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तारों के पतन को लेकर DDU के प्रोफेसर ने की नई खोज, दुनिया के सामने रखा नया सिद्धांत

डॉ. कुमार के इस सिद्धांत की खास बात यह है कि यह पूरी तरह सिंगुलरिटी-मुक्त है. यानी न तो ब्लैक होल बनता है, न ही नग्न सिंगुलरिटी और न ही कोई चुम्बकीय पतन होता है.

दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में गणित और सांख्यिकी विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. राजेश कुमार ने अपनी नई रिसर्च से पूरी दुनिया के वैज्ञानिकों को चौंका दिया है. उन्होंने तारों के पतन को लेकर ऐसा सिद्धांत पेश किया, जो अब तक की सोच को पूरी तरह बदल सकता है. उनके मुताबिक, विशालकाय तारे जब खत्म होते हैं तो वे किसी निश्चित बिंदु पर रुकते नहीं हैं, बल्कि लगातार सिकुड़ते रहते हैं. इस अनोखी प्रक्रिया को उन्होंने 'सतत गुरुत्वीय पतन' यानी 'इटर्नल कोलैप्स फिनॉमिना' का नाम दिया है. इस खोज ने न सिर्फ तारों की नियति को समझने का नया रास्ता दिखाया, बल्कि भविष्य में वर्म-होल और टाइम ट्रैवल जैसे विषयों पर भी नई संभावनाएं खोल दी हैं.

रिसर्च में सामने आई यह बात

डॉ. राजेश कुमार की रिसर्च से पता चलता है कि जब कोई विशालकाय तारा अपने जीवन के अंतिम चरण में पहुंचता है तो वह पूरी तरह से खत्म होकर ब्लैक होल, नग्न सिंगुलरिटी या चुम्बकीय गुरुत्वीय पतन जैसी किसी स्थिति में नहीं बदलता. दरअसल, यह तारा अनंत काल तक सिकुड़ता रहता है. इसका मतलब यह है कि तारा कभी भी किसी निश्चित अंतिम बिंदु तक नहीं पहुंचता है. डॉ. कुमार ने अपनी रिसर्च में पाया कि तारों के सिकुड़ने की प्रक्रिया में कोई 'सिंगुलरिटी' (वह बिंदु जहां गुरुत्वाकर्षण अनंत हो जाता है) नहीं बनती. इसकी जगह तारा लगातार सिकुड़ता रहता है, जिसे उन्होंने 'सतत गुरुत्वीय पतन' कहा है.

डॉ. कुमार ने पेश किया यह सिद्धांत

डॉ. कुमार के इस सिद्धांत की खास बात यह है कि यह पूरी तरह सिंगुलरिटी-मुक्त है. यानी न तो ब्लैक होल बनता है, न ही नग्न सिंगुलरिटी और न ही कोई चुम्बकीय पतन होता है. डॉ. कुमार ने इस नतीजे तक पहुंचने के लिए तारों के पतन के दौरान बनने वाली 'क्षितिज सतह' (होराइजन) और सिंगुलरिटी बनने के समय की तुलना की. उनके शोध से पता चला कि तारा अनंत समय तक सिकुड़ता रहता है, लेकिन कभी भी किसी निश्चित अंत तक नहीं पहुंचता है.

रिसर्च में खास क्या?

यह खोज इसलिए भी खास है, क्योंकि यह तारों के पतन की अब तक की समझ को चुनौती देती है. पिछले कई दशकों से वैज्ञानिक यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि जब कोई विशाल तारा अपने जीवन के अंतिम दौर में पहुंचता है तो उसका अंतिम परिणाम क्या होता है. 1939 में दो अमेरिकी वैज्ञानिकों ओपेनहाइमर और स्नाइडर ने पहली बार इस सवाल का जवाब देने की कोशिश की थी. उन्होंने कहा था कि तारा खत्म होने के बाद ब्लैक होल बन जाता है. इसके बाद ब्लैक होल खगोल भौतिकी का सबसे बड़ा शोध विषय बन गया. 1986 में भारतीय वैज्ञानिक पंकज एस. जोशी ने बताया कि तारों का अंत नग्न सिंगुलरिटी के रूप में भी हो सकता है, जहां गुरुत्वाकर्षण अनंत होता है, लेकिन उसे घेरने वाली कोई सीमा नहीं होती है. 1998 में भारतीय वैज्ञानिक अभास मित्रा ने चुम्बकीय गुरुत्वीय पतन का सिद्धांत दिया.

डॉ. कुमार का सिद्धांत कितना अलग?

डॉ. राजेश कुमार का यह सिद्धांत इन सभी से अलग है. उन्होंने अपनी रिसर्च में तारों के पतन को एक ऐसी प्रक्रिया बताया, जो कभी खत्म नहीं होती. उनके मुताबिक, तारा अनंत काल तक सिकुड़ता रहता है, जिसे 'इटर्नल कोलैप्सिंग ऑब्जेक्ट' कहा जा सकता है. यह न सिर्फ तारों की नियति को समझने में मदद करेगा, बल्कि वर्म-होल और समय यात्रा जैसे जटिल वैज्ञानिक विषयों पर भी नई रोशनी डालेगा. डॉ. कुमार की इस रिसर्च को भारत सरकार के कॉपीराइट कार्यालय ने हाल ही में कॉपीराइट दिया है. उन्होंने बताया कि वह अब कुछ और खगोल भौतिकी डेटा का विश्लेषण कर रहे हैं. इसके बाद उनकी यह रिसर्च किसी अंतरराष्ट्रीय रिसर्च मैग्जीन में पब्लिश होने के लिए भेजी जाएगी. 

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