VB–G RAM G Bill 2025 Explained: मनरेगा की जगह विकसित ‘भारत जी राम जी’, क्यों हो रहा विवाद और क्या होगा बदलाव
VB–G RAM G Bill 2025: एक और बड़ा बदलाव तकनीक के इस्तेमाल को लेकर प्रस्तावित है. नए प्रारूप में एआई आधारित ऑडिट, जीपीएस मॉनिटरिंग और डिजिटल निगरानी जैसे प्रावधान शामिल किए गए हैं.

VB–G RAM G Bill 2025 Explained: ग्रामीण रोजगार की रीढ़ मानी जाने वाली महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) का नाम बदलकर ‘विकसित भारत–जी राम जी 2025’ किए जाने को लेकर देश की राजनीति और नीति–निर्माण के गलियारों में बहस तेज हो गई है. मंगलवार को जब ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने लोकसभा में इससे जुड़ा विधेयक पेश किया, तो विपक्ष ने सरकार की मंशा पर सवाल खड़े कर दिए. सवाल यह है कि क्या यह बदलाव सिर्फ नाम तक सीमित है या फिर इसके जरिए ग्रामीण रोजगार व्यवस्था को नए सिरे से ढालने की कोशिश की जा रही है.
क्या है विकसित भारत-जी राम जी योजना
दरअसल, मनरेगा की शुरुआत साल 2005 में यूपीए सरकार के दौरान हुई थी, जिसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में हर जरूरतमंद परिवार को न्यूनतम रोजगार की गारंटी देना था. इस योजना के तहत 100 दिनों के रोजगार का प्रावधान था और इसके खर्च का लगभग 90 प्रतिशत केंद्र सरकार वहन करती थी. अब प्रस्तावित ‘विकसित भारत–गारंटी फॉर रोजगार एंड आजीविका मिशन (ग्रामीण)’, यानी VB–जी राम जी योजना में इस ढांचे को बदला जा रहा है. नए विधेयक में रोजगार की गारंटी बढ़ाकर 125 दिनों तक करने की बात कही गई है, जिससे ग्रामीण परिवारों की आय में स्थिरता लाने का दावा किया जा रहा है.
सरकार का तर्क है कि बीते 20 वर्षों में ग्रामीण भारत की सामाजिक–आर्थिक परिस्थितियों में बड़ा बदलाव आया है और ऐसे में मनरेगा जैसे कानून को भी समय के अनुरूप आधुनिक बनाना जरूरी है. ग्रामीण विकास मंत्रालय के अनुसार, यह नया कानून ‘विकसित भारत 2047’ के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया है, ताकि ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सिर्फ मजदूरी तक सीमित न रखकर आजीविका और आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ाया जा सके.
क्या आएगा बदलाव?
हालांकि, इस योजना में सबसे बड़ा और विवादित बदलाव फंडिंग पैटर्न को लेकर है. पहले जहां मनरेगा में केंद्र सरकार 90 प्रतिशत खर्च उठाती थी, वहीं अब VB–जी राम जी योजना में केंद्र का योगदान घटाकर 60 प्रतिशत करने का प्रस्ताव है और बाकी 40 प्रतिशत खर्च राज्य सरकारों को उठाना होगा. इससे राज्यों पर वित्तीय दबाव बढ़ने की आशंका जताई जा रही है. हालांकि, सरकार ने पूर्वोत्तर और हिमालयी राज्यों को राहत देते हुए उनके लिए पुराना 90:10 का फॉर्मूला जारी रखने की बात कही है.
एक और बड़ा बदलाव तकनीक के इस्तेमाल को लेकर प्रस्तावित है. नए प्रारूप में एआई आधारित ऑडिट, जीपीएस मॉनिटरिंग और डिजिटल निगरानी जैसे प्रावधान शामिल किए गए हैं. सरकार का कहना है कि इससे फर्जीवाड़े पर लगाम लगेगी और फंड का सही इस्तेमाल सुनिश्चित होगा. लेकिन आलोचकों का मानना है कि इससे ग्रामीण मजदूरों की निजता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर असर पड़ सकता है, खासकर तब जब योजना के तहत काम करने वाले अधिकतर श्रमिक अनस्किल्ड और आर्थिक रूप से कमजोर पृष्ठभूमि से आते हैं.
क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स?
वरिष्ठ पत्रकार रुमान हाशमी का मानना है कि यह बदलाव सिर्फ नाम का नहीं है, बल्कि इसके पीछे एक बड़ी रणनीति छिपी हो सकती है. उनके मुताबिक, किसी योजना का नाम बदलने के साथ उसके प्रचार, रीब्रांडिंग और नए सिस्टम पर करोड़ों रुपये खर्च होते हैं, इसलिए सरकार को साफ करना चाहिए कि इस बदलाव से जमीनी स्तर पर मजदूरों को क्या अतिरिक्त लाभ मिलेगा. वे यह भी सवाल उठाते हैं कि एआई और जीपीएस आधारित निगरानी कहीं श्रमिकों के लिए अतिरिक्त दबाव या नियंत्रण का माध्यम न बन जाए.
वर्तमान में करीब 8 करोड़ 30 लाख श्रमिक मनरेगा के तहत रोजगार पा रहे हैं. ऐसे में योजना के स्वरूप में इतना बड़ा बदलाव करने से पहले व्यापक राजनीतिक और सामाजिक सहमति बनाना जरूरी था. विपक्षी नेताओं, जिनमें प्रियंका गांधी और मल्लिकार्जुन खड़गे जैसे नाम शामिल हैं, का कहना है कि सरकार को इस विषय पर संसद के बाहर भी विस्तृत चर्चा करनी चाहिए थी.
कुल मिलाकर, मनरेगा से विकसित भारत–जी राम जी योजना तक का यह सफर सिर्फ एक नाम परिवर्तन नहीं लगता. इसमें रोजगार के दिनों की बढ़ोतरी, फंडिंग पैटर्न में बदलाव और तकनीकी निगरानी जैसे कई ऐसे तत्व शामिल हैं, जो ग्रामीण भारत की तस्वीर को बदल सकते हैं. सवाल यही है कि क्या यह बदलाव वास्तव में ग्रामीण मजदूरों की जिंदगी आसान बनाएगा या फिर यह सिर्फ एक नई नीति का नया नाम भर साबित होगा—इसका जवाब आने वाला वक्त ही देगा.
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Source: IOCL
























