तेज थे, वे चीजें जल्दी सीखते थे और उन्हें पढ़ाई में दूसरे स्टूडेंट्स की तुलना में कम समय लगता था. ऐसे ही हिमांशु ने क्लास 12 तक की शिक्षा ली. हिमांशु के पिता ने बाद में जनरल स्टोर की दुकान खोल ली जो आज भी है.

क्लास 12 के बाद पहली बार किसी मेट्रो सिटी में रखा कदम –

हिमांशु एक साक्षात्कार में पुराने दिन याद करते हुए बताते हैं कि क्लास 12 के बाद जब वे दिल्ली के हिंदू कॉलेज पहुंचे तो वह पहला मौका था जब उन्होंने किसी मेट्रो सिटी में कदम रखा था. अपने पिता के फोन में रैंडमली इंडिया के अच्छे इंस्टीट्यूट खोजते वक्त उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी के बारे में पढ़ा. किस्मत से उनके अंक अच्छे थे और उन्हें एडमिशन मिल गया. यहां आने के बाद से आगे की पढ़ाई करने तक पैसों की समस्या हल करने के लिए हिमांशु ने पढ़ाई के साथ ही बहुत से और काम किए. उन्होंने ट्यूशन पढ़ाए, पेड ब्लॉग्स लिखे और जहां-जहां संभव हुआ स्कॉलरशिप्स हासिल कीं. ऐसे उनकी शिक्षा पूरी हुई. ग्रेजुएशन के बाद उन्होंने एमएससी करी और हिमांशु की काबिलियत का पता यहीं से चलता है कि उन्होंने इस दौरान पूरे तीन बार यूजीसी नेट की परीक्षा पास की. यही नहीं गेट परीक्षा में भी सिंग्ल डिजिट रैंक लाये और अपने कॉलेज में टॉप भी किया.

इस सबसे हिमांशु का कॉन् काफी बढ़ गया और उन्हें लगने लगा कि वे इससे भी बड़ा कुछ एचीव करने की क्षमता रखते हैं. इस बीच उनके पास विदेश जाकर पीएचडी करने के मौके भी आये पर उन्होंने अपने देश और खासतौर पर अपने मां-बाप के पास रहना चुना, जिन्होंने इतनी मेहनत से उन्हें पढ़ाया था. यही वो मौका भी था जब हिमांशु ने बड़ी गंभीरता से सिविल सर्विसेस के बारे में सोचना शुरू किया.

बिना कोचिंग के की यूपीएससी की तैयारी –

हिमांशु के कोचिंग न कर पाने के दो कारण थे. एक तो पैसा और दूसरा हमेशा सेल्फ स्टडी करने के कारण केवल सेल्फ स्टडी पर ही भरोसा. जी-जान से तैयारी करके हिमांशु ने परीक्षा दी पर पहले अटेम्पट में बुरी तरह फेल हो गए. उनके लिए यह स्थिति इसलिए भी बहुत खराब थी क्योंकि उन्हें अपने और परिवार के लिए पैसों की बहुत जरूरत थी. हिमांशु ने जेआरएफ लिया और एमफिल करने लगे. इस फैसले से पैसे तो आ गए पर सिविल सर्विस और रिसर्च के बीच वक्त मैनेज करना बड़ा मुश्किल था. जैसा कि हम जानते ही हैं यूपीएससी की परीक्षा फुल टाइम डिवोशन मांगती है पर हिमांशु के पास कोई ऑप्शन नहीं था. वे भी पीछे हटने वालों में नहीं थे. साल 2019 मार्च में उन्होंने इधर अपनी थीसेस सबमिट करीं और एक महीने बाद अप्रैल 2019 में उनका सिविल सर्विसेस का रिजल्ट आ गया. हिमांशु चयनित हो गए. साल 2018 की परीक्षा जिसका रिजल्ट 2019 में आया, में उनकी 304 रैंक आयी. हिमांशु और उनके परिवार की खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा.

अपने अनुभव से हिमांशु कहते हैं कि इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप छोटी जगह से हैं, छोटे स्कूल से पढ़े हैं या आपके मां-बाप की माली हालत क्या है. अगर आपके सपने बड़े हैं तो आप जिंदगी में कहीं भी पहुंच सकते हैं. आपकी जॉब आपको एक से दूसरे कैरियर में ले जाएगी पर आपके सपने आपको कहीं भी ले जा सकते हैं. इसलिए सपने देखें, मेहनत करें और खुद पर विश्वास रखें क्योंकि सपने वाकई सच होते हैं.

IAS Success Story: तीन बार यूपीएससी में सेलेक्ट हुयीं श्वेता, पर तब तक नहीं रुकी, जब तक नहीं मिल गयी मनचाही रैंक 

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