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Shariah Funds: मुसलमानों के लिए 'हलाल' हैं ये शरिया फंड, रिटर्न देने में नहीं कम और 'हराम' का नहीं गम!

Shariah Compliant Mutual Funds in India: इस्लाम में ब्याज की कमाई व शराब से लेकर पॉर्क तक जैसे बिजनेस को भी हराम माना जाता है. ऐसे में ये फंड हलाल कमाई के विकल्प मुहैया कराते हैं...

सुरक्षित भविष्य के लिए बचत और निवेश जरूरी है. चूंकि हर कोई अपने भविष्य को सुरक्षित बनाना चाहता है, ऐसे में लोग बैंक एफडी से लेकर पोस्टऑफिस स्कीम और शेयर बाजार तक का रुख करते हैं. हालांकि ये उपाय हर किसी के लिए फिट नहीं साबित होते हैं. उदाहरण के लिए मुस्लिम समुदाय को देख लीजिए. मुसलमानों में ब्याज के पैसे को हराम माना जाता है. साथ ही शराब-सिगरेट व पॉर्क समेत कई तरह के काम-धंधे भी इस्लाम में हराम हैं. बाजार में प्रचलित निवेश-बचत साधनों के मामले में इस्लाम की धार्मिक मान्यताएं आड़े आ जाती हैं. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर इस्लाम को मानने वाले करोड़ों लोग अपने भविष्य को सुरक्षित बनाने के लिए क्या करें? आज हम आपको यही बताने जा रहे हैं.

इस्लाम में क्या-क्या है हराम

सबसे पहले मोटा-मोटी इस्लाम की धार्मिक बाध्यताओं को समझ लेते हैं. इस्लाम ऐसे किसी भी जगह पैसे लगाने से मना करता है, जिससे लोगों को शारीरिक या भवनात्मक तौर पर नुकसान पहुंचता हो. इसी तरह पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले, हथियारों को बढ़ावा देने वाले काम-धंधे भी इस्लामिक कानून में हराम हैं. इसे सरल शब्दों में समझें तो इस्लाम मुसलमानों को शराब, तंबाकू, पॉर्क, हथियार, जुए, पॉर्न आदि से जुड़े बिजनेस में पैसे लगाने से रोकता है. इसी तरह एक अन्य बाध्यता ब्याज के पैसे को लेकर है. इस्लामिक मान्यताओं में कहा जाता है कि ब्याज के पैसे लेना मतलब सीधे खुदा के खिलाफ जंग शुरू करना है. इस कारण मुसलमानों के लिए ऐसी किसी भी जगह पर निवेश करना हराम है, जिसमें ब्याज से कमाई होती हो.

बैंक-पोस्ट ऑफिस भी नहीं विकल्प

अब निवेश व बचत के प्रचलित साधनों को देखते हैं. सबसे बेसिक उपाय है बैंक या पोस्ट ऑफिस में पैसे रखना. यहां समस्या ब्याज के पैसे से आ जाती है. बैंक एफडी से लेकर पोस्ट ऑफिस की तमाम योजनाएं ब्याज से ही कमाती हैं. इस तरह ये सारी योजनाएं इस्लामिक कानूनों के तहत हराम हो जाती हैं. शेयर बाजार एक बढ़िया विकल्प बनकर सामने आता है, लेकिन यहां भी समस्याएं कम नहीं हैं. शायद ही कोई कंपनी ऐसी हो, जो ब्याज के पैसों का लेन-देन नहीं करती हों. दूसरी समस्या उनके बिजनेस को लेकर है. इसे बस एक उदाहरण से समझिए. इस्लामिक कानूनों को मानने वाला एक मुसलमान कभी भी आईटीसी के शेयर नहीं खरीद सकता है, क्योंकि आईटीसी का मुख्य धंधा सिगरेट बनाने-बेचने का है.

कैसे काम करते हैं हलाल फंड

इस्लामिक कानूनों के तहत आने वाली इन रुकावटों से पार पाते हुए करोड़ों मुसलमानों को निवेश व बचत के विकल्प उपलब्ध कराने के लिए कुछ कंपनियों ने काम किया है. इन कंपनियों ने खास फंड लॉन्च किए हैं, जो शरिया के हराम-हलाल कानूनों का सख्ती से पालन करते हुए पोर्टफोलियो को मैनेज करते हैं. ये फंड कभी भी उन कंपनियों में निवेश नहीं करते हैं, जिनके बिजनेस शरिया के हिसाब से हराम हैं. चूंकि ब्याज से अछूती कंपनी खोज पाना नामुमकिन है, ऐसे में ये फंड सिर्फ उन कंपनियों तक लिमिटेड रहते हैं, जिनकी कुल कमाई में ब्याज की कमाई का हिस्सा ज्यादा से ज्यादा 3 फीसदी हो. एक और शर्त यह होती है कि ये फंड सिर्फ वैसी कंपनियों में पैसे लगाते हैं, जिनका कुल कर्ज उनकी कुल संपत्ति के 25 फीसदी से कम होता है.

भारत में कब हुई शुरुआत

भारत में शरिया कानूनों के हिसाब से चलने वाले म्यूचुअल फंड की शुरुआत का श्रेय एसएंडपी को जाता है. इस तरह के फंड को शरिया कम्पलायंट म्यूचुअल फंड कहा जाता है, जो बोलचाल की भाषा में हलाल फंड या हलाल म्यूचुअल फंड कह दिए जाते हैं. एसएंडपी ने साल 2010 में भारत में इस तरीके के दो फंड की शुरुआत की. दोनों शुरुआती हलाल फंड S&P CNX 500 Shariah और S&P CNX Nifty Shariah थे. अभी ये दोनों फंड बंद हो चुके हैं.

अभी उपलब्ध हलाल फंड के नाम

मौजूदा बाजार की बात करें तो हलाल की कमाई खोजने वाले लोगों के लिए 3 विकल्प मौजूद हैं. इनमें सबसे पहला नाम है टाटा एथिकल फंड (Tata Ethical Fund). इसी तरह टॉरस एथिकल फंड (Taurus Ethical Fund) और निप्पॉन इंडिया ईटीएफ शरिया बीईईएस (Nippon India ETF Sharia BeES) भी उपलब्ध हैं. निप्पॉन इंडिया ईटीएफ शरिया बीईईएस का नाम पहले रिलायंस ईटीएफ शरिया बीईईएस (Reliance ETF Shariah BeES) था. इसमें निवेश करने के लिए आपको डीमैट अकाउंट की जरूरत पड़ेगी, क्योंकि यह एक ईटीएफ है.

हलाल फंड के रिटर्न

समस्या और समाधान की बातें तो हो गईं. अब सबसे जरूरी बात... रिटर्न यानी कमाई की. कहीं ऐसा तो नहीं कि इस्लामिक कानूनों को मानने के चक्कर में कमाई से समझौता करना पड़ जाता हो? तो इसका जवाब है... नहीं. शरिया कानूनों के हिसाब से काम करने वाले ये फंड रिटर्न देने के मामले में कहीं कम नहीं हैं. इसे समझने के लिए नीचे दिए चार्ट को देखें:

विकल्प पांच साल का औसत सालाना रिटर्न
बैंक एफडी 7.18%
सोना 11%
तीनों हलाल फंड का औसत 19.14%
लार्ज कैप फंड का औसत 7%
मिड कैप फंड का औसत 10.28%
स्मॉल कैप फंड का औसत 14.74%

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